गोरखपुर: नवरात्रि में बुढ़िया माता मंदिर पर होती है श्रद्धालुओं की भीड़, जंगलों के बीच है इनका मंदिर

यूपी के गोरखपुर जिले में स्थित के बुढ़िया माता मंदिर की ख्‍याति देश और विदेशों तक है। हर साल चैत्र और शारदीय नवरात्रि के अलावा पूरे साल यहां भक्‍तों की भीड़ लगी रहती है। यहां पर मां के दो मंदिर है। एक प्राचीन मंदिर और दूसरा नवीन मंदिर।

यूपी के गोरखपुर जिले में स्थित के बुढ़िया माता मंदिर की ख्‍याति देश और विदेशों तक है। हर साल चैत्र और शारदीय नवरात्रि के अलावा पूरे साल यहां भक्‍तों की भीड़ लगी रहती है। यहां पर मां के दो मंदिर है। एक प्राचीन मंदिर और दूसरा नवीन मंदिर। दोनों ही मंदिरों पर भक्‍तों की भीड़ जुटती हैं। प्राचीन मंदिर में जाने के लिए नाव से पोखरा पार करना पड़ता है। कहते हैं कि बुढ़िया माता की जो भक्‍त सच्‍चे हृदय से यहां आकर पूजा करता है, वो कभी असमय काल के गाल में नहीं समाता है। गोरखपुर शहर से 15 किमी पूर्व में कुसम्‍ही जंगल के बीच में बुढ़िया माता का मंदिर स्थित है।

क्या है मान्यता?
मान्यताओं के अनुसार यहां बहुत घना जंगल था। जिसमें एक नाला बहता था। तुर्रा नाले पर लकड़ी का एक पुल भी होता था। एक दिन वहां एक बारात आकर नाले के पूरब तरफ रुकी। वहां सफेद वस्त्रों में एक बूढ़ी महिला बैठी थी। उसने नाच मंडली से नाच दिखाने को कहा। नाच मंडली बूढ़ी महिला का मजाक उड़ाते हुए चली गई, लेकिन जोकर ने बांसुरी बजाकर पांच बार घूमकर महिला को नाच दिखा दिया। उस बूढ़ी महिला ने प्रसन्न होकर जोकर को आगाह किया कि वापसी में तुम सबके साथ पुल पार मत करना।

दोनों मंदिर के बीच है नाला
तीसरे दिन बारात लौटी तो वही बूढ़ी महिला पुल के पश्चिम की ओर बैठी मिली। बारात जब बीच पुल पर आई तो पुल टूट गया और पूरी बारात नाले में डूब गई। पूरी बारात में सिर्फ वह जोकर बचा जो बारात के साथ आगे नहीं बढ़ा। इसके बाद बूढ़ी महिला अदृश्य हो गई। तभी से नाले के दोनों तरफ का स्थान बुढ़िया माई के नाम से जाना जाता है। नाले के दोनों ओर प्राचीन और नवीन मंदिर है। इन दोनों मंदिरों के बीच के नाले को नाव से पार किया जाता है।

चमत्कारी बुजुर्ग महिला के सम्मान में बना मंदिर!

कहा जाता है कि शहर से दूर गोरखपुर-कुशीनगर नेशनल हाईवे के पास कुस्मही जंगल में स्थापित देवी का मंदिर एक चमत्कारी वृद्ध महिला के सम्मान में बनाया गया। वहीं, एक मान्‍यता ये भी है कि पहले यहां थारू जाति के लोग निवास करते रहे हैं। वे जंगल में सात पिंडी बनाकर वनदेवी के रूप में पूजा करते थे। थारुओं को अक्सर इस पिंडी के आसपास सफेद वेश में एक वृद्ध दिखाई दिया करती रही है। कुछ ही पल में वह आंखों से ओझल भी हो जाती है। मान्यताओं के अनुसार सफेद लिबास में दिखने वाली महिला जिससे नाराज हो जाती थी, उसका सर्वनाश होना तो तय रहता और जिससे प्रसन्न हो जाए, उसकी हर मनोकामना पूरी कर देती।

 

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