वो देश, जहां लाशों के साथ मनाई जाती है पार्टी

दुनिया में न जानें कितने धर्म,जाति के लोग रहते है। सभी धर्म और जाति के लोग अपने रीति-रिवाज के अनुसार त्यौहार मनाते है।

दुनिया में न जानें कितने धर्म,जाति के लोग रहते है। सभी धर्म और जाति के लोग अपने रीति-रिवाज के अनुसार त्यौहार मनाते है। लेकिन आज की इस खबर में हम एक ऐसे त्यौहार के बारे में बताएंगे जिसमें लोग कुछ ऐसा करते है जिसे सुनकर आपके होश उड़ जाएंगे। एक ऐसा त्यौहार जहां लोगों के साथ लाशे भी होती है शामिल।

ये त्यौहार एक खास जनजाति के लोग इस त्यौहार को मनाते है। जिसे मानेने फेस्टिवल के नाम से जाना जाता है। मिली जानकारी के मुताबिक मानेने फेस्टिवल की शुरुआत आज से लगभग 100 साल पहले हुई थी। इस फेस्टिवल को मनाने के पीछे एक रोमांचक कहानी भी छीपी है।
लोगों के अनुसार सौ साल पहले गांव में टोराजन जनजाति का एक शिकारी जंगल में शिकार के लिए गया था। पोंग रुमासेक नाम के इस शिकारी को बीच जंगल में एक लाश दिखी। सड़ी-गली लाश को देखकर रुमासेक रुक गया। उसने लाश को अपने कपड़े पहनाकर अंतिम संस्कार किया।

जिसके बाद से रुमासेक की जिंदगी में काफी बदलाव हुए। रूमासेक के जीवन की सारी परेशानी दूर हो गई। वहीं इस घटना के बाद से ही टोराजन जनजाति के लोगों में अपने पूर्वजों के लाश को सजाने की प्रर्था शुरू कर दी। मान्यता है कि लाश की देखभाल करने पर पूर्वजों की आत्माएं आशिर्वाद देती हैं।

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आपको बता दे कि, इस त्यौहार की शुरुआत व्यक्ति के मरने के बाद शुरू हो जाती है। घर के किसी सदस्य की मौत हो जाने पर उसे एक ही दिन के अंदर दफना कर फेस्टिवल मनाया जाता है और ये त्यौहार कई दिनों तक चलाता है। ये सारी चीजें मृत व्यक्ति को खुश करने के लिए की जाती हैं। त्योहार के दौरान परिजन बैल और भैंसें जैसे जानवरों को मारते हैं और उनके सींगों से मृतक का घर सजाते हैं। कहा जाता है कि जिसके घर पर जितनी सींगें लगी होंगी, अगली यात्रा में उसे उतना ही सम्मान मिलेगा।

घर सजाने के बाद मृतक को जमीन में दफनाने की जगह लकड़ी के ताबूत में बंद करके गुफाओं में रखा जाता है। अगर किसी 10 साल से कम उम्र के बच्चे की मौत हो जाएं तो उसे पेड़ की दरारों में रख दिया जाता है। मरने के बाद मृतक के शरीर को सुरक्षित रखने के लिए कई दिनों तक अलग-अलग कपड़ो में लपेट के रखा जाता है।

बात यहीं खत्म नहीं होती है मृतक को कपड़े पहनाने के साथ उसे सजाया भी जाता है। सजीने के बाद लोग मृतक को लकड़ी के ताबूत में बंदकर पहाड़ी गुफा में रख देते हैं। वहीं मृतक की सुरक्षा के लिए लोग गुफा के बाहर लकड़ी का एक पुतला रख देते है। जिसे ताउ-ताउ कहा जाता है। इस रिवाज को मनाते हुए इंडोनेशिया में हर 3 साल पर लाशों को फिर से बाहर निकाला जाता है और उसे दोबारा नए कपड़े पहनाकर तैयार किया जाता है।

साभार

 

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