1991 में ग्रीस जैसे थे भारत के हालात, विदेश में गिरवी रखा था 47 टन सोना


पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर राजनीति के अलावा अपने सामाजिक सरोकारों और राजनीतिक लेखन के लिए जाने जाते हैं। नवंबर 1990 से जून 1991 तक सात महीनों के लिए वे देश के प्रधानमंत्री रहे। आपातकाल के दौरान कांग्रेस में रहते हुए भी उनको गिरफ्तार कर लिया गया था। जब चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने तब देश की आर्थिक स्थिति बेहद खराब थी। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या हो चुकी थी। राजनीतिक हालात भी अस्थिर थे। भारत की अर्थव्यवस्था भुगतान संकट में फंसी हुई थी। इसी समय रिजर्व बैंक ने सोना गिरवी रख कर कर्ज लेने का फैसला किया। उस समय के गंभीर हालात का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि देश का विदेशी मुद्रा भंडार 1.1 अरब डॉलर ही रह गया था। इतनी रकम तीन हफ्तों के आयात के लिए भी पूरी नहीं थी।
एनआरआई ने पैसा भेजना कर दिया था बंद
भारत के इस आर्थिक संकट के समय में एनआरआई ने भी पैसा भेजना बंद कर दिया था। इसके अलावा विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष ने भी कर्ज देने से मना कर दिया था। साख निर्धारण करने वाली संस्थाओं ने भारत को सबसे नीचे की श्रेणी में डाल दिया था। देश का बाहरी कर्ज सत्तर अरब डॉलर के आंकड़े को पार कर गया था। निवेशकों ने दूरी बना ली थी। उन्होंने भारत में लगा अपना पैसा निकाल लिया था। भारत की ऐसी हालात के लिए सोवियत संघ का बिखराव भी एक कारण माना गया।
दो जहाजों से भेजा सोना
ऐसे हालात से निपटने के लिए मुंबई से दो जहाजों में सैंतालीस टन सोना लाद कर बैंक आफ इंग्लैंड के पास गिरवी रखने के लिए भेजा गया। यह संकट पांच साल पहले राजीव गांधी के कार्यकाल में ही शुरू हो गया था। उन्होंने कम समय के लिए ज्यादा विदेशी कर्ज लिया था। बाहरी कर्ज ने महज 290 अरब डॉलर वाली भारतीय अर्थव्यवस्था की हालत खराब कर दी। अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष से कर्ज लेकर आर्थिक सुधार करने के सिवा कोई चारा नहीं था। उदारीकरण के दो दशक पूरे होने के बाद का आकलन कहता है कि इंडिया के हिस्से में समृद्धि और भारत के हिस्से में बदहाली आई है।
चुनावी मुद्दा बना
इसके बाद जून 1991 में हुए चुनाव ने विपक्षी पार्टियों ने इस मुद्दे को खूब भुनाया। चुनाव के बाद कांग्रेस की सरकार बनी और पीवी नरसिम्हाराव प्रधानमंत्री बने। अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह को वित्तमंत्री बनाया गया। उन्होंने देश की आर्थिक बदलाव का शुरुआत की। उनकी उदारीकरण की नीतियों की आलोचना और विरोध भी हुआ। लेकिन इसके बाद की सरकारों ने उनके द्वारा शुरू की उदारीकरण की नीति को जारी रखा।
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