HC ने दिया ममता को झटका, कहा- नई तारीखों पर हो पंचायत चुनाव

नई दिल्ली। कोलकाता हाईकोर्ट ने पश्चिम बंगाल में सत्तारुढ़ तृणमूल कांग्रेस को तगड़ा झटका देते हुए राज्य चुनाव आयोग को बंगाल में होने वाले पंचायती चुनाव की तारीखों में फेरबदल करने को कहा है. साथ ही आयोग को निर्देश भी दिया कि नई तारीखों के साथ-साथ नामांकन प्रक्रिया की तारीख भी बढ़ाई जाए.

कोर्ट ने चुनाव आयोग के पंचायत चुनाव के फैसले को रद्द कर दिया है. उसने कहा कि आयोग चुनाव नई तारीखों का ऐलान करे, साथ ही नामांकन प्रक्रिया को लेकर नई अधिसूचना जारी की जाए. पंचायत चुनाव अब नई तारीखों के आधार पर आयोजित कराए जाएं.

विजय जुलूस में 2 लोग मारे गए

पंचायत चुनाव की तारीखों में फेरबदल का आदेश उस एक घटना के बाद आया है, जिसमें 11 अप्रैल को उत्तरी 24 परगना जिले में विजय जुलूस के दौरान सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस में संदिग्ध गुटीय लड़ाई में दो व्यक्तियों की मौत हो गई थी. जिले के सासन इलाके में फाल्ती ग्राम पंचायत में पार्टी उम्मीदवार की निर्विरोध जीत के बाद रैली निकाली गई थी. इस चुनाव में बड़ी संख्या में सत्तारुढ़ पार्टी के लोग निर्विरोध चुन लिए गए थे, जिसके बाद विपक्षी दलों ने हंगामा शुरू कर दिया.

पार्टी के स्थानीय नेता सैफर रहमान (52) जब रैली में चल रहे थे तो उन पर चाकू से हमला किया गया. इसके बाद तृणमूल कांग्रेस के 40 वर्षीय कार्यकर्ता रजब अली पर यह आरोप लगाते हुए स्थानीय लोगों ने पीट-पीटकर मार डाला कि उसने रहमान की हत्या की है. इसके अलावा राज्य में पंचायत चुनाव नामांकन को लेकर कई जगहों पर हिंसक घटनाएं हुई थीं.

कई जगहों से निर्विरोध निर्वाचित

पंचायत चुनाव से पहले ही तृणमूल कांग्रेस के कई उम्मीदवार निर्विरोध निर्वाचित घोषित कर दिए गए. बीरभूम जिला परिषद की 42 में से 41 सीटों पर टीएमसी के उम्मीदवार बिना लड़े ही चुनाव जीत गए, जबकि 19 पंचायत समितियों में से 14 पर टीएमसी उम्मीदवारों को निर्विरोध विजेता घोषित कर दिया गया.

मुर्शिदाबाद में भी टीएमसी ने 30 पंचायत समितियों में से 29 पर निर्विरोध जीत हासिल की. भरतपुर द्वितीय में टीएमसी ने 21 पंचायत समितियों की सीट पर जीत हासिल की है. वहीं बर्दवान में भी ममता बनर्जी की पार्टी को सभी 39 पंचायत समितियों की सीट पर एकतरफा जीत मिली थी.

मई के पहले हफ्ते में होने थे चुनाव

पहले से तय कार्यक्रम के अनुसार पंचायत चुनाव एक, तीन और पांच मई को तीन चरणों में कराए जाने थे. जिसके नामांकन-पत्र दाखिल करने की आखिरी तारीख 9 अप्रैल थी, जबकि आयोग ने इसकी अवधि 10 अप्रैल तक के लिए बढ़ा दी थी. उसके बाद हाईकोर्ट ने 12 अप्रैल को सभी प्रकार की चुनावी प्रक्रिया पर 16 अप्रैल तक रोक लगा दी और आयोग से विस्तृत रिपोर्ट मांगी थी.

इससे पहले पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने माकपा, कांग्रेस और बीजेपी पर राज्य में पंचायत चुनाव प्रक्रिया में जानबूझ कर देरी कराने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा था, ‘माकपा, कांग्रेस और बीजेपी तीन भाई हैं जो नई दिल्ली में एक भूमिका निभाते हैं और पश्चिम बंगाल में दूसरी. वे बेबुनियाद खबरें और अफवाह फैला रहे हैं और मुख्य रूप से टेलीविजन शो पर अपने चेहरे दिखाने के लिए यह सब करते हैं.’

कोलकाता हाईकोर्ट ने लगाई थी चुनाव पर रोक

इससे पहले बीजेपी ने छह मार्च को कोलकाता हाईकोर्ट से कहा था कि पश्चिम बंगाल में ‘लोकतंत्र की हत्या’ की जा रही है क्योंकि सत्तारुढ़ तृणमूल कांग्रेस व्यापक पैमाने पर चुनावी हिंसा में लिप्त है और आगामी पंचायत चुनाव के लिए विपक्ष के उम्मीदवारों को पर्चा दाखिल नहीं करने दे रही.

उसने यह भी आरोप लगाया कि पश्चिम बंगाल राज्य निर्वाचन आयोग की ओर से नियुक्त सहायक पंचायत चुनाव पंजीकरण अधिकारी बीजेपी उम्मीदवारों को नामांकन के फॉर्म देने से इनकार कर रहा है. पश्चिम बंगाल बीजेपी ने नामांकन पत्र ऑनलाइन उपलब्ध करवाने की मांग की थी.

जिस पर संज्ञान लेते हुए 12 अप्रैल को हाईकोर्ट ने सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस को बड़ा झटका दिया था. कोर्ट ने पंचायत चुनाव प्रक्रिया पर 16 अप्रैल तक रोक लगा दी थी. हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग से कोर्ट के सामने चुनाव से जुड़ी सारी रिपोर्ट पेश करने को कहा था.

 

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