EXCLUSIVE: NEET को पलीता लगाने वाले शातिर, घूस के बदले सीट बेचने वाले मेडिकल कॉलेज बेनकाब

नई दिल्ली। देश के मेडिकल एजुकेशन सेक्टर में घुसे कुछ शातिर लोग मेडिकल कॉलेजों में दाखिले के लिए परीक्षा के जरिए होने वाली प्रक्रिया को पलीता लगाने में लगे हैं. देश भर में नेशनल एलिजिबिलिटी-कम-एन्ट्रेंस टेस्ट (NEET) में प्रदर्शन के आधार पर छात्रों को मेडिकल कॉलेजों में दाखिला दिया जाता है. इंडिया टुडे की स्पेशल इंवेस्टीगेशन टीम की जांच में सामने आया है कि NEET में नीचे रैंक हासिल करने वाले छात्रों से मोटा डोनेशन वसूलने के बाद उनके लिए सीटों को पहले से ही ब्लॉक कर दिया जाता है.

NEET को इस मकसद से शुरू किया गया था कि मेडिकल कॉलेजों में दाखिले की इच्छा रखने वाले छात्रों पर मानसिक और आर्थिक बोझ को हल्का किया जा सके. इसके साथ ही कैपिटेशन फीस जैसी अनियमितताओं को रोक कर ये सुनिश्चित किया जा सके कि केवल योग्य छात्रों को ही मेडिकल कॉलेजों में दाखिला मिले. कई शिक्षा विशेषज्ञों ने इस नए सिस्टम का स्वागत किया. भारतीय चिकित्सा परिषद (MCI), केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट के साझा प्रयासों की वजह से ही सभी मेडिकल अभ्यर्थियों को एक ही परिधि में लाने वाला NEET अस्तित्व में आ सका.

अप्रैल 2016 में शीर्ष अदालत ने NEET को दोबारा अमल में लाने का आदेश दिया. ये MCI की उस अधिसूचना को कोर्ट की ओर से अवैध करार देने के तीन साल बाद हुआ जिसमें MBBS और BDS के लिए संयुक्त प्रवेश परीक्षा कराने का प्रावधान था. इंडिया टुडे की स्पेशल इंवेस्टीगेशन टीम ने पड़ताल में पता लगाया कि किस तरह कुछ मेडिकल कॉलेज अब भी योग्यता की अनदेखी कर परीक्षा में निम्न स्तर का प्रदर्शन करने वाले छात्रों को दाखिला देने के लिए छल का सहारा ले रहे हैं.

मेरठ के मुलायम सिंह यादव कॉलेज की सीईओ डॉ. हिमानी अग्रवाल ने निम्न स्तर का प्रदर्शन करने वाले छात्र को अपने इंस्टीट्यूट में सीट देने के लिए 15 लाख रुपये की मांग की. यहां ये बता दें कि इस इंस्टीट्यूट का समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव से कोई लेना देना नहीं है. डॉ. अग्रवाल ने अंडर कवर रिपोर्टरों से कहा, हम NEET में 200 अंकों से नीचे हासिल करने वाले छात्रों से 15 लाख रुपये ले रहे हैं. फीस का खाका अलग से होगा. रिपोर्टरों ने खुद को नीट में लो रैंक हासिल करने वाले छात्र के रिश्तेदार के तौर पर बात की थी.

डॉ. हिमानी अग्रवाल ने बात को स्पष्ट करते हुए कहा, ’15 लाख रुपये सिर्फ डोनेशन के हैं, ठीक! इसके अलावा फीस और वार्षिक शुल्कों का भुगतान करना होगा. कुल मिलाकर पहले साल के लिए 16 लाख, दूसरे-तीसरे और चौथे साल के लिए 11 लाख और अंतिम साल के लिए 5.5 लाख रुपये.’ मुलायम सिंह यादव कॉलेज ने अपनी वेबसाइट पर दावा कर रखा है कि इसे अवार्ड विजेता डॉक्टरों और उद्यमियों की ओर से संचालित किया जाता है. लेकिन इसकी सीईओ कैमरे पर खुद ही पिछले दरवाजे से दाखिलों के लिए लेनदेन की बात करते कैद हो गई.

सीईओ डॉ. हिमानी अग्रवाल ने वादा किया, ‘मेरी बात ध्यान से सुनिए, दाखिला हो जाएगा. इसीलिए हम पैसा ले रहे हैं. (काउंसलिंग के जरिए दाखिले के बाद)…हमारे पास (फाइनल) मॉप-अप राउंड के लिए सीटें बची हैं. हमारे पास कुल 150 सीटें हैं. हम उम्मीद करते हैं कि 50-60 सीट मॉप-अप राउंड के लिए बच जाएंगी. हम 30 सीटों के बाद दाखिले (प्री बुकिंग) बंद कर देंगे.

बता दें कि NEET प्रक्रिया के दौरान क्वालिफाई करने वाले छात्रों को निर्धारित काउंसलिंग अधिकारियों के सामने योग्यता के आधार पर सरकारी या प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में दाखिले की संस्तुति के लिए आवेदन करना होता है. काउंसलिंग स्टेज में जो बच जाते हैं वो दाखिले के लिए फाइनल मॉप-राउंड में हिस्सा ले सकते हैं. ये मामले ऐसे कॉलेजों को भेजे जाते हैं जहां खाली सीटें बची होती हैं. यही वो स्टेज हैं जहां डॉ अग्रवाल जैसों के इंस्टीट्यूट खेल करते हैं.

मॉप-अप लिस्ट ऐसे कॉलेजों को भेजे जाने से पहले ही वे उन लो रैंक वाले आवेदकों के लिए सीटों की पहले से ही बुकिंग कर लेते हैं जो घूस देने की क्षमता रखते हैं. डॉ. हिमानी अग्रवाल ने माना कि ये घोटाला भ्रष्ट अधिकारियों की मिलीभगत से ही मुमकिन होता है. उन्होंने कहा, ‘ये सारा कैश दूसरों के साथ साझा किया जाता है. यही प्रक्रिया है.’

अंडर कवर रिपोर्टर ने पूछा, ‘क्या हम अभी सीट बुक कर सकते हैं.’

डॉ. हिमानी अग्रवाल- वो मैं नकद (हाथ में) आने के बाद ही करूंगी. हमें आगे भी एकमुश्त रकम भेजनी होती है. सीट को खाली (सुरक्षित) रखने के लिए हमें आगे भी देना (पैसा) होता है. घूस हर जगह काम करती है भाई. करीब 98 फीसदी पैसा हमारे पास नहीं रहेगा. समझने की कोशिश करो. हमारे पास तभी कुछ (ठोस) रहेगा जब हम करोड़ों में चार्ज करें.

डॉ. अग्रवाल ने अंडर कवर रिपोर्टर को बताया कि डोनेशन देने वाले कम से कम 12 सीटों को ब्लॉक करा चुके हैं. उन्होंने कहा, ‘एक या दो दिन में 5 से 6 (सीटें) और ब्लॉक हो जाएंगी.’

इंडिया टुडे की स्पेशल इंवेस्टीगेशन टीम ने इसके बाद लखनऊ के व्यस्त इलाके सरफराजगंज में एराज़ लखनऊ मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल का रुख किया. यहां दाखिलों के लिए प्रशासनिक विभाग के अधिकारियों- वसीम मोहसिन और वसीम अहमद ने ‘विटामिन C’ की मांग की. दरअसल ये कोड था NEET के लो रैंक वाले छात्रों को दाखिला देने के लिए कैपिटेशन फीस के तौर पर नकद की डिमांड का.

मोहसिन ने कहा, ‘प्रक्रिया वैसे ही रहेगी. आपके उम्मीदवार का नाम चुन लिया जाएगा. इंशाअल्लाह. हम कोशिश करेंगे. ये संभव है कि उसे पहले ही राउंड में दाखिला मिल जाए. नहीं तो, हम मॉप-अप में जाएंगे. अगर ये (दाखिला) नहीं हो सका तो आपकी दी हुई रकम लौटा दी जाएगी.’

अंडर कवर रिपोर्टर ने पूछा- ‘कितना देना होगा?’

मोहसिन- ‘दस (लाख)’

मोहसिन ने साफ करते हुए कहा- ‘ये विटामिन C है. ये नकद हिस्सा फीस से अलग होगा. आप इसे डोनेशन, मेडिसिन कह सकते हैं. आप विटामिन C भी कह सकते हैं, लेकिन आप कैश का जिक्र नहीं कर सकते.’

इंडिया टुडे की स्पेशल इंवेस्टीगेशन टीम ने फिर लखनऊ के अमौसी क्षेत्र में स्थित टी एस मिश्रा मेडिकल कॉलेज एंड हास्पिटल की पड़ताल की. यहां अंडर कवर रिपोर्टर्स कॉलेज के दो अधिकारियों मनीष त्रिपाठी और नरेंद्र पांडे से मिले. उन्होंने अपनी पहचान 2015 में स्थापित हुए इस इंस्टीट्यूट के वित्त अधिकारियों के तौर पर दी. त्रिपाठी ने कहा, ‘इसी के लिए हम यहां बैठे हैं. हम भी कुछ चाहते हैं, इसी तरह कॉलेज भी जिसे कम से कम 150 सीटें भरनी हैं.’

मनीष त्रिपाठी के दावे के मुताबिक पिछले साल बैक डोर से एक दाखिले के लिए औसतन 10 लाख रुपये चार्ज किए गए थे.

नरेंद्र पांडे ने कहा, ‘ये 20 लाख से शुरू होता है. कुछ 15 (लाख) पर तैयार होते हैं, कुछ 12 और कुछ 13 पर.’

वहीं, मेरठ के मुलायम सिंह यादव मेडिकल कॉलेज की अध्यक्षा डॉ. सरोजिनी अग्रवाल ने इंस्टीट्यूट के दाखिलों को लेकर किसी तरह की अनियमितता में शामिल होने से इनकार किया है. डॉ. सरोजिनी अग्रवाल ने इंडिया टुडे से कहा, ‘मैं नहीं जानती कि आपकी सीडी पर क्या है? मैंने उसे देखा नहीं है. लेकिन मैं इतना जानती हूं कि हमारे मेडिकल कॉलेज में दाखिले की प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी है. ये हमारा पहला बैच है. काउंसलिंग अधिकारियों की संस्तुति पर हमारी सभी सीटें भर चुकी हैं.’

डॉ. सरोजिनी अग्रवाल ने दावा किया कि ‘दाखिलों में ‘गड़बड़ी’ की कोई गुंजाइश नहीं है. ये कहना पूरी तरह निराधार है कि 200 अंकों से नीचे वालों को दाखिला दिया जा सकता है. न्यूनतम कट-ऑफ 329 है. ये कहना भ्रामक है कि दाखिलों के लिए पैसे लिए गए. हमारे यहां कोई मैनेजमेंट कोटा नहीं है. हमारी प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी और जांच के लिए खुली है.’

इंडिया टुडे ने जब एरा’ज लखनऊ मेडिकल कॉलेज से जुड़े वसीम अहमद से ओपन कैमरे पर संपर्क किया तो उन्होंने किसी तरह के गलत काम से इनकार किया. उन्होंने कहा, ‘मैंने कभी नहीं कहा कि NEET के जरूरी स्कोर के बिना दाखिला हो सकता है. ये डीजी मेडिकल एजुकेशन और सरकार की ओर से ही दाखिलों को लेकर निर्णय लिया जा सकता है. हम दाखिलों पर कैसे निर्णय ले सकते हैं.’

वसीम अहमद ने दावा किया, ‘सब कुछ DGME (डायरेक्टर जनरल ऑफ मेडिकल एजुकेशन) की तरफ से ही सब कुछ होता है. काउंसलिंग, फीस, डॉक्यूमेंटेशन, सब कुछ वहीं से होता है. हम ये कैसे कर सकते हैं. हम इस तरह की चीज़ें नहीं करते.’

स्वास्थ्य राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने कहा है कि यदि कोई मेडिकल कॉलेज गलत तरीके अपनाता है तो सरकार उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई करेगी. यदि कोई कॉलेज अनियमितता करता है और इसे साबित करने वाले पुख्ता सबूत मौजूद हैं, तो राज्य सरकारें समुचित कार्रवाई करेंगी. केंद्र सरकार को ऐसी अनियमितताओं की सूचना मिलती है, तो वो ऐसे कॉलेजों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की संस्तुति करेगी.’

उन्होंने आगाह किया कि जो इंस्टीट्यूट सीटें बेचते पाए जाएंगे, वो अपनी मान्यता से हाथ धो सकते हैं. अश्विनी कुमार चौबे ने कहा, ‘मैं सभी छात्रों और उनके अभिभावकों से अपील करता हूं कि वो ऐसे कॉलेजों के भुलावे में ना आएं. यदि राज्य सरकार कार्रवाई की सिफारिश करती है तो केंद्र सरकार उनकी मान्यता रद्द कर सकती है. उनके खिलाफ भी कार्रवाई की जा सकती है जो गलत तरीकों से दाखिला लेते हैं. हमारी सरकार भ्रष्ट कॉलेजों के खिलाफ जो भी सख्त से सख्त कार्रवाई संभव है वो करने के लिए प्रतिबद्ध है.’

साभार: aajtak.in , नितिन जैन/मो. हिज्बुल्लाह की रिपोर्ट 

 

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