IPS को धमकी देने के आरोप में सपा सुप्रीमो मुलायम के खिलाफ FIR दर्ज

लखनऊ। आईपीएस अफसर अमिताभ ठाकुर की शिकायत पर हजरतगंज कोतवाली में सपा सुप्रीमो के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जा चुकी है। सूत्रों के मुताबिक हजरतगंज कोतवाली इंचार्ज विजयमल यादव ने कोर्ट को लिखित जानकारी देते हुए कहा था कि मुलायम सिंह यादव के खिलाफ 24 सितंबर को ही केस दर्ज कर लिया गया था। इस मामले की अपराध संख्या 562/15 हैं। उन पर सीआरपीसी की धारा 156/3 के अनुसार आईपीसी की धारा 506 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है। लेकिन यह बात सोमवार को तब सामने आई जब ठाकुर हजरतगंज कोतवाली के सामने धरने पर बैठे। उधर, अमिताभ ठाकुर और नूतन ठाकुर का कहना है कि उन्हें अभी तक एफआईआर की कॉपी नहीं दी गई है, जबकि रूल के मुताबिक शिकायत करने वाले को एफआईआर की कॉपी दी जाती है।
धरने पर बैठे थे अमिताभ
आईपीएस अमिताभ ठाकुर गुरुवार की सुबह से हजरतगंज कोतवाली में धरने पर बैठे थे। इस दौरान उन्होंने कहा, ‘हजरतगंज कोतवाली का नाम बदलकर मुलायम सिंह यादव कोतवाली रख दिया जाए। इतना ही नहीं इसके गेट पर एक बोर्ड लगा दिया जाए कि इस कोतवाली पर मुलायम सिंह यादव के खिलाफ मुकदमा नहीं दर्ज किया जाएगा। जब भी मैं पुलिस के सामने आकर मुलायम सिंह यादव के खिलाफ केस दर्ज करने की मांग करता हूं, तो उनके खिलाफ कुछ नहीं होता, बल्कि मेरे ऊपर ही केस दर्ज हो जाता है।’
17 दिन पहले आया था कोर्ट का आदेश
इस मामले में सीजेएम कोर्ट ने 17 दिन पहले ही मुकदमा दर्ज करने का आदेश दिया था। लेकिन सोमवार सुबह तक जब अमिताभ ठाकुर को यह जानकारी नहीं दी गई कि मुलायम के खिलाफ केस दर्ज किया जा चुका है, तो वे इंसाफ गुहार लगाते हुए धरने पर बैठ गए थे।
इस मामले में सीजेएम कोर्ट ने 17 दिन पहले ही मुकदमा दर्ज करने का आदेश दिया था। लेकिन सोमवार सुबह तक जब अमिताभ ठाकुर को यह जानकारी नहीं दी गई कि मुलायम के खिलाफ केस दर्ज किया जा चुका है, तो वे इंसाफ गुहार लगाते हुए धरने पर बैठ गए थे।
ये था पूरा मामला
आईजी अमिताभ ठाकुर का कहना था कि उनके मोबाइल पर 10 जुलाई की शाम 4:43 बजे 0522-2235477 नंबर से फोन आया। फोन करने वाले ने कहा कि मुलायम सिंह यादव बात करना चाहते हैं। इसके बाद उनसे दो मिनट 10 सेकंड तक बातचीत में मुलायम सिंह ने धमकाने के अंदाज में कहा कि सुधर जाओ। उन्होंने फिरोजाबाद के जसराना की घटना का हवाला दिया था। बता दें कि फिरोजाबाद में एसपी रहते वक्त अमिताभ ठाकुर को मुलायम सिंह के समधी रामवीर सिंह ने पिटवाया था। जिसकी एफआईआर उस वक्त अमिताभ ने दर्ज कराई थी। मुलायम से उनकी कथित बातचीत का ऑडियो आईपीएस की पत्नी और सोशल एक्टिविस्ट नूतन ठाकुर ने जारी किया था।
आईजी अमिताभ ठाकुर का कहना था कि उनके मोबाइल पर 10 जुलाई की शाम 4:43 बजे 0522-2235477 नंबर से फोन आया। फोन करने वाले ने कहा कि मुलायम सिंह यादव बात करना चाहते हैं। इसके बाद उनसे दो मिनट 10 सेकंड तक बातचीत में मुलायम सिंह ने धमकाने के अंदाज में कहा कि सुधर जाओ। उन्होंने फिरोजाबाद के जसराना की घटना का हवाला दिया था। बता दें कि फिरोजाबाद में एसपी रहते वक्त अमिताभ ठाकुर को मुलायम सिंह के समधी रामवीर सिंह ने पिटवाया था। जिसकी एफआईआर उस वक्त अमिताभ ने दर्ज कराई थी। मुलायम से उनकी कथित बातचीत का ऑडियो आईपीएस की पत्नी और सोशल एक्टिविस्ट नूतन ठाकुर ने जारी किया था।
कोर्ट में पेश होकर करवानी पड़ सकती है जमानत
इलाहाबाद हाईकोर्ट के सीनियर एडवोकेट हरिशंकर जैन ने बताया कि आईपीसी की धारा 506 की धारा के तहत मामला दर्ज होने के बाद मुलायम को अपनी जमानत करवाने के लिए कोर्ट जाना ही पड़ेगा। जैन ने यह भी बताया कि मुलायाम सिंह यादव के पास दूसरा विकल्प है कि वे मुकदमे को हाईकोर्ट में चैलेंज कर सकते हैं।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के सीनियर एडवोकेट हरिशंकर जैन ने बताया कि आईपीसी की धारा 506 की धारा के तहत मामला दर्ज होने के बाद मुलायम को अपनी जमानत करवाने के लिए कोर्ट जाना ही पड़ेगा। जैन ने यह भी बताया कि मुलायाम सिंह यादव के पास दूसरा विकल्प है कि वे मुकदमे को हाईकोर्ट में चैलेंज कर सकते हैं।
क्या हैं सीआरपीसी की धाराएं और क्या हैं मजिस्ट्रेट के अधिकार?
एडवोकेट अभय प्रताप सिंह के अनुसार, सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत मजिस्ट्रेट को यह अधिकार है कि वह केस की जांच के लिए संबंधित पुलिस थाने को भेज दे। साथ ही जब किसी की शिकायत पर पुलिस केस दर्ज नहीं करती और मामला गंभीर हो तो शिकायत करने वाला कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है। मजिस्ट्रेट धारा-190 के तहत शिकायत पर गौर करने के बाद संज्ञान (Cognizance) ले सकता है। कोर्ट शिकायत करने वाले की तरफ से पेश सबूत और दस्तावेजों से संतुष्ट हो जाता है तो वह धारा-156 (3) के तहत संबंधित थाने के एसएचओ को मामला दर्ज करने या फिर छानबीन का आदेश दे सकता है। वहीं, सीआरपीसी की धारा 200 के तहत मजिस्ट्रेट जिसके खिलाफ शिकायत की गई है, उसका बयान ले सकते हैं, जबकि सीआरपीसी की धारा 202 के तहत मजिस्ट्रेट अन्य गवाहों के बयान लेते हैं। मजिस्ट्रेट चाहें तो खुद मामले में जांच कर सकते हैं या पुलिस से जांच करवा सकते हैं।
एडवोकेट अभय प्रताप सिंह के अनुसार, सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत मजिस्ट्रेट को यह अधिकार है कि वह केस की जांच के लिए संबंधित पुलिस थाने को भेज दे। साथ ही जब किसी की शिकायत पर पुलिस केस दर्ज नहीं करती और मामला गंभीर हो तो शिकायत करने वाला कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है। मजिस्ट्रेट धारा-190 के तहत शिकायत पर गौर करने के बाद संज्ञान (Cognizance) ले सकता है। कोर्ट शिकायत करने वाले की तरफ से पेश सबूत और दस्तावेजों से संतुष्ट हो जाता है तो वह धारा-156 (3) के तहत संबंधित थाने के एसएचओ को मामला दर्ज करने या फिर छानबीन का आदेश दे सकता है। वहीं, सीआरपीसी की धारा 200 के तहत मजिस्ट्रेट जिसके खिलाफ शिकायत की गई है, उसका बयान ले सकते हैं, जबकि सीआरपीसी की धारा 202 के तहत मजिस्ट्रेट अन्य गवाहों के बयान लेते हैं। मजिस्ट्रेट चाहें तो खुद मामले में जांच कर सकते हैं या पुलिस से जांच करवा सकते हैं।
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