वीवीपैट: अगले लोकसभा चुनाव में होगी कागज की वापसी
नई दिल्ली। ईवीएम यानी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन की विश्वसनीयता को लेकर चल रही बहस के बीच चुनाव आयोग सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश पर अमल करने में जुटा है, जिसमें कहा गया था कि मतदान प्रणाली पर भरोसा कायम रखने के लिए हर मशीन के साथ पर्ची निकालने की वीवीपैट मशीन लगाई जाए.
अगले लोकसभा चुनाव में हर बूथ पर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के साथ कागज की पर्ची निकलने वाली मशीन भी होगी. यानी आप वोट तो ईवीएम में ही डालेंगे लेकिन वोट डालने के बाद देख पाएंगे कि आपका वोट किस पार्टी को गया है. इन पर्चियों को डब्बों में सुरक्षित रखा जाएगा और विवाद की स्थिति में उन्हें दोबारा गिना जाएगा.
अभी तक मतदाता को पता नहीं होता था कि उसने मशीन में जिस निशान पर बटन दबाया है, वोट दरअसल उसे ही गया है या नहीं. इसके अलावा अभी यह मुमकिन नहीं था कि विवाद होने पर, तमाम वोटों की दोबारा गिनती हो सके, क्योंकि वोट डिजिटल फॉर्म में दर्ज होता था. अभी तक सिर्फ मशीनों में दर्ज कुल संख्या को ही गिना जाता था.
अब हर ईवीएम के साथ पर्ची वाली मशीन यानी वोटर वेरिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपैट) लग जाने से वोटिंग मशीनों को लेकर ये दो बड़ी शिकायतें दूर हो जाएंगी. इससे लोकतंत्र और मतदान प्रणाली पर लोगों का भरोसा मजबूत होगा. सुप्रीम कोर्ट के इस बारे में दिए गए आदेश को चुनाव आयोग लागू कर रहा है.
दुनिया के ज्यादातर लोकतांत्रिक देश पेपर बैलेट का ही करते हैं इस्तेमाल
चुनाव आयोग ने जानकारी दी है कि अगले लोकसभा चुनाव के लिए 13.95 लाख बैलेट यूनिट, 9.3 लाख कंट्रोल यूनिट और 16.15 लाख वीवीपैट खरीदने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. इनमें से आधे वीवीपैट की सप्लाई भारत इलेक्ट्रॉनिक्स करेगा और बाकी की सप्लाई इलेक्ट्रॉनिक्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया करेगा. कानून मंत्रालय ने संसद में एक सवाल के जवाब में चुनाव आयोग के हवाले से यह सूचना दी है.
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इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन की टेक्नोलॉजी हालांकि कई दशकों से मौजूद है, लेकिन दुनिया के ज्यादातर लोकतांत्रिक देश अब भी पेपर बैलेट का ही इस्तेमाल करते हैं. इन देशों में ब्रिटेन, अमेरिका से लेकर फ्रांस और जर्मनी तक शामिल है. मौजूदा समय में भारत के अलावा सिर्फ नामीबिया, अरमेनिया, भूटान, ऑस्ट्रेलिया, बुल्गारिया, एस्टोनिया, स्वीट्जरलैंड, इटली, कैनेडा, मैक्सिको, अर्जेंटीना, ब्राजील और वेनेजुएला में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन से मतदान होता है.
इस सूचि में भी कई देश ऐसे हैं, तो स्थानीय निकाय के चुनाव तो इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन से कराते हैं, लेकिन प्रांतीय या राष्ट्रीय चुनाव मतदान पत्र यानी पेपर बैलेट से कराते हैं. इन मशीनों की टेक्नोलॉजी का आविष्कार जिन देशों में हुआ, वे भी इन मशीनों पर मतदान नहीं कराते.
लेकिन भारत में चुनाव आयोग ने कई कारणों से तय किया कि चुनाव मशीनों पर ही कराए जाएंगे और 2004 के बाद से हर लोकसभा और विधानसभा चुनाव ईवीएम पर ही हो रहे हैं.
इन मशीनों के साथ भारतीय लोकतंत्र ठीकठाक चल रहा है, लेकिन इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनें हमेशा सवालों के दायरे में रही हैं. खासकर ये आरोप लगते रहे हैं इन मशीनों के साथ छेड़छाड़ संभव है और नीतीजों को प्रभावित किया जा सकता है. चुनाव आयोग इन आरोपों को सही नहीं मानता. यह विवाद सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा.
सुब्रह्मण्यन स्वामी मामले को लेकर पहुंचे थे सुप्रीम कोर्ट
तत्कालीन बीजेपी सांसद सुब्रह्मण्यन स्वामी इसे सुप्रीम कोर्ट तक लेकर गए. उन्होंने 2009 में दिल्ली हाइकोर्ट में रिट पिटीशन दाखिल करके यह मांग की थी कि ईवीएम के साथ कागज की पर्ची भी निकले ताकि पता चले कि डाला गया वोट किसे गया. हाइकोर्ट में याचिका खारिज होने के बाद वे सुप्रीम कोर्ट पहुंचे, जहां तत्कालीन चीफ जस्टिस सदाशिवम की बैंच ने 2013 में उनकी याचिका को सही करार दिया.
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कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा कि – ‘हम संतुष्ट है कि कागज की पर्ची स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए एक जरूरी चीज है. ईवीएम पर मतदाता का विश्वास तभी कायम हो सकता है जब साथ में कागज की पर्ची भी हो. ईवीएम के साथ वीवीपैट के होने से मतदान प्रणाली की शुद्धता की गारंटी होती है. चूंकि मतदान राय देने का एक जरिया है जो लोकतंत्र के लिए बेहद महत्वपूर्ण है, इसलिए जरूरी है कि ईवीएम के साथ वीवीपैट मशीनें भी लगाई जाएं, ताकि मतदान व्यवस्था की पारदर्शिता बनी रहे और लोगों का व्यवस्था पर यकीन कायम रहे.’
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को इस बात की इजाजत दी कि वीपीपैट लगाने का काम क्रमबद्ध तरीके से कई चरणों में किया जाए और केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि इसके लिए आवश्यक धन उपलब्ध कराया जाए. एक वीवीपैट मशीन की लागत लगभग 20,000 रुपए है. लोकतंत्र में मतदान प्रणाली पर लोगों के विश्वास को कायम रखने की दृष्टि से यह एक मामूली रकम ही है.
यह अब इसलिए भी जरूरी हो गया है कि भारत में कई प्रमुख राजनीतिक दलों ने ईवीएम के जरिए हो रहे मतदान पर संदेह जताया है. इन दलों में संसद में सबसे बड़े विपक्षी दल कांग्रेस से लेकर सपा, बसपा, आरजेडी और तृणमूल कांग्रेस भी शामिल है. कई दल तो मतपत्र के जरिए मतदान की पुरानी व्यवस्था में लौटने की मांग कर रहे हैं.
वीवीपैट से ईवीएम को लेकर जताई जा रही आशंका दूर हो सकती है
ईवीएम से मतदान और बैलेट पेपर से मतदान के बीच एक मध्यमार्गी व्यवस्था ईवीएम के साथ वीवीपैट लगाना है, क्योंकि इससे ईवीएम को लेकर जताई जा रही मुख्य आशंकाएं दूर हो जाती हैं. मतदाता को अपना वोट नजर आता है और पर्चियों की फिर से गिनती मुमकिन है.
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चुनाव आयोग लगातार एक के बाद एक राज्यों में वीवीपैट की व्यवस्था कर रहा है. हाल ही में संपन्न गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनावों में तमाम बूथों पर वीवीपैट लगाए गए थे. यूपी के विधानसभा चुनाव में भी 30 विधानसभा सीटों में हर बूथ पर वीवीपैट लगाए गए थे. अब देश इस बात के लिए तैयार है कि लोकसभा चुनाव में हर मतदान केंद्र पर हर ईवीएम मशीन के साथ वीवीपैट मशीन भी होंगी.
लोकतंत्र के लिए यह न सिर्फ शुभ बल्कि बेहद महत्वपूर्ण भी है, क्योंकि मतदाता का यह भरोसा कायम रहना चाहिए कि उसके मत से सरकारें बनती और बिगड़ती हैं. वोट एक पवित्र चीज है. यही लोकतंत्र का सारतत्व है.
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