जेटली चाहते थे नेताओं से चाय पर चर्चा, लेकिन विपक्ष ने कर दिया बायकॉट

arunतहलका एक्सप्रेस ब्यूरो, नई दिल्ली। विपक्ष ने गुरुवार को सरकार को अब तक का सबसे करारा जवाब दिया। वह भी बिना एक शब्द बोले। लेकिन इस घटनाक्रम में भविष्य की राजनीति के कई संदेश छुपे हैं, आइए जानते हैं कैसे?
हुआ यूं कि शून्यकाल में राज्यसभा जब हंगामे के बीच स्थगित हो गई तो सदन के नेता अरुण जेटली ने विपक्ष के सभी नेताओं को संसद भवन स्थित अपने ऑफिस में अनौपचारिक बातचीत के लिए बुलाया। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि गतिरोध दूर करने के लिए कई बार ट्रैक टू डिप्लोमेसी काम कर जाती है। गिव एंड टेक के जरिए आम सहमति पहले भी बनाई जाती रही है। लेकिन विपक्ष का एक भी नेता जेटली की चाय पीने नहीं पहुंचा। जबकि उनमें से कइयों के बीच आपसी विरोध इतने ज्यादा हैं कि वे एक-दूसरे से आंख तक नहीं मिलाते। मसलन, उत्तर प्रदेश की सपा और बसपा। और पश्चिम बंगाल की तृणमूल कांग्रेस, माकपा और कांग्रेस। या फिर तमिलनाडु की डीएमके और एआईएडीएमके। विपक्षी नेताओं से बातचीत में पता चला कि जेटली की टी-पार्टी को बायकॉट करने का प्रस्ताव राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद का था। उन्होंने ही विपक्षी दलों से यह “गुजारिश’ की थी कि जेटली की टी-पार्टी में न जाएं। चूंकि सभी विपक्षी नेता विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के इस्तीफे की मांग पर सहमत हैं, इसलिए “एक दिन के लिए’ सभी ने आजाद की बात मान ली।
यह विपक्षी एकता शुक्रवार को भी रहेगी या फिर पूरे मानसून सेशन के दौरान बनी रहेगी, यह संभव नहीं लगता।
 – राज्यसभा में तृणमूल कांग्रेस संसदीय दल के नेता डेरेक ओ’ब्रायन ने बताया- हम सुषमा स्वराज का इस्तीफा तो चाहते हैं लेकिन यह भी चाहते हैं कि संसद भी चले। जीएसटी बिल पास हो। इसलिए आज तो हम पूरे विपक्ष के साथ हैं लेकिन कल की रणनीति का खुलासा हम कल सुबह ही करेंगे।
 – वहीं, सीपीएम के सीताराम येचुरी का कहना था – “हम तब तक संसद नहीं चलने देंगे जब तक सुषमा इस्तीफा नहीं देतीं। जेटली पूछते हैं कि सुषमा का अपराध क्या है? हमारा जवाब है – करप्शन बाई एक्ट ऑफ ओमिशन। वैसे ही जैसे मनमोहन सिंह ने कोलगेट में किया था।’
कई विपक्षी नेता याद दिला रहे हैं कि तीन साल पहले कोयला घोटाले को लेकर भाजपा ने पूरा मानसून सत्र ठप कर दिया था। तब उनकी जो दलील थी, भाजपा को वही दलील आज विपक्ष याद दिला रहा है- हमें जांच चाहिए, बहस नहीं। जांच का विकल्प बहस नहीं हो सकती। दूसरी ओर, भाजपा के तेवर भी लगातार तीखे होते जा रहे हैं। गुरुवार को कई सांसद तख्तियां लेकर लोकसभा में पहुंचे। इनमें उत्तराखंड में कांग्रेस सरकार के घोटालों और रॉबर्ट वाड्रा को कौड़ियों के मोल दी गई जमीनों का जिक्र था। यह शायद संसद के इतिहास में पहली बार हुआ कि सत्तारूढ़ दल के सदस्य भी सदन के अंदर तख्तियां लेकर विरोध करते दिखे।
संसद के मानसून सत्र के तीसरे दिन भी लोकसभा-राज्यसभा में काम नहीं हो सका। विपक्ष के हंगामे के कारण दोनों सदनों में कार्यवाही शुक्रवार तक के लिए स्थगित कर दी गई। गुरुवार को भी विपक्ष इस मांग पर अड़ा रहा कि पहले सुषमा स्वराज का इस्तीफा होना चाहिए, इसके बाद ही ललित गेट मुद्दे पर चर्चा होगी। जबकि सरकार का कहना है कि वह चर्चा को तैयार है लेकिन किसी का इस्तीफा नहीं होेगा। अब पीएम हवा में बात करते हैं। जो मन में आता है, कह देते हैं। इनकी क्रेडिबिलिटी जमीन में जा रही है। व्यापमं, सुषमा स्वराज जैसे मुद्दों पर वे चुप हैं। जब तक वे चुप रहेंगे, मुझे उसे फायदा ही होगा।  गुरुवार को जब राज्यसभा में भारी हंगामा हो रहा था, तब मोदी ने विपक्ष के एक-दो नहीं बल्कि सात नेताओं से एकसाथ मुलाकात की, वह भी सदन के अंदर। इनमें मनमोहन सिंह, गुलाम नबी आजाद और जयराम रमेश जैसे छह नेता तो सिर्फ कांग्रेस के थे। इस दौरान पीएम ने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में कांग्रेस के सांसद शशि थरूर के भाषण के लिए उनकी तारीफ भी की। प्रधानमंत्री ने कहा, ‘शशि थरूर ने जो कुछ भी कहा वह यूट्यूब पर वायरल हो गया।
 

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