कोटा जैसी ‘कोचिंग मंडियों’ से आता था व्यापम का ‘माल’

vyaतहलका एक्सप्रेस ब्यूरो, नई दिल्ली/जयपुर। अपने उफान के दौरान व्यापम के तार मध्य प्रदेश से बाहर निकल कर कई और राज्यों में भी फैले हुए थे। पड़ोसी राज्य राजस्थान और उत्तर प्रदेश में फैली इसकी जड़ें वहां से परीक्षा में अच्छे नंबर लाने वाले छात्र खोज कर लाया करती थीं। इन छात्रों को इंदौर लाया जाता था जहां वे अलग-अलग प्रतियोगी परीक्षाओं में आवेदनकर्ता छात्रों की जगह परीक्षा देते थे।
राजस्थान के कोटा शहर को इंजिनियरिंग और मेडिकल कोचिंग का गढ़ माना जाता है। ताज्जुब की बात नहीं कि व्यापम के शिकारियों को कोटा अपने फायदे और जरूरतों के मुताबिक सबसे मुनासिब जगह दिखी। व्यापम से जुड़े बिचौलिये कोटा आकर अच्छे नंबर लाने वाले छात्रों की ‘भर्ती’ करते थे। इन ‘भर्तियों’ को एक बार परीक्षा में बैठने के एवज में 1.5 से 2 लाख रुपये तक दिए जाते थे। व्यापम घोटाले की जांच कर रही एसआईटी की टीम ने अपनी जांच के दौरान पाया कि साल 2013 में हुई प्री-मेडिकल परीक्षा के लिए व्यापम के बिचौलिये राजस्थान, खासकर कोटा से, कई ऐसी ‘भर्तियों’ को लेकर आए। इन्होंने फिर मध्य प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों में आयोजित अलग-अलग दाखिला और भर्ती परीक्षाओं में उम्मीदवारों की जगह परीक्षाएं दीं। इंडियन एक्सप्रेस द्वारा हासिल किए गए दस्तावेजों के मुताबिक, अच्छे नंबर लाने वाली ऐसी ‘भर्तियों’ को राजस्थान के कोटा, अलवर, जयपुर, बरतपुर, सीकर, चुरु, बूंदी, बारन, जोधपुर और यहां तक कि बाड़मेर जैसे दूर-दराज के इलाकों से मध्य प्रदेश लेकर आया गया था। ऐसी ही कई ‘भर्तियां’ उत्तर प्रदेश से भी हुई थीं। राज्य के इटावा, कानपुर, चित्रकूट, आजमगढ़ और मिर्जापुर जिलों से लोगों को फर्जी पहचान बनाकर मध्य प्रदेश परीक्षा देने के लिए लाया गया था। व्यापम के बिचौलिये अपनी आगे की कार्रवाई के तहत परीक्षा केंद्र के निरीक्षकों और बाकी अधिकारियों से संपर्क कर ऐसी ‘भर्तियों’ को उन छात्रों के साथ वाला परीक्षा क्रमांक देने के लिए कहते थे जिन छात्रों की मदद के लिए यह सारा इंतजाम किया जाता था। डॉ. आनंद राय, जो व्यापम घोटाले में विसल ब्लोअर हैं और जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सीबीआई से जांच करवाने के लिए याचिका दायर की थी, का कहना है कि ऐसी ‘भर्तियों’ का भुगतान वही छात्र करते थे जो घोटाले के माध्यम से दाखिला और भर्ती पाते थे। 5 सदस्यों की एक एक्सपर्ट कमिटी, जिसने कि फर्जी उम्मीदवारों से जुड़ी एसटीएफ की रिपोर्ट का मुआयना किया, ने पाया कि कम-से-कम 70 उम्मीदवारों इस फर्जीवाड़े की साजिश में शामिल थे। इन्होंने अपनी सहूलियत और जरूरत के मुताबिक अपने रोल नंबरों में छेड़छाड़ करवाई। इसका मकसद कुछ दूसरे उम्मीदवारों को फायदा पहुंचाना था। व्यापम द्वारा 6 दिसंबर, 2013 में करवाए गए एक आंतरिक जांच में यह पाया गया कि सभी 70 उम्मीदवार घोटाले के आरोपियों से संपर्क में थे। इन्होंने मिलकर मूल रूप से जारी रोल नंबर्स के साथ छेड़छाड़ और उसे बदलने की साजिश की।  घोटाला सामने आने के बाद इन उम्मीदवारों की उम्मीदवारी को खारिज कर दिया गया था। यह सभी आरोपी घोटाला सामने आने के बाद से ही फरार हैं। मध्य प्रदेश पुलिस फिलहाल इनकी तलाश कर रही है। इंडियन एक्सप्रेस के हवाले से विसल ब्लोअर आनंद राय ने कहा कि इस घोटाले में कई राज्यों के लोग शामिल हैं। बिहार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान समेत कई राज्यों तक इसकी जड़े फैली हुई हैं। उन्होंने कहा कि इसकी व्यापकता देखते हुए यह जरूरी है कि इसकी जांच राज्य तक सीमित न होकर, राष्ट्रीय स्तर पर की जाए। उन्होंने आगे कहा कि राजस्थान के कोटा और उत्तर प्रदेश के कानपुर जैसी जगहों के कोचिंद क्लासों ने इस घोटाले के लिए मंडी जैसा काम किया। बिचौलिये इन्हीं कोचिंग क्लासों से ही अच्छे नंबर लाने वाले छात्र खोजते थे और उनसे उन छात्रों व उम्मीदवारों की जगह परीक्षा दिलवाते थे जिनमें खुद के बलबूते परीक्षा पास करने का माद्दा नहीं था। रुपये के दम पर ऐसे ही असमर्थ व अनुपयुक्त लोगों को नौकरियां दी गईं और ईंजिनयरिंग-मेडिकल जैसे बेहद महत्वपूर्ण शैक्षणिक पाठ्यक्रमों में दाखिला दिलवाया गया।

 

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