जानिए सीता जी को लंका में क्यों नहीं लगती थी भूख-प्यास, वजह जान आप भी रह जाएंगे हैरान

गोस्वामी तुलसीदास और बाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में कई तरह के मतभेद पैदा करते हैं. तुलसी दास द्वारा लिखित रामचरितमानस में सीता जी केविवाह के बारे में वर्णन किया गया है जबकि बाल्मीकि रामायण में वैदेही स्वयंवर के बारे में कहीं कोई जिक्र नहीं किया गया है. तुलसीदास की रामचरितमानस में सीता जी का 147 बार वर्णन किया गया है.

गोस्वामी तुलसीदास और बाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में कई तरह के मतभेद पैदा करते हैं. तुलसी दास द्वारा लिखित रामचरितमानस में सीता जी(Sita ji) के विवाह के बारे में वर्णन किया गया है जबकि बाल्मीकि रामायण में वैदेही स्वयंवर के बारे में कहीं कोई जिक्र नहीं किया गया है. तुलसीदास की रामचरितमानस में सीता जी(Sita ji) का 147 बार वर्णन किया गया है.

ये तो सभी लोग जानते हैं कि, सीता जी का विवाह राजा दशरथ के बड़े पुत्र श्रीराम के साथ हुआ था. सीता जी के स्वयंवर में भगवान राम और लक्ष्मण गुरु विश्वामित्र के साथ जनकपुर गए थे. जहां पर रावण भी मौजूद था. स्वयंवर की एक शर्त थी कि, जो भी शिव जी के धनुष को उठायेगा उसी के साथ सीता जी का विवाह किया जाएगा. इसके लिए कई बलशाली राजाओं ने जोर आजमाइश की लेकिन असफल रहे. बाद में श्रीराम ने धनुष को उटाकर तोड़ दिया और सीता जी के साथ उनका विवाद हुआ. सीता जी का विवाह मार्गशीष मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को हुआ था जिसका जिक्र रामचरितमानस में है.

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वहीं बाल्मीकि रामायण में विवाह को लेकर सिर्फ ये बताया गया है कि, सीता जी(Sita ji) का विवाह बाल्यावस्था में हो गया था जब उनकी उम्र 6 साल थी. वहीं 18 साल की उम्र में सीता जी को श्रीराम के साथ अयोध्या छोड़कर वनवास जाना पड़ा था.

वनवास जाने से पहले उनके पिता राजा जनक ने सीता जी से कहा था कि, वो जनकपुर साथ चलें लेकिन सीता जी ने पत्नी का धर्म निभाते हुए श्रीराम के साथ जाने का फैसला किया.

सीता जी(Sita ji) को जब रावण हरण करके ले गया था तो इंद्र देवता ने एक ऐसी खीर बनाकर उनको खिलाई थी जिसके बाद उन्हें लंका में भूख-प्यास नहीं लगी. ये वर्णन बाल्मीकि की रामायण में मिलता है.

 

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