भारत ने दुनिया को दी चेतावनी, नहीं संभले तो विश्व युद्धों की तरह होगा नरसंहार

भारत ने पूरी दुनिया को सचेत किया है कि, धरती पर एक बार फिर विश्व युद्धों की तरह नर संहार होने का ख़तरा बढ़ रहा है।

भारत ने पूरी दुनिया को सचेत किया है कि, धरती पर एक बार फिर विश्व युद्धों की तरह नर संहार होने का ख़तरा बढ़ रहा है। वर्तमान परिवेश में आतंकवाद समकालीन विश्व युद्ध छेड़ने का तरीका बनकर सामने आया है। इसके चलते एक बार फिर भीषण नरसंहार की स्थिति बनते दिख रही है। जैसा कि इससे पहले दोनों विश्व युद्धों में देखा गया था।

‘द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त होने के 75 वर्ष पूर्ण

बता दें मौक़ा था, द्वतीय विश्व युद्ध समाप्त होने के 75 वर्ष पूर्ण होने का। इस मौके पर संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी मिशन के प्रथम सचिव आशीष शर्मा ने कहा कि, ‘द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त होने के 75 वर्ष पूरा होना, हमें संयुक्त राष्ट्र के मकसद और इसके आधारभूत सिद्धांतों के प्रति प्रतिबद्धता को पुन: पुष्ट करने का अवसर देता है। संयुक्त राष्ट्र का मकसद युद्ध के अभिशाप से आने वाली पीढ़ियों को बचाना है।’

नरसंहार होने का खतरा

विशेष बैठक में हिस्सा लेते हुए शर्मा ने कहा कि, ‘आतंकवाद समकालीन दुनिया में युद्ध छेड़ने के एक तरीके के रूप में सामने आया है। इससे दुनिया में उसी प्रकार का नरसंहार होने का खतरा है, जो हमने दोनों विश्व युद्धों के दौरान देखा था। आतंकवाद एक वैश्विक समस्या है और वैश्विक स्तर पर प्रयासों के जरिए ही इससे निपटा जा सकता है।’

द्वितीय विश्व युद्ध में भारत के 25 लाख जवान लड़े

उन्होंने आगे बोलते हुए विश्व के देशों से अपील की कि वे युद्ध छेड़ने के समकालीन प्रारूपों से लड़ने और अधिक शांतिपूर्ण एवं सुरक्षित दुनिया सुनिश्चित करने के लिए स्वयं को समर्पित करें। उन्होंने कहा कि, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारतीय महाद्वीप के इतिहास में सबसे अधिक संख्या में सैन्यकर्मियों ने भाग लिया। औपनिवेशिक शासन के अधीन होने के बाजवूद भारत के 25 लाख जवान द्वितीय विश्व युद्ध में लड़े।

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भारतीय सेना इतिहास का सबसे बड़ा स्वयंसेवी बल

अपने सम्बोधन में शर्मा ने आगे कहा कि भारतीय सेना इतिहास का सबसे बड़ा स्वयंसेवी बल है, जिसके 87,000 जवानों की जान गई या वे लापता हो गए और लाखों जवान गंभीर रूप से घायल हुए। दुनिया को बचाने के लिए लड़ने वाले सभी देशों के बहादुर लोगों को सलाम करते हुए कहा कि यह निराशाजनक है कि, औपनिवेशिक जगत के हजारों स्वयंसेवकों के युद्ध में योगदान के बावजूद उन्हें उचित सम्मान एवं मान्यता नहीं दी गई।

मारे गए थे 6-8 करोड़ लोग

आपको बताते चलें कि, दूसरा विश्व युद्ध 1 सितंबर 1939 को शुरू होकर और 2 सितंबर 1945 को समाप्त हुआ था। इस दौरान जापान द्वारा अमेरिका के समक्ष सरेंडर करने के बाद यह खत्म हुआ था। इसमें करीब 6 से 8 करोड़ लोग मारे गए थे। यह विश्व की तत्कालीन आबादी का 3 फीसदी था।

 

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