JDS-कांग्रेस गठबंधन के बीच क्या देवगौड़ा भूल गए कांग्रेस अध्यक्ष का वह सलूक?
नई दिल्ली। मंगलवार (15 मई ) सुबह जब कर्नाटक विधानसभा चुनाव की मतगणना शुरू हुई तब लग रहा था कि राज्य में भाजपा की सरकार बनेगी. शुरुआती रुझानों में कांग्रेस और जेडीएस भाजपा से काफी पीछे रह गई थी. भाजपा बहुमत से मात्र एक सीट पीछे थी. लेकिन दोपहर बाद तस्वीर बदलने लगी और कांग्रेस की सीटें बढ़ने लगीं. कांग्रेस उस समय तक 78 और जेडीएस 38 सीट पर बढ़त बनाए हुए थे. इन आंकड़ों से राजनीतिक समीकरण अचानक बदल गया. इस बीच कांग्रेस ने ऐलान किया कि वह जेडीएस के नेतृत्व में सरकार बनाएगी. क्योंकि दोनों पार्टियों की सीटें मिलाकर बहुमत के आंकड़े के पास पहुंच रही हैं. लेकिन क्या एचडी देवगौड़ा 1997 के उस वाकए को भूल गए हैं जब कांग्रेस ने केंद्र में देवगौड़ा सरकार से बिना ठोस कारण समर्थन वापस ले लिया था. उस समय सीताराम केसरी कांग्रेस अध्यक्ष थे. राजनीतिक पंडित मानते हैं कि देवगौड़ा सरकार सिर्फ केसरी के सनकीपन और जिद के कारण गिरी थी.
बिना कारण बताए समर्थन वापस ले लिया था कांग्रेस ने
केसरी के बारे में जानकार बताते हैं कि वह एक कुशल राजनीतिज्ञ थे. राजनीति के दांव-पेंच बखूबी जानते थे. जिस समय वह कांग्रेस अध्यक्ष बने उस समय पार्टी की हालत काफी खराब थी. अप्रैल 1997 में एचडी देवगौड़ा के नेतृत्व वाली संयुक्त मोर्चे की सरकार को गिराने का उनका फैसला सबसे विवादास्पद माना जाता है. केसरी ने बिना कारण बताए समर्थन वापस ले लिया था. यही स्थिति इंद्र कुमार गुजराल के साथ बनी थी. जब गुजराल प्रधानमंत्री बने तो फिर कांग्रेस ने उनसे समर्थन वापस ले लिया और सरकार गिर गई.
केसरी के फैसले से कांग्रेसी भी अपरिचित थे
1997 में केसरी ने रातों रात संयुक्त मोर्चा सरकार से समर्थन वापस लेने का फैसला किया. उन्होंने कांग्रेस के बड़े नेताओं तक को भरोसे में नहीं लिया. दैनिक भास्कर में छपी खबर के अनुसार केसरी जब राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा को समर्थन वापसी का पत्र सौंपने जा रहे थे तब कोई कांग्रेस नेता उनके साथ नहीं था. उस दौरान कई बड़े नेताओं-अर्जुन सिंह, माधव राव सिंधिया और नारायण तिवारी पार्टी ने पार्टी से किनारा कर लिया था. कांग्रेस की समर्थन वापसी के बाद देवगौड़ा सरकार के विश्वास मत के ख़िलाफ़ 292 सांसदों ने मतदान किया जबकि 150 से अधिक सदस्य इसके पक्ष में थे.
हम नहीं चाहते थे सरकार गिरे : ममता बनर्जी
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपनी किताब ‘मेरी संघर्षपूर्ण यात्रा’ में इस बात का जिक्र किया है. उस समय वह कांग्रेस सांसद थीं. उन्होंने लिखा है कि जब देवगौड़ा सरकार से समर्थन वापसी हुई तब सभी कांग्रेस सांसदों ने इसकी वजह पूछी थी. क्योंकि सरकार अच्छा काम कर रही थी. हमें हमारे सवालों का जवाब नहीं मिला. हालांकि जब इंदिरा जी ने मोरार जी सरकार से समर्थन वापसी लेने की घोषणा की थी, उसके पहले उन्होंने पार्टी के लोगों से बात की थी. राजीव गांधी ने भी इसी व्यवस्था का पालन किया था. उन्होंने चन्द्रशेखर सरकार से समर्थन वापस लेने से पहले सांसदों से बात की थी. लेकिन देवगौड़ा के मामले में ऐसा नहीं हुआ.
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