OROP को सरकार की मंजूरी: VRS लेने वालों को फायदा नहीं, पूर्व फौजी नाराज

orop_1तहलका एक्सप्रेस
नई दिल्ली। मोदी सरकार ने वन रैंक वन पेंशन की मांग मान ली है। रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने शनिवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस बात का एलान किया है। इसे 1 जुलाई, 2014 से लागू किया जाएगा और इसमें वीआरएस (अपनी मर्जी से रिटायरमेंट) लेने वाले सैनिक शामिल नहीं होंगे।लेकिन पूर्व फौजी मेजर जनरल (रिटायर्ड) सतबीर सिंह ने सरकार के एलान पर निराशा जाहिर करते हुए कहा कि सरकार ने उनकी छह मांगें खारिज कर दी हैं, सिर्फ एक मांग मानी गई है। उन्होंने कहा कि ओआरओपी को जुलाई, 2014 से लागू करने के अलावा कोई मांग पूरी नहीं हुई।
सतबीर सिंह ने यह भी कहा कि इन हालातों में उनका विरोध बंद होना मुश्किल है।
orop_2मनोहर पर्रिकर के एलान के अहम प्वॉइंट्स:
-1 जुलाई, 2014 से वन रैंक वन पेंशन को लागू किया जाएगा।
-पेंशन हर पांच साल में रिवाइज की जाएगी।
-इसमें वीआरएस लेने वाले सैनिक शामिल नहीं होंगे।
-बेस ईयर 2013 होगा। उस साल मिलने वाली पेंशन के एवरेज पर नई पेंशन काउंट होगी।
-एरियर 2013 से चार किश्तों में दिया जाएगा।
-सैनिकों की विधवाओं को एकमुश्त एरियर दिया जाएगा।
पूर्व सैनिकों ने किया विरोध
मेजर जनरल (रिटायर्ड) सतबीर सिंह ने कहा कि सरकार ने वीआरएस लेने वाले फौजियों को ओआरओपी से बाहर करने पर निराशा जताते हुए कहा कि 40 फीसदी फौजी वीआरएस लेते हैं। उन्होंने सरकार की ओर से एक मेंबर वाली कमिटी बनाए जाने पर भी हैरानी जताई। उन्होंने कहा कि कमिटी में पांच मेंबर होने चाहिए। उन्होंने कहा कि पांच साल में पेंशन को रिवाइज करने के एलान का भी विरोध करते हैं। पूर्व फौजियों की मांग है कि पेंशन की समीक्षा हर साल की जाए।
सतबीर सिंह ने कहा कि सरकार के एलान के बावजूद उनका विरोध जारी रहेगा।
सरकार के एलान और पूर्व फौजियों की मांग के बीच फर्क को ऐसे समझिए:
सरकार का फैसला पूर्व फौजियों की मांग
VRS लेने वालों को OROP का फायदा नहीं VRS वालों को शामिल किया जाए
हर पांच साल में पेंशन का रिविजन होगा हर साल होना चाहिए रिविजन
2013 की एवरेज पेंशन को बेस माना जाएगा 2013 में मिली सबसे ज्यादा पेंशन को बेस माना जाए
एक मेंबर वाला जुडिशल कमिशन छह महीने में रिपोर्ट देगा पांच मेंबर वाला जुडिशल कमिशन बने और एक महीने में रिपोर्ट दे
क्या कहते हैं EXPERT?
रक्षा मामलों के जानकार विक्रम गोखले ने कहा, ‘मौजूदा आर्थिक हालातों में सरकार इससे ज्यादा नहीं दे सकती है। मुझे लगता है कि आने वाले कुछ दिनों में पूर्व सैनिकों और सरकार के बीच समझौता हो जाएगा।’
बीजेपी ने एलान को बताया ऐतिहासिक
बीजेपी के प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा कि ओआरओपी की मांग को मंजूरी मिलना ऐतिहासिक है। संबित ने कहा कि यह मांग 42 सालों से लटकी हुई थी।
एलान से पहले रक्षा मंत्री अमित शाह से मिले
रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह से मिलने उनके घर पहुंचे। इस दौरान बीजेपी के प्रवक्ता भी शामिल हुए। शनिवार को ही रक्षा मंत्री पूर्व सैनिकों के डेलिगेशन से मिले। उनसे कहा कि सरकार ने ओआरओपी के कॉन्सेप्ट को मंजूरी दे दी है। मेजर जनरल (रियायर्ड) सतबीर सिंह ने जंतर मंतर पर वन रैंक वन पेंशन की मांग को लेकर धरना दे रहे पूर्व सैनिकों को संबोधित करते हुए कहा, ‘सरकार ने कॉन्सेप्ट के रूप में मोटे तौर पर हमारी मांग मान ली है।’
क्या है ‘वन रैंक वन पेंशन’
‘वन रैंक वन पेंशन’ मतलब अलग-अलग समय पर रिटायर हुए एक ही रैंक के दो फौजियों को समान पेंशन देना। फिलहाल रिटायर होने वाले लोगों को उनके रिटायरमेंट के समय के नियमों के हिसाब से पेंशन मिलती है। यानी जो लोग 25 साल पहले रिटायर हुए हैं उन्हें उस समय के हिसाब से पेंशन मिल रही है जो बहुत कम होती है।
इसे ऐसे समझें…
मान लीजिए 2006 से पहले रिटायर हुए मेजर जनरल की पेंशन 30,300 रुपए है, जबकि आज कोई कर्नल रिटायर होगा तो उसे 34,000 रुपए पेंशन मिलेगी। जबकि मेजर जनरल कर्नल से दो रैंक ऊपर का अधिकारी होता है।
पूर्व सैन्यकर्मियों को मिलेगा फायदा
देश में 25 लाख से ज्यादा रिटायर्ड सैन्यकर्मी हैं। उदाहरण के लिए योजना इस तरह बनाई गई है कि जो अफसर कम से कम 7 साल कर्नल की रैंक पर रहे हों उन्हें समान रूप से पेंशन मिलेगी। ऐसे अफसरों की पेंशन 10 साल तक कर्नल रहे अफसरों से कम नहीं होगी, बल्कि उनके बराबर ही होगी।
कब से उठी मांग
वन रैंक-वन पेंशन की मांग रिटायर्ड सैनिक कई सालों से कर रहे हैं। 30 साल पहले एक्स सर्विसमेन एसोसिएशन बनाई गई थी। 2008 में इंडियन एक्स सर्विसमैन मूवमेंट (आईएसएम) नामक संगठन बनाकर रिटायर्ड फौजियों ने संघर्ष तेज कर दिया।
क्यों उठी मांग?
– रिटायर्ड सैन्यकर्मी लंबे समय से वन रैंक-वन पेंशन की मांग कर रहे हैं। वन रैंक-वन पेंशन की मांग को लेकर कई पूर्व सैन्यकर्मियों ने अपने पदक लौटा दिए थे। इसकी पहली वजह यह है कि अभी सैन्यकर्मियों को एक ही रैंक पर रिटायरमेंट के बाद उनकी सेवा के कुल वर्षों के हिसाब से अलग-अलग पेंशन मिलती है।
– छठां वेतन आयोग लागू होने के बाद 1996 से पहले रिटायर हुए सैनिक की पेंशन 1996 के बाद रिटायर हुए सैनिक से 82% कम हो गई। इसी तरह 2006 से पहले रिटायर हुए मेजर की पेंशन उनके बाद रिटायर हुए अफसर से 53% कम हो गई।
– मांग उठने की एक वजह यह भी है कि चूंकि सैन्यकर्मी अन्य सरकारी कर्मचारियों की तुलना में जल्दी रिटायर हो जाते हैं, इसलिए उनके लिए पेंशन स्कीम अलग रखी जाए।
– केंद्र के नौकरशाह औसतन 33 साल तक सेवाएं देते हैं और अपनी आखिरी तनख्वाह की 50% पेंशन पाते हैं। आर्मी में सैनिक आमतौर पर 10 से 12 साल की उम्र में रिटायर हो जाते हैं और सैलरी की 50% से कम पेंशन पाते हैं।
क्यों हुई देरी?
सरकार इस पर विचार करती रही कि आर्मी, एयरफोर्स और नेवी के लिए यह योजना लागू करने के बाद कहीं दूसरे अर्द्धसैनिक बलों की तरफ से इस तरह की मांग न उठे। लेकिन केंद्र ने अब इस पेंशन योजना के लिए अलग प्रशासनिक और आर्थिक ढांचा तैयार कर लिया है। मार्च 2015 के पहले पूर्ण बजट में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने डिफेंस पेंशन का कुल बजट 51 हजार करोड़ रुपए से 9% बढ़ाकर 54500 करोड़ रुपए कर दिया था।
 

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