अमेरिका को इंडियन झटका, यरुशलम पर भारत ने की विपक्ष में वोटिंग

नई दिल्ली। यरुशलम के मामले में आखिरकार अमेरिका को झुकना ही पड़ा है। दरसअल, अमेरिका ने यरुशलम को इजराइल की राजधानी के तौर पर मान्‍यता देने का फैसला लिया था। लेकिन, अमेरिका के इस फैसले में भारत ने भी उसका साथ नहीं दिया। जिसके बाद संयुक्त राष्ट्र महासभा ने एक प्रस्ताव पास कर अमेरिका से अपने इस फैसले को वापस लेने के लिए कहा है। संयुक्‍त राष्‍ट्र महासभा ने एक प्रस्‍ताव पेश किया था जिसमें ये कहा गया था अमेरिका को यरुशलम को इजरायल की राजधानी के तौर पर मान्यता देने के अपने फैसले को वापस लेना चाहिए। दुनियाभर के 128 देशों ने संयुक्‍त राष्‍ट्र महासभा के इस प्रस्‍ताव का समर्थन किया जबकि सिर्फ नौ देश ही अमेरिका के साथ इस प्रस्‍ताव के विरोध में खड़े थे।

खास बात ये है कि संयुक्‍त राष्‍ट्र महासभा के इस प्रस्‍ताव को लेकर अमेरिका ने तमाम देशों को धमकी भी दी थी। अमेरिका के राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप का कहना था कि जो भी देश इस प्रस्‍ताव के समर्थन में वोटिंग करेंगे उन्‍हें अमेरिका की ओर से मिलने वाली आर्थिक मदद में कटौती कर दी जाएगी। लेकिन, किसी पर भी डोनाल्‍ड ट्रंप की धमकी का कोई असर नहीं हुआ और 128 देशों ने संयुक्‍त राष्‍ट्र महासभा के समर्थन में वोट दिया। नौ देश इसके विरोध में थे। जबकि 35 देशों ने वोटिंग में हिस्‍सा ही नहीं लिया। जो देश यरुशलम के मामले अमेरिका के साथ खड़े थे उसमें ग्वाटेमाला, होंडुरास, इजरायल, मार्शल आइलैंड्स, माइक्रोनेशिया, पलाउ, टोगो और खुद अमेरिका भी शामिल था।
इसके साथ ही संयुक्त राष्ट्र महासभा में अमेरिका की राजदूत निकी हेली ने यूएन के इस प्रस्ताव की आलोचना की।  निकी हेली का कहना था कि अमेरिका इस दिन को हमेशा याद रखेगा। अमेरिका का मानना है कि संयुक्‍त राष्‍ट्र महासभा ने अपने अधिकारों का इस्‍तेमाल कर उस पर हमला किया है। अमेरिका का कहना है कि वो येरुशलम में अपना दूतावास खोलेगा। सोमवार को अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में ऐसे ही एक प्रस्ताव को वीटो किया था। उस वक्‍त अमेरिका को छोड़कर यूएनएससी के बाकी सभी 14 सदस्य प्रस्ताव के पक्ष में थे। अमेरिका की ओर से वीटो किए गए प्रस्‍ताव को बाद में संयुक्‍त राष्‍ट्र महासभा में भेज दिया गया था। डोनाल्‍उ ट्रंप जिस वक्‍त अमेरिका में राष्‍ट्रपति का चुनाव लड़ रहे थे उस वक्‍त उन्‍होंने अपने प्रचार के दौरान ही ये वादा किया था कि वो येरुशलम को इजराइल की राजधानी बनाएंगे।
इसके साथ ही उन्होंने वादा किया था कि वो अमेरिकी दूतावास को तेल अवीव से यरुशलम भी शिफ्ट करेंगे। इसी महीने डोनाल्‍ड ट्रंप ने अपना वादा निभाया लेकिन, अंतरराष्‍ट्रीय समुदाय उनके इस फैसले के विरोध में था। फिलिस्‍तीन भी इसका विरोध कर रहा था। दरअसल, येरुशलम शहर धार्मिक लिहाज से बेहद ही संवेदनशील है। भूमध्य और मृत सागर से घिरे यरुशलम को यहूदी, मुस्लिम और ईसाई तीनों ही धर्म के लोग पवित्र मानते हैं। यहां का टेंपल माउंट यहूदियों की सबसे पवित्र जगह है। जबकि अल-अक्सा मस्जिद को मुस्लिम समुदाय के लोग बहुत ही पाक मानते हैं। मुस्लिम समुदाय की मान्‍यता के मुताबिक अल-अक्सा मस्जिद से पैगंबर मोहम्मद साहब जन्नत पहुंचे थे। जबकि ईसाइयों की मान्यता है यरुशलम में ही ईसा मसीह को सूली पर चढ़ाया गया था।
 

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