www.tahalkaexpress.com नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि वे भूमि अधिग्रहण बिल को छोड़ रहे हैं और राज्य अपने हिसाब से इसमें बदलाव कर सकते हैं। ये बात पीएम मोदी ने अमेरिकी अखबार
वॉल स्ट्रीट जर्नल को दिए एक साक्षात्कार में कही। उन्होंने कहा कि विपक्ष के लगातार विरोध प्रदर्शन के चलते भाजपा नेताओं की छवि ग्रामीण मतदाताओं और गरीब लोगों के खिलाफ वाली बनती जा रही थी जिस वजह से पीछ हटना पड़ा। पीएम ने कहा कि संघीय स्तर पर इस कानून को संशोधित करने की कोशिश अब खत्म हो गई है और अब यह राज्यों के हाथ में ही कि वे कैसे बदलाव करना चाहते हैं।
पीएम मोदी ने कहा कि वे अमेरिकी संसद का शुक्रिया अदा करना चाहते हैं कि उन्हें अमेरिकी कांग्रेस को संबोधित करने का मौका दिया। उन्होंने कहा कि उन्हें अमेरिकन जनता के साथ संवाद का मौका दिया है। पीएम ने कहा कि ‘डिफेन्स मैन्यूफैक्चरिंग में भारत आगे बढ़ना चाहता है क्योंकि हमारा बहुत बड़ा इम्पोर्ट बाहर का है।
उन्होंने कहा कि यह ऐसा क्षेत्र है जो अर्थव्यवस्था के साथ साथ युवाओं को सबसे ज्यादा रोजगार मिल सकता है और मैं उसके लिए कई दिनों से मेहनत कर रहा हूं।’ पड़ोसी देशों से संबंध पर सवाल पूछे जाने पर पीएम मोदी ने कहा कि वे चाहते हैं कि पड़ोसियों से उनके संबंध अच्छे रहे और इसके लिए उन्होंने कदम भी उठाए थे।
मोदी ने कहा कि संबंध अच्छे रखने के लिए शपथ ग्रहण समारोह में सार्क देशों के सभी राष्ट्राध्यक्षों को बुलाया था। उन्होंने कहा कि जो भला मैं भारत का चाहता हूं वही भला मैं पड़ोसी देशों का भी चाहता हूं। उन्होंने कहा कि हम आतंकवाद पर कोई समझौता नहीं करेंगे और हमें करना भी नहीं चाहिए। पीएम ने कहा कि दुनिया में जहां जहां आतंकवाद है वहां उसके खिलाफ भारत खड़ा है।
2014 नवंबर में सरकार ने वर्ष 2013 के भूमि अधिग्रहण कानून के कई प्रावधानों को रद्द कर बिल पर नया अध्यादेश जारी किया था। विपक्ष के साथ-साथ संघ परिवार के तीखे विरोध के कारण बीते नौ महीने से भी अधिक समय में सरकार ने नए बिल में किए गए कई प्रावधानों को वापस ले लिया। बिल को कानूनी जामा पहनाने के लिए सरकार ने इसी महीने वर्ष 2013 के करीब करीब सभी प्रावधानों को अक्षरश: लागू करने पर सहमति दे दी थी।
मगर बिल को किसी कीमत पर कानूनी जामा न पहनाने देने पर अड़े विपक्ष ने समिति के समक्ष अचानक दो नए बिंदुओं को शामिल करने की शर्त रख सरकार के सुधारवादी एजेंडे को नए सिरे से फंसा दिया था जिसके बाद सरकार इस मुद्दे पर पीछे हट गई थी।
बता दें कि भारत में 2013 क़ानून के पास होने तक भूमि अधिग्रहण का काम मुख्यत: 1894 में बने क़ानून के दायरे में होता था।लेकिन मनमोहन सरकार ने मोटे तौर पर उसके तीन प्रावधानों में बदलाव कर दिए थे।ये भूमि अधिग्रहण की सूरत में समाज पर इसके असर, लोगों की सहमति और मुआवज़े से संबंधित थे।ये जबरन ज़मीन लिए जाने की स्थिति को रोकने में मददगार था।
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