PAK: नवाज शरीफ ने जेल जाकर ‘चुनाव’ में सेना को शिकस्‍त दे दी है?

इस्लामाबाद। जब कुछ दिन पहले भ्रष्‍टाचार के मामले में भ्रष्‍टाचार रोधी अदालत नेशनल एकाउंटबिलिटी ब्‍यूरो (एनएबी) ने नवाज शरीफ को 10 साल और बेटी मरियम नवाज को सात साल की सजा सुनाई तो उस वक्‍त वह लंदन में अपनी बीमार पत्‍नी के पास थे. कैंसर से जूझ रहीं उनकी पत्‍नी वेंटिलेटर पर हैं. जब उन्‍होंने कहा कि वह सजा का सामना करने के लिए पाकिस्‍तान वापस लौटेंगे तो स्‍वदेश में उनको किसी ने गंभीरता से नहीं लिया. ऐसा इसलिए क्‍योंकि पाकिस्‍तान में अक्‍सर हुक्‍मरान इस तरह के कोर्ट मामलों के बाद विदेश भाग जाते रहे हैं. परवेज मुशर्रफ इसके ताजातरीन उदाहरण हैं. कोर्ट के आदेशों के बावजूद दुबई से पाकिस्‍तान आने की उन्‍होंने जहमत नहीं उठाई. लेकिन इसके उलट शरीफ ने वतन लौटकर सबको और खासकर पाकिस्‍तानी सेना को चौंका दिया क्‍योंकि सेना तो यही चाहती थी कि कम से कम चुनावों तक नवाज शरीफ नहीं लौटें.

लेकिन नवाज शरीफ ने लौटकर भ्रष्‍टाचार के मुद्दों पर पाकिस्‍तान में अपनी विलेन जैसी बन रही छवि बदलकर पीडि़त और शहादत के मोड में खुद को पेश कर दिया है. अपने राजनीतिक अस्तित्‍व की लड़ाई लड़ रहे शरीफ अब वह यह कहने की स्थिति में हैं कि सेना ने उनके खिलाफ षड़यंत्र कर भ्रष्‍टाचार के झूठे मामले चलवाए हैं. अब वह यह भी कहेंगे कि वह चाहते तो भाग सकते थे लेकिन अपने लोगों के बीच लौटे. अब जनता इस पर कितना यकीन करेगी यह तो आने वाले चुनाव के नतीजों से ही पता चलेगा. जाहिर है कि ये सब कुछ सेना के मंसूबों के अनुरूप नहीं हुआ.

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                                               सेना का मानना है कि यदि दूसरी बार लगातार नवाज शरीफ सत्‍ता में आएंगे तो पाक सेना की सत्‍ता के लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकते हैं. (फाइल फोटो)

25 जुलाई की तारीख
पाकिस्‍तान में 25 जुलाई को चुनाव होने जा रहे हैं. इसी के मद्देनजर नवाज शरीफ और सेना के बीच शह और मात का खेल चल रहा है. नवाज शरीफ के सेना के साथ रिश्‍ते सहज नहीं रहे हैं. ऐसे में कहा जाता है कि सेना का मानना है कि यदि दूसरी बार लगातार नवाज शरीफ सत्‍ता में आएंगे तो पाक सेना की सत्‍ता के लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकते हैं. उसका एक कारण यह भी है कि पिछले 10 वर्षों से कमजोर ही सही लेकिन सतत रूप से लोकतांत्रिक सरकारें अपना कार्यकाल पूरा कर पा रही हैं.

ऐसे में यदि नवाज शरीफ फिर जीत जाएंगे तो इसको पाकिस्‍तान में लोकतंत्र की जड़ें मजबूत होने की कड़ी के रूप में देखा जाएगा. नवाज शरीफ की चुनी हुई सरकार अधिक मजबूत होगी और निरंकुश सेना की सत्‍ता पर लगाम की कोशिश होगी. लिहाजा सेना एक ऐसी कमजोर सरकार चाहती है जो उस पर किसी तरह हावी होने की स्थिति में नहीं हो.

इस पृष्‍ठभूमि में पाकिस्‍तान पर पैनी नजर रखने वाले विश्‍लेषकों के मुताबिक सेना ने चुनाव से पहले नवाज शरीफ और उनकी पार्टी को अधिकाधिक कमजोर करने की पूरी कोशिश की है. इसके पीछे की रणनीति यही है कि किसी को पूर्ण बहुमत नहीं मिले और गठबंधन सरकार की स्थिति बने जोकि निश्चित रूप से कमजोर होगी.

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                                          पाकिस्‍तान में 25 जुलाई को चुनाव होने जा रहे हैं.(फाइल फोटो)

इमरान खान
आसिफ अली जरदारी-बिलावत भुट्टो की पाकिस्‍तान पीपुल्‍स पार्टी की हालत खस्‍ता है. चुनावों में इसकी वापसी की कोई बड़ी संभावना नहीं देखी जा रही है. लिहाजा इस दौर में नवाज शरीफ ही पाकिस्‍तान के सबसे बड़े नेता हैं और सेना के लिए संभावित चुनौती हैं. इसलिए उनको राजनीतिक क्षितिज से हटाने के प्रयास में मुख्‍य विपक्षी दल पाकिस्‍तान तहरीके-इंसाफ (पीटीआई) के नेता इमरान खान को उभारा जा रहा है. कहा जाता है कि इस बार उनको सेना का समर्थन माना जा रहा है.

कट्टरवादी ताकतें भी इमरान के पक्ष में दिख रही हैं. लिहाजा कुछ इस तरह समीकरण बनाने की कोशिश हो रही है कि किसी को बहुमत नहीं मिलने पर इमरान खान की अगुआई वाली एक कमजोर गठबंधन सरकार सत्‍ता में आए. इस कठपुतली सरकार की नकेल सेना के पास होगी.

भारत पर असर
नवाज शरीफ हमेशा भारत के साथ दोस्‍ती के हिमायती रहे हैं. उनके प्रयासों को वहां की सेना ने हमेशा कमजोर करने की कोशिश की है. ऐसा इसलिए क्‍योंकि भारत के मुद्दे पर यदि शरीफ सफल हुए तो पाक सेना को वापस अपने बैरक में लौटना होगा. उनका वजूद सत्‍ता से हटकर केवल सीमा पर रह जाएगा जोकि वहां का इस्‍टेब्लिशमेंट (पाक सेना-आईएसआई) कतई नहीं चाहता. वह भारत, जम्‍मू-कश्‍मीर, विदेश और सामरिक नीति को अपनी सुविधा के हिसाब से चलाना चाहता है. यह तभी संभव है जब मजबूत के बजाय वहां कमजोर सरकार बने. लिहाजा यदि सेना की मंशा के अनुरूप इमरान खान के नेतृत्‍व में अगली सरकार बनती है तो कट्टरवादी ताकतें वहां मजबूत होंगी जोकि सेना  की शह पर भारत के खिलाफ जहर उगलेंगी.

 

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