PM मोदी के करीबी ‘दोस्त’ ने दिया सबसे बड़ा ‘सिरदर्द’, क्या सुलझ पाएगी ये पहेली?

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इन दिनों कर्नाटक चुनाव में बिजी हैं. दो दिन बाद वहां मतदान है. लेकिन, मोदी की सबसे करीबी ‘दोस्त’ ने उन्हें इस समय पर सबसे बड़ा ‘सिरदर्द’ दे दिया है. दरअसल, पीएम मोदी के ‘दोस्त’ डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान के साथ हुई परमाणु संधि से अमेरिका को बाहर कर लिया है. अब यह भारत के लिए अच्छा नहीं हैं, मोदी सरकार के लिए अच्छा नहीं है. वो भी ऐसे समय पर जब आने वाले समय में भारत के करीब आधा दर्जन राज्यों में चुनाव होने हैं. अमेरिका के परमाणु संधि के बाहर होने और ईरान पर तेल प्रतिबंध लगाने से तेल की कीमतों में बड़ा उछाल आएगा. यह मोदी सरकार के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक हो सकता है. मोदी सरकार के लिए यह किसी पहेली से कम नहीं कि चुनाव के समय ऐसे मुद्दों का हल कैसे सुलझाया जाए.

क्या किया ट्रंप ने ऐलान?
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा, ‘हम ईरान के परमाणु बम को नहीं रोक सकते. ईरान समझौता मूल रूप से दोषपूर्ण है इसलिए मैं ईरान परमाणु समझौते से अमेरिका के हटने की घोषणा कर रहा हूं.’ इसके कुछ समय बाद उन्होंने ईरान के खिलाफ प्रतिबंधों वाले दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए. ट्रंप ने दूसरे देशों को भी आगाह किया कि जो भी ईरान की मदद करेगा उन्हें भी प्रतिबंध झेलना पड़ेगा.

क्यों है भारत के लिए पहेली?
दरअसल, भारत दुनिया में तेल खपत के मामले में तीसरा सबसे बड़ा देश है. भारत जिन देशों से तेल खरीदता है, उनमें सऊदी अरब, इराक और ईरान हैं. हालांकि, 2014 के बाद से भारत ईरान से सबसे ज्यादा तेल मंगाता है. लेकिन, ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों से तेल की कीमतें आसमान छू सकती हैं. तेल के दाम से भारत पहले ही परेशान है. ऐसे में और कीमतें बढ़ना किसी झटके से कम नहीं होगा. उधर, वर्ल्ड बैंक भी तेल की कीमतों में 20 फीसदी की वृद्धि का अनुमान जता चुका है.

क्यों है पीएम मोदी के लिए मुश्किल?
दरअसल, कर्नाटक चुनाव से पहले ही मोदी सरकार के लिए तेल की कीमतें एक बड़ी टेंशन थी. पेट्रोल के दाम पांच साल से ऊपरी स्तर पर हैं. वहीं, डीजल अपने रिकॉर्ड हाई पर चल रहा है. ऐसे में सरकार के पास रोजाना बढ़ने वाली कीमतों पर अंकुश लगाने के अलावा कोई विकल्प नहीं दिखता. यही वजह है कि कर्नाटक चुनाव से पहले भी पेट्रोल-डीजल की कीमतों पर रोक लगाई गई है. अब सरकार को मजबूरन तेल वितरक कंपनियों को कीमतें बढ़ाने से रोकना होगा. लेकिन, ऐसा करने पर कंपनियों को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है.

महंगाई है दूसरी टेंशन
तेल कंपनियों ने 24 अप्रैल से तेल की कीमतों में कोई बदलाव नहीं किया है. इससे उनके मार्जिन पर भी फर्क पड़ा है. हालांकि, इस दौरान क्रूड की कीमतें करीब साढ़े तीन साल के उच्च स्तर पर पहुंच चुकी हैं. सरकार के लिए दूसरी बड़ी टेंशन यही है कि तेल के दाम बढ़े तो महंगाई भी बढ़ जाएगी. तेल की कीमतों में 10 डॉलर की वृद्धि होने से भारत का करंट अकाउंट डेफिसिट (CAD) 15 अरब डॉलर या GDP का 0.6 फीसदी बढ़ जाएगा. इससे वित्तीय घाटा GDP का 0.1 फीसदी बढ़ जाएगा.

80 डॉलर जा सकता है क्रूड
अमेरिकी फैसले का तत्कालिक असर पड़ना तय है. एक्सपर्ट भी मानते हैं कि मौजूदा हालातों में क्रूड की कीमतों में उछाल आएगा. अगले 2 महीने में कीमतें 80 डॉलर प्रति बैरल के पार भी जा सकती हैं. डिमांड और सप्लाई के सेंटिमेंट मजबूत हैं. अगर जियो पॉलिटिकल टेंशन नहीं बढ़ी तो क्रूड की कीमतें थोड़ी गिर सकती है, लेकिन इससे भारत के खजाने पर बोझ पड़ना तय है.

70 डॉलर से नीचे नहीं आएंगी कीमतें
CARE रेटिंग्स के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस के मुताबिक, अभी के हालात देखते हुए ऐसा नहीं लगता कि क्रूड 70 डॉलर के नीचे आएगा. हालांकि, RBI की मौद्रिक नीति में तेल की कीमतों के 65-70 डॉलर के बीच रहने का अनुमान लगाया गया था, लेकिन अभी की स्थिति में यह स्तर 70-75 डॉलर प्रति बैरल हो सकता है.

 

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