…तो इस वजह से भगवान श्री राम का राजतिलक नहीं देख पाए थे लक्ष्मण

रावण के वध के बाद श्री राम, सीता और लक्ष्मण वापस अयोध्या लौट आए और वहां प्रभु श्री राम के राजतिलक की तैयारी होने लगी। उस समय लक्ष्मण जोर-जोर से हंसने लगे।

रावण के वध के बाद श्री राम, सीता और लक्ष्मण वापस अयोध्या लौट आए और वहां प्रभु श्री राम के राजतिलक की तैयारी होने लगी। उस समय लक्ष्मण(Laxman) जोर-जोर से हंसने लगे। जब लक्ष्मण(Laxman) से इस हंसी का कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि सारी उम्र उन्होंने इसी घड़ी का इंतजार किया था कि मैं अब श्री राम का राजतिलक होते हुए देखूंगा, लेकिन अब उन्हें निद्रा देवी को दिया गया वो वचन पूरा करना होगा जो उन्होंने वनवास जाने के पहले दिया था।

दरअसल निद्रा ने उनसे कहा था कि वह 14 वर्ष के लिए उन्हें परेशान नहीं करेंगी और उनकी पत्नी उर्मिला उनके स्थान पर सोएंगी। निद्रा देवी ने उनकी यह बात एक शर्त पर मानी थी कि जैसे ही वह अयोध्या लौटेंगे उर्मिला की नींद टूट जाएगी और उन्हें सोना होगा। लक्ष्मण(Laxman) इस बात पर हंस रहे थे कि अब उन्हें सोना होगा और वह राम का राजतिलक नहीं देख पाएंगे। उनके स्थान पर उर्मिला ने यह रस्म देखी थी।

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ये तो सभी लोग जानते हैं कि, सीता जी का विवाह राजा दशरथ के बड़े पुत्र श्रीराम के साथ हुआ था. सीता जी के स्वयंवर में भगवान राम और लक्ष्मण(Laxman) गुरु विश्वामित्र के साथ जनकपुर गए थे. जहां पर रावण भी मौजूद था. स्वयंवर की एक शर्त थी कि, जो भी शिव जी के धनुष को उठायेगा उसी के साथ सीता जी का विवाह किया जाएगा. इसके लिए कई बलशाली राजाओं ने जोर आजमाइश की लेकिन असफल रहे. बाद में श्रीराम ने धनुष को उठाकर तोड़ दिया और सीता जी के साथ उनका विवाद हुआ. सीता जी का विवाह मार्गशीष मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को हुआ था जिसका जिक्र रामचरितमानस में है.

वहीं बाल्मीकि रामायण में विवाह को लेकर सिर्फ ये बताया गया है कि, सीता जी(Sita ji) का विवाह बाल्यावस्था में हो गया था जब उनकी उम्र 6 साल थी. वहीं 18 साल की उम्र में सीता जी को श्रीराम के साथ अयोध्या छोड़कर वनवास जाना पड़ा था.

वनवास जाने से पहले उनके पिता राजा जनक ने सीता जी से कहा था कि, वो जनकपुर साथ चलें लेकिन सीता जी ने पत्नी का धर्म निभाते हुए श्रीराम के साथ जाने का फैसला किया.

सीता जी(Sita ji) को जब रावण हरण करके ले गया था तो इंद्र देवता ने एक ऐसी खीर बनाकर उनको खिलाई थी जिसके बाद उन्हें लंका में भूख-प्यास नहीं लगी. ये वर्णन बाल्मीकि की रामायण में मिलता है.

 

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