Govardhan Pooja 2020: भगवान श्रीकृष्ण ने गोपाल बनकर दिया था ये संदेश

गोवर्धन पूजा 15 नवंबर को है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, कार्तिक माह शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा का पर्व मनाया जाता है। इस दिन गोवर्धन और गाय की पूजा का विशेष महत्व होता है।

गोवर्धन पूजा 15 नवंबर को है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, कार्तिक माह शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा का पर्व मनाया जाता है। इस दिन गोवर्धन और गाय की पूजा का विशेष महत्व होता है। इस दिन लोग घर के आंगन में गोबर से गोवर्धन पर्वत का चित्र बनाकर गोवर्धन भगवान की पूजा करते हैं। आइए जानते हैं भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं गोपाल बनकर क्या संदेश दिया था।

ये भी पढ़े- भैया दूज पर यमराज ने किया था अपनी बहन से यह खास वादा….

पढ़िए….
राष्ट्र की रक्षा के लिए, गोवंश की रक्षा के लिए गौसदन की परिकल्पना हमारे धर्माचार्यों और समाजशास्त्रियों ने की। भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं गोपाल बनकर यही संदेश दिया। ऋग्वेद में गौ की महत्ता प्रदर्शित करता हुआ ऐसा अभिलेख है- माता रुद्राणां दुहिता वसूनां स्वसाऽऽदित्यानाममृतस्य नाभि:।

हमारी संस्कृति अंधकार से प्रकाश की ओर, असत् से सत् की ओर एवं मृत्यु से अमरत्व की ओर प्रयाण करने वाली है। ‘असतो मा सदगमय तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्मामृतं गमय।’ के गीत हम गाते हैं और इन महान लक्ष्यों की सिद्धि में गौ सर्वाधिक सहायिका है।रुद्रदेवों की माता के रूप में यह समस्त संसार में कल्याण का प्रसार करने वाली, वसुओं की पुत्री के रूप में समृद्धिदात्री तथा आदित्यों की बहन के रूप में अंधकार से प्रकाश- ‘लोक की ओर ले जाने वाली है। साक्षात अमृतनाभि होने से यह अमरत्व का वरदान बिखेरती है। गाय हमारी धार्मिक संस्कृति का महत्वपूर्ण अंग है। हमारे ऋषि-महर्षियों द्वारा दिखाया गया गौसेवा का मार्ग मात्र कपोल कल्पित परम्परा नहीं थी बल्कि आज के वैज्ञानिक भी उस गौसेवा को स्वीकार करने लगे हैं। संसार का पहला ज्ञानग्रंथ ‘वेद’ है जिसमें ‘गावो विश्वस्य मातर:’ कह कर उसकी महिमा गाई गई है।

मां के दूध के बाद किसी दूध की महिमा है तो वह गाय का ही दूध है। गाय सभी को पोषण देती है, किसी को विकृति नहीं देती। जो समाज गाय का सम्मान नहीं कर पाए, वह कृतघ्र है। अत: गोवंश की रक्षा व पोषण-संवर्धन करना हमारा उपकार नहीं, नैतिक कर्तव्य है। परम पराक्रमी पृथु ने भी गौसेवा धर्म की महत्ता समझते हुए आजीवन गौसेवा धर्म, गौरक्षा व्रत का पूरी निष्ठा से पालन किया। हमारे सर्वाधिक महान गोभक्त हुए राजा दिलीप जिनकी गौ सेवा अद्वितीय तथा अनुपम है। भगवान श्री रामचंद्र ने यह परंपरा अक्षुण्ण रखी क्योंकि वह तो साक्षात मर्यादा पुरुषोत्तम ही ठहरे। गौसेवा उनका कुलधर्म और राजधर्म ही थी, साथ ही गौ (धरित्री) पर अत्याचारों को दूर करने ही तो वे भूतल पर आए थे। बिप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार। निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गो पार॥

यवनों के अत्याचारों के विरुद्ध हिन्दू राज्य की स्थापना का स्तुत्य प्रयास करने वाले छत्रपति शिवाजी तथा बंदा वैरागी ने भी गौरक्षा धर्म को सर्वप्रमुख स्थान दिया।

 

देश-विदेश की ताजा ख़बरों के लिए बस करें एक क्लिक और रहें अपडेट 

हमारे यू-टयूब चैनल को सब्सक्राइब करें :

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें :

कृपया हमें ट्विटर पर फॉलो करें:

हमारा ऐप डाउनलोड करें :

हमें ईमेल करें : [email protected]

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button