30000 करोड़ का मालिक कौन?

27 BMCwww.tahalkaexpress.com मुंबई। शिवसेना-बीजेपी हो या कांग्रेस इन दिनों इसलिए जोश में हैं, क्योंकि सब के सब 30 हजार करोड़ का मालिक बनना चाहते हैं। जी हां 30 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा सालाना बजट वाली बीएमसी के खजाने को कब्जाने के लिए रोज हायतौबा हो रही है। फालतू के मुद्दों और बयानों से जनता को उलझाने की कोशिश हो रही है। जनता को क्या फर्क पड़ता है कि कौन ‘असरानी’ है और ‘निजाम’, कौन ‘बाघ’ है और कौन ‘सिंह’।

आम मुंबईकर टैक्स के रूप में जो पैसा जमा करता है उसके बदले में अच्छी सड़कें, अतिक्रमण मुक्त फुटपाथ, बेहतर यातायात, 24 घंटे लाइट-पानी, साफ-सुथरा शहर और आधुनिक अस्पताल चाहता है, जो उसे अब तक नहीं मिला है। जरा सी बारिश में शहर लकवा ग्रस्त हो जाता है। फुटपाथ का अतिक्रमण और उससे होने वाली अवैध कमाई एक समानांतर अर्थव्यवस्था बन गई है। सफाई का आलम यह है कि 20 साल बाद भी कचरे के निष्पादन का कोई वैज्ञानिक इंतजाम नहीं है। अस्पतालों की हालत ऐसी की इलाज तो दूर की बात नई बीमारी और लग जाए। इन नाकामियों का हिसाब कौन देगा?

पिछले 20 साल से शिवसेना-बीजेपी दोनों मिलकर बीएमसी के खजाने की मालिक बनी बैठी हैं। अब जब बीएमसी चुनाव सिर पर है और जनता द्वारा हिसाब मांगने का वक्त करीब आ रहा है, तो दोनों पार्टियां प्लान बनाकर जनता का ध्यान भटकाने के ‘टोटके’ कर रही हैं। दूसरे को चोर और खुद को इमानदार जताने की कोशिश हो रही है। सीधा सा सवाल है 20 साल सत्ता में साथ थे, सब कुछ आंख के सामने और नाक के नीचे हो रहा था, तब चुप क्यों थे? जरा पुराने रेकॉर्ड निकाल कर देखिए कि जब पहली बार नगरसेवक का चुनाव लड़ा था, तो किसके पास क्या था और आज कौन कितनी संपत्ति का मालिक है? जो लोग आज सबसे ज्यादा ईमानदारी का डंका पीट रहे हैं, उन्हीं से इसकी शुरुआत करनी चाहिए।
कोई जनता के पैसे से बिल्डर बन गया है कोई बड़ा इन्वेस्टर। कोई कंपनी का डायरेक्टर बन गया है तो कोई किसी क्लब का मालिक। जिसको जब जैसे मौका मिला ‘फंड और भूखंड का श्रीखंड’ और ठेके की मलाई चाट कर गब्बर हो गया है। और हां! अब ये केवल आरोप नहीं हैं, सड़क और नाले और कचरे के घोटाले पक्का सबूत हैं। इन सबूतों के आधार पर जिनको जेल की कोठरी में होना चाहिए वे ही पिछले 10-15 साल के भ्रष्टाचार की जांच कराए जाने की मांग कर रहे हैं। जांच होनी ही चाहिए, जिन लोगों ने जनता के पैसे से खुद के घर भरे हैं उनकी संपत्तियां नीलाम कर जनता का पैसा वापस बीएमसी के खजाने में जमा कराया जाना चाहिए।

आखिर जनता भी जाने कि चुनाव जीतने के बाद ऐसा कौनसा अलादीन का चिराग मिल जाता है कि पांच साल में शहर की कायपलट हो या न हो नगरसेवकों की कायापलट जरूर हो जाती है। मुंबई को दुबई और शंघाई बनाने की गप्पे हांकने वाले ’30 हजार करोड़ के रक्षक’ दुबई और शंघाई घूम आते हैं, लेकिन मुंबई के हालात जस के तस रहते हैं। कहने वाले तो यह भी कहते हैं कि बीएमसी से हर महीने हर पार्टी को उसका हिस्सा मिलता है। जिसके जितने नगरसेवक उसका उतना हिस्सा। हो सकता है यह बात गलत हो, परंतु 30 हजार करोड़ बजट वाली बीएमसी जीतने के लिए जितनी ‘मार-काट’ मची है, उसे देखकर कोई मुंबईकर यह नहीं मानेगा कि वह केवल समाजसेवा के लिए है।
शार्प व्यूह बीजेपी पर अटैक करने के लिए शिवसेना के पास ‘मुखपत्र’ नाम का एक ऐसा अस्त्र है जिसकी काट खोजने में बीजेपी को दो साल लग गए। अब जाकर बीजेपी ने इसका जवाब ‘मनोगत’ से दिया है। वैसे कहने वाले बहुत पहले कह गए हैं कि जैसा बोओगे वैसा ही पाओगे। देखते हैं कि मनोगत एक बार में फुस्स होता है या इसमें अभी और बारूद बाकी है!

 

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