मैनपुरी : असम राइफल्स में तैनात मैनपुरी का एक और लाल शहीद
अरुणाचल प्रदेश में उग्रवादी हमले के दौरान शहीद हुए मैनपुरी के नायब सूबेदार वीरेंद्र सिंह यादव का पार्थिव शरीर बुधवार सुबह तक उनके पैतृक गांव पहुंचने की संभावना है. रविवार को शहीद की खबर लगते ही पूरा गांव शोक में डूब गया. शहीद के परिवार को सांत्वना देने के लिए सैकड़ों की संख्या में लोगों का तांता लग गया.
मैनपुरी : अरुणाचल प्रदेश में उग्रवादी हमले के दौरान शहीद हुए मैनपुरी के नायब सूबेदार वीरेंद्र सिंह यादव का पार्थिव शरीर बुधवार सुबह तक उनके पैतृक गांव पहुंचने की संभावना है. रविवार को शहीद की खबर लगते ही पूरा गांव शोक में डूब गया. शहीद के परिवार को सांत्वना देने के लिए सैकड़ों की संख्या में लोगों का तांता लग गया.
जनपद मैनपुरी के 18 किलोमीटर दूर विकासखंड कुरावली क्षेत्र के ग्राम नानामऊ में रहने वीरेंद्र सिंह अपनी पढ़ाई खत्म करने के बाद सन 1985 मैं सिलचर मिजोरम असम राइफल्स सेना में भर्ती हुए थे जिनकी ट्रेनिंग सीलोन मेघालय में हुई थी जो वर्तमान में देश की सीमा म्यांमार से लगती सीमा पर स्थित चांगलांग जिले में तैनाती थी।
रविवार की सुबह 9:30 बजे के लगभग असम राइफल्स के जवानों को उग्रवादियों ने उत्तर पूर्व भारत में एक बार फिर सुरक्षाबलों को उस समय निशाना बनाया जब वह झरने से पानी लेकर टैंक द्वारा अपने जवानों को पॉइंट पर पानी देने जाते समय निशाना बनाया जिसमें मैनपुरी का लाल वीरम सिंह के 36 गोलियां लगने के बाद शहीद हो गए.
घटना की जानकारी जब परिजनों को मिली तो घर में कोहराम मच गया जिसकी गलत जानकारी जब पूरे गांव को मिली तो पूरा गांव शोकाकुल में डूब गया.
आपको बता दें शहीद वीरेंद्र सिंह का बड़ा पुत्र बबलू भी इस समय असम राइफल्स में लुधियाना में तैनात हैं तो वही मजला पुत्र तपन खेती बाड़ी का काम करता है तो भाई छोटाा पुत्र दीपक यादव इस समय बीएससी फाइनल की पढ़ाई कर रहा है.
तो वही दीपक भी अपने पिता की तरह देश पर निछावर होने के लिए भारतीय होना चाह रहा है तो वही उसकी मां भी अपने छोटे पुत्र को सेना में भर्ती करने की बात कहती हुई नजर आ रही है जब मीडिया ने उससे बात की तो उन्होंने बताया कि अपने पति से वह आखरी बार 1 साल पूर्व मिली थी तब से अभी तक नहीं मिल पाई है वह चाहती है कि मेरा पुत्र भी सेना में भर्ती होकर अपने पिता की तरह नाम कमाएं।
उन्होंने यह भी बताया कि अपने पति के साथ उन्होंने हिंदू रीति रिवाज के चलते शादी के एक साल तक साथ रहे थे इसके बाद वह देश की रक्षा के लिए सीमा पर ड्यूटी देते रहे आखरी बार भी दीपावली के पर्व के बाद गांव आए हुए थे.
रिपोर्टर उमाकांत बाथम
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