महाज्ञानी रावण का था समस्त संसार पर राज, मरने से पहले दिए थे लक्ष्मण को ये 5 उपदेश

दशहरे का त्यौहार अधर्म पर धर्म के जीत का पर्व माना जाता है। भगवान श्री राम ने लंकापति रावण का वध करके समस्त संसार में सत्य के जीत का परचम फहराया था और संदेश दिया था कि बुराई कितनी भी बलशाली क्यों न हो सच्चाई के सामने घुटने टेक ही देती है।

अनादि अनंत मिश्रा

दशहरे का त्यौहार अधर्म पर धर्म के जीत का पर्व माना जाता है। भगवान श्री राम ने लंकापति रावण का वध करके समस्त संसार में सत्य के जीत का परचम फहराया था और संदेश दिया था कि बुराई कितनी भी बलशाली क्यों न हो सच्चाई के सामने घुटने टेक ही देती है। रावण शक्तिशाली के साथ प्रचण्ड विद्वान भी था। समस्त संसार में रावण से बड़ा विद्वान पैदा ही नहीं हुआ। रावण को सभी वेदों का ज्ञान था उसका जन्म असुर कुल में हुआ था। लेकिन, वह प्रचंड पंडित था। अपने भक्ति और तपस्या के बल पर उसने भगवान शिव को प्रसन्न कर लिया था। सोने की लंका में रहने वाला लंकापति दसों दिशाओं में राज करता था। उसके ज्ञान के आगे बड़े-बड़े देवता नतमस्तक हो जाते थे। उसने कई ऐसे उदाहरण पेश किए हैं।

वेदों का ज्ञाता

रावण को सभी वेदों का ज्ञान था। उसने शिवतांडव, कामधेनु प्रकुठा और युधिशा तंत्र जैसी कृतियों की रचना किया था। उसे सभी वेदों में महारथ हासिल थी। इसके अलावा उसने पद पथ के द्वारा वेदों को कंठस्थ किया था।

ग्रह नक्षत्र को चलाता था अपने इशारों से

रावण इतना शक्तिशाली था कि वह अपने इशारे मात्र से सभी ग्रह-नक्षत्र की चाल और दिशा बदल देता था। उसने अपने पुत्र मेघनाथ को अमर करने के लिए बहुत जतन किए। लेकिन, शनि ने अंतिम क्षण में अपनी दिशा बदल दी थी जिससे नाराज़ होकर लंकेस्वर ने शनि देव को बंदी बना लिया था।

आयुर्वेद विद्या में निपुणता

रावण को आयुर्वेद विद्या का भी ज्ञान था। उसने आयुर्वेद विद्या से जुड़ी जानकारी को उसने ‘अर्क प्रकाश’ नामक किताब में लिखा, जिसमें आयुर्वेद विद्या से जुड़ी सभी जानकारी उपलब्ध हैं। माता सीता जिस चावल को ग्रहण करती थी, उस चावल में प्रचुर मात्रा में विटामिन मौजूद थे। जिसकी उत्पत्ति रावण ने अपनी आर्युवेद विद्या से थी।

संगीत विद्या की जानकारी

रावण को संगीत से बहुत लगाव था। वह अपने मधुर स्वर से तमाम देवी-देवताओं को प्रशन्न करता था, उसके जिह्वा पर मां सरस्वती का वास था। उसने कई श्लोक की रचना भी की थी। शिवतांडव भी उसी रचनाओं में से एक है, जिसे रावण भगवान शिव को खुश करने के लिये गाता था। रावण को रुद्रवीणा बजाने में कोई हरा नहीं सकता था। जब भी रावण अत्यधिक परेशान और घोर चिंता में रहता था, तब वह रुद्र वीणा अर्थात ‘रावणहथा’ बजाता था।

दस सिर नहीं थे रावण के पास

रावण के बारे में एक अपवाद है कि उसके पास दस सिर थे। जबकि, असल सत्य यह है कि रावण दसों दिशाओं का राजा था। उसको दस सिरों जितनी बुद्धि भी प्रदान थी यही कारण था कि उसे दशानन कहा जाता है।

रावण के पास था ज्ञान का भण्डार

रावण अत्यंत बलशाली ही नहीं था अपितु वह ज्ञानी भी था। उसने अपने अंतिम समय में शेषनाग रूप में अवतरित भगवान श्री राम के भाई लक्ष्मण को कुछ उपदेश दिए थे। जिसमें उसने सांसारिक सत्यों से लक्ष्मण को रूबरू कराया था।

1-इंसान को कभी अपने शत्रु को कमजोर नहीं समझना चाहिए।

2- अपने बल का कभी दुरप्रयोग नही करना चाहिए। ना ही कभी उस पर घमंड करना चाहिए।

3. इंसान को हमेशा अपनों की बात माननी चाहिए, क्योंकि, अपने हमेशा आपके हित के बारे में सोचते हैं।

4. शत्रु और मित्र में हमेशा पहचान करनी चाहिए। क्योकि, अक्सर जिन्हें हम मित्र समझते हैं, वह शत्रु निकल जाते हैं।

5. कभी भी पराई स्त्री पर बुरी नज़र नहीं डालनी चाहिए। ऐसा करने वाला व्यकि समस्त संसार से नष्ट हो जाता है।

 

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