कमीशन खोरी की भेंट तो नहीं चढ़ गयी बच्चों की जिंदगी

राजेश श्रीवास्तव

प्रिंसिपल मिश्र की पत्नी ने कराया था कंपनी से अनुबंध,

कमीशन को लेकर लटकाया था भुगतान

गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में मौत से लड़ते मासूमों की जिदगी ऑक्सीजन के जिस पतले से पाइप पर टिकी थी, डॉक्टरों ने ही कमीशन के लालच में उस पाइप को काट दिया। बच्चों की मौत के बाद अब मेडिकल कॉलेज के कर्मचारी बता रहे हैं कि मैडम (मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य राजीव मिश्र की पत्नी) सामान्य रवायत से दो फीसद ज्यादा कमीशन चाहती थीं, इसीलिए उन्होंने ऑक्सीजन सप्लाई करने वाली कंपनी का भुगतान लटका रखा था।

चिकित्सा शिक्षा विभाग के कर्मचारी बताते हैं कि कंपनी अपना बकाया मांग रही थी जबकि मैडम ज्यादा कमीशन का तगादा कर रही थीं। कर्मचारियों के मुताबिक प्रदेश के मेडिकल कॉलेज और सरकारी अस्पतालों में ऑक्सीजन की आपूर्ति पर 1० फीसद का कमीशन तय है। आपूर्ति करने वाली कंपनियां और आपूर्ति मंजूर करने वाले अधिकारियों के बीच बिना मांगे ईमानदारी से यह लेनदेन चलता रहता है। गोरखपुर बीआरडी कॉलेज में भी इसी व्यवस्था से पिछले प्राचार्य के कार्यकाल तक शांति से काम चल रहा था लेकिन, हलचल तब हुई जब प्राचार्य बदले और नए प्राचार्य के कामकाज में दखल रखने वाली उनकी पत्नी ने 1० की बजाय 12 फीसद कमीशन मांग लिया।

बीआरडी मेडिकल कॉलेज से जुड़े सूत्र बताते हैं कि इसी दो फीसद कमीशन को लेकर फरवरी से मामला अटका हुआ है। कर्मचारी इस मामले में कुछ बड़े अधिकारियों के शामिल होने की भी आशंका जता रहे हैैं, क्योंकि मैडम द्बारा भुगतान न किए जाने की शिकायत कई बार ऊपर तक भी पहुंचाई गई लेकिन, मेडिकल कॉलेज में ऐसा कोई संकेत या संदेश नहीं पहुंचा कि ऑक्सीजन का भुगतान रोके जाने को गंभीरता से लिया गया है। इस वर्ष तो अगस्त महीने में ज्यादा मौते नहीं हुईं हैं। हर साल तो इसी महीने में अगस्त माह में इससे ज्यादा मौते हुई हैं, यह कहना है कि उत्तर प्रदेश के चिकित्सा स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थनाथ सिह का।

बच्चों की मौत पर दुख जताने के बजाय वह पूरे समय पत्रकारों को बच्चों की मौत का मेडिकल टर्म ही समझाते रहे। बच्चों की मौत के कारण गिनाते रहे। किसी को किडनी तो किसी को प्री मेच्योर या फिर निमोनिया। लेकिन किसी भी एक बच्चे की मौत आक्सीजन के चलते नहीं हुई। बस यही समझाने और बताने में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनके दोनों मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह और गोपाल टंडन जुटे रहे। अगर सरकार के इन सब आंकड़ों की बात को सच मान लिया जाए तो फिर सरकार गैस आपूर्ति करने वाली कंपनी के डीलर पुष्पा स्ोल्स के अधिकारी के विरुद्ध जांच क्यों कर रही है। क्यों डा. कफील अहमद अपने अन्य चिकित्सक मित्रों के अस्पतालों से 12 गैस सिलेंडर लेकर आये थ्ो। क्यों एम्बु से गैस आपूर्ति करते हुए मरीजों की तस्वीरें अखबारों में साया हुई हैं।

कुल मिलाकर सरकार सच्चाई को छिपाने का भरपूर प्रयास कर रही है। इस लापरवाही के चलते 63 बच्चों की मौत हुई लेकिन सरकारी आंकड़ों में सिर्फ 23 बच्चों की मौत कही जा रही है। सूत्रों के मुताबिक पिं्रसिपल मिश्र और पुष्पा सेल्स के बीच लेन-देन को लेकर विवाद चल रहा था। इसीलिए उन्होंने यह भुगतान लटका के रखा। और नतीजतन, इतने बच्चों की मौत हो गयी। इस लापरवाही के चलते जिन 63 बच्चों की मौत हुई है क्या सरकार उनकी जिंदगी प्रिंसिपल के निलंबन से वापस लौट आएगी। अव्वल तो यह है कि सरकार गैस आपूर्ति को जिम्मेदार मानती ही नहीं है अगर ऐसा है तो फिर सरकार ने प्रिंसिपल मिश्र को निलंबित क्यों किया। सरकार जांच करे या फिर लीपापोती। लेकिन इस मामले में हुई लापरवाही और भ्रष्टाचार की जुगल कहानी के चलते बच्चों की जिंदगी चली गयी।

 

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