बरेली– जब जेल बना रेडियो स्टेशन और कैदी बने ‘रेडियो जॉकी’, तब हुआ कुछ ऐसा

आप की टीवी की स्क्रीन पर दिख रहा रेडियो जॉकी वास्तव में एक रेडियो जॉकी नहीं बल्कि जिला जेल में बंद बंदी है। दरअसल, इन दिनों कोरोना के चलते बंदियों के मन पर कई तरह के प्रभाव पड़े है।

आप की टीवी की स्क्रीन पर दिख रहा रेडियो जॉकी वास्तव में एक रेडियो जॉकी नहीं बल्कि जिला जेल में बंद बंदी है। दरअसल, इन दिनों कोरोना के चलते बंदियों के मन पर कई तरह के प्रभाव पड़े है। इस प्रभाव को कम करने के लिए जिला जेल प्रशासन ने कई कदम उठाए है।

इसी क्रम में बंदियों को मनोरंजन के मकसद से एक रेडियो स्टेशन बनाया गया है जिसमे एक बंदी रेडियो जॉकी की भूमिका निभाता है । साथ ही बंदियों की पहुंची फरमाइशों को फोन या पत्र के माध्यम से उन्हें समझता है फिर अपनी मधुर आवाज में उसका उत्तर देता है।

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इसकी शुरूआत लॉकडाउन के दौरान की गई

कैदियो को रेडियो स्टेशन से न सिर्फ फिल्मी संगीत और गाने सुनाये जा रहे है बल्कि धार्मिक और सामाजिक उपदेश भी सुबह – सुबह सुनाये जाते है, ।दरअसल इसकी शुरूआत लॉक डाउन के दौरान की गई।

कैदियो पर अच्छा प्रभाव भी देखने को मिला

जिला जेल से मिली जानकारी के मुताबिक कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच बंदियों की परिवार से मुलाकात बन्द कर दी गई, जिससे उनके अंदर अवसाद की भावना बढ़ने लगी तभी जेल अधीक्षक ने जेल में बंदियों द्वारा रामलीला के मंचन से लेकर रेडियो स्टेशन की शुरुआत तक सकात्मक कदम उठाये जिसका कैदियो पर अच्छा प्रभाव भी देखने को मिला।

जिला जेल की रेडियो स्टेशन का दायरा जेल के चार दीवारों तक भले ही सीमित हो पर इसकी पहुंच बंदियों के दिल दिमाग तक है। माना जा रहा है जल्द इस शुरुआत की कॉपी सूबे के अन्य जेल भी कोरोना काल मे कर सकते है।

 

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