BJP को भी कांग्रेस वाली ‘बीमारी’? हावी हो रहा हाई-कमान कल्चर

सुभाष मिश्रा

लखनऊ। कांग्रेस के अंदर ‘हाई कमान’ शब्द की एक अलग अहमियत है। यहां जो कुछ होता है, हाई कमान की मर्जी से होता है। कहते हैं कि हाई कमान की मर्जी के बिना कांग्रेस में कोई पत्ता भी नहीं हिलता। अब यही ‘बीमारी’ शायद भारतीय जनता पार्टी (BJP) को भी लग गई है। फिलहाल इसका असर सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश में जीतने वाले पार्टी विधायक महसूस कर रहे हैं। 403 सीटों की विधानसभा में अकेले BJP ने 312 सीटें जीतीं, उसकी गठबंधन पार्टियों द्वारा जीती गई सीटों की कुल संख्या 325 है। इतनी भारी-भरकम जीत हासिल करने के बाद भी नये मुख्यमंत्री को चुनने में विधायकों की कोई खास नहीं सुनी गई। सबसे अहम बात यह है कि विधायकों में से किसी को ना तो मुख्यमंत्री पद मिला और दोनों उपमुख्यमंत्रियों के पद भी उनके हाथ नहीं लगे। CM चुने गए योगी आदित्यनाथ जहां सांसद हैं, वहीं एक उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य भी सांसद ही हैं। दूसरे डेप्युटी CM दिनेश शर्मा लखनऊ के मेयर हैं।

मालूम हो कि 11 मार्च को चुनाव के नतीजे आने के बाद BJP संसदीय बोर्ड की बैठक में सर्वसम्मति से उत्तराखंड और UP के मुख्यमंत्री को चुनने का अधिकार पार्टी अध्यक्ष अमित शाह को दिया गया। शाह ने उत्तराखंड, UP, मणिपुर और गोवा के लिए पार्टी पर्यवेक्षक नियुक्त किए। इन ऑब्ज़र्वर्स को अपनी रिपोर्ट सीधे शाह को सौंपनी थी। माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री का नाम तय करने में सबसे अहम भूमिका मोदी और शाह की है।

विधान पार्षद के एक सदस्य ने अपनी नाराजगी जताते हुए कहा, ‘BJP और कांग्रेस में क्या अंतर रहा? दोनों ही हाई कमान की मर्जी से चलती हैं। विधायकों के बीच इतने सारे अनुभवी नेताओं के होते हुए उनमें से किसी को भी मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया?’ दिल्ली स्थित पार्टी आलाकमान ने केवल मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्रियों के नाम तय किए हों, ऐसा नहीं है। ज्यादातर मंत्रियों के नाम पर भी हाई कमान ने ही मुहर लगाई है। MLC ने आगे बताया, ‘यही कारण है कि ज्यादतर विधायक 11 मार्च के बाद से ही दिल्ली में टिके हुए थे।’

BJP में भी पार्टी आलाकमान तय करता है क्षेत्रीय नेताओं की किस्मत
उत्तर प्रदेश के एक अन्य नेता ने कहा, ‘पार्टी आलाकमान द्वारा क्षेत्रीय नेताओं की किस्मत तय करने की परंपरा कांग्रेस में थी। अब यही रवायत BJP को भी अपनी गिरफ्त में ले रही है।’ पार्टी किसे मुख्यमंत्री पद देगी, इसे लेकर 11 मार्च से ही लगातार कयास लगाए जा रहे थे। जिन लोगों की दावेदारी पर सबसे ज्यादा चर्चा हो रही थी, उनमें केशव प्रसाद मौर्य, मनोज सिन्हा और राजनाथ सिंह के नाम शामिल थे। योगी आदित्यनाथ के नाम की भी संभावना जताई जा रही थी। फिर जब राजनाथ ने खुलकर मुख्यमंत्री पद नहीं लेने की बात कही, तो मौर्य और मनोज सिन्हा के नाम सबसे मजबूती से उभरे थे। ऐसा नहीं कि केवल मीडिया खबरों में ही ऐसी चर्चा थी, बल्कि उत्तर प्रदेश के अंदर प्रशासनिक स्तर पर भी लोग इन दोनों को ही सबसे प्रबल दावेदार मान रहे थे। गाजीपुर जिला प्रशासन को तो इसकी वजह से काफी शर्मिंदगी का भी सामना करना पड़ा।

कयासबाजी के चक्कर में गाजीपुर प्रशासन को झेलनी पड़ी शर्मिंदगी
शनिवार को पार्टी द्वारा मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा किए जाने की बात पहले से तय थी। मनोज सिन्हा गाजीपुर से BJP के सांसद हैं। सिन्हा खुद शनिवार को बरहट गांव में मौजूद थे। गांव में उनकी मौजूदगी की जानकारी मिलते ही स्थानीय अधिकारियों ने जल्दी में उनके भव्य स्वागत की तैयारी कर डाली। शायद जिला प्रशासन को उनका मुख्यमंत्री बनना तय लग रहा था। जब सिन्हा को इस बात का पता चला, तो उन्होंने यह ‘गार्ड ऑफ ऑनर’ लेने से इनकार कर दिया। बाद में पत्रकारों से बात करते हुए सिन्हा ने बताया कि उन्हें इस कार्यक्रम की पूर्व जानकारी नहीं थी। यह पूछे जाने पर कि एक मंत्री को निजी कार्यक्रम में सम्मानित किए जाने का क्या तुक था, कोई भी अधिकारी इसका जवाब नहीं दे सका।

सभार: नवभारत टाइम्स डॉट काम

 

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