ट्रिपल तलाक के मुद्दे पर 11 मई से सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच करेगी सुनवाई

नई दिल्ली। ट्रिपल तलाक, निकाह हलाला और बहुविवाह के खिलाफ दाखिल याचिका पर संवैधानिक बेंच 11 मई से इस अहम मामले की सुनवाई करेगी। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस जे. एस. खेहर, जस्टिस कुरियन जोसफ, जस्टिस आर. एफ. नरीमन, जस्टिस यू. यू. ललित और जस्टिस एस. अब्दुल नजीर की संवैधानिक बेंच मामले में सुनवाई करेगी। सुप्रीम कोर्ट ने पिछली सुनवाई में तमाम पक्षकारों से भी राय मांगी थी और कहा था कि सुप्रीम कोर्ट 11 मई को सबसे पहले उन सवालों को तय करेगा जिन मुद्दों पर इस मामले की सुनवाई होनी है। उच्चतम न्यायालय ने हालांकि पहले ही साफ कर दिया है कि वह ट्रिपल तलाक, निकाह हलाला और बहुविवाह से मुद्दे पर सुनवाई करेगा, यानी कॉमन सिविल कोड का मामला सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच के सामने नहीं है।

केंद्र सरकार दे चुकी है सवाल
केंद्र सरकार ने अपनी तरफ से सवाल दिए थे। ये सवाल हैं-

1. धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के तहत तलाके-बिद्दत (एक बार में तीन तलाक़ कहना), हलाला और बहुविवाह की इजाज़त दी जा सकती है या नहीं?
2. समानता का अधिकार, गरिमा के साथ जीने का अधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार में प्राथमिकता किसको दी जाए?
3. क्या पर्सनल लॉ को संविधान के अनुछेद 13 के तहत कानून माना जाएगा या नहीं?
4. क्या तलाके-बिद्दत, निकाह हलाला और बहुविवाह उन अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के तहत सही है जिस पर भारत ने भी दस्तखत किये हैं?
बहरहाल सुप्रीम कोर्ट के सामने तमाम पक्षकारों की ओर से लिखित दलील पेश की जा चुकी है, ऐसे में सुप्रीम कोर्ट खुद सवाल तय करेगा जिनपर सुनवाई शुरू होगी।

मामला कहां से शुरू हुआ
उत्तराखंड के काशीपुर की शायरा बानो ने पिछले साल सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर कर एकसाथ तीन तलाक कहने और निकाह हलाला के चलन की संवैधानिकता को चुनौती दी थी। साथ ही मुस्लिमों की बहुविवाह प्रथा को भी चुनौती दी थी। शायरा बानों ने डिसलूशन ऑफ मुस्लिम मैरिजेज ऐक्ट को भी यह कहते हुए चुनौती दी कि मुस्लिम महिलाओं को द्वि-विवाह (दो शादियों) से बचाने में यह विफल रहा है। शायरा ने अपनी याचिका में मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत महिलाओं के साथ लैंगिक भेदभाव के मुद्दे, एकतरफा तलाक और संविधान में गारंटी के बावजूद पहले विवाह के रहते हुए मुस्लिम पति द्वारा दूसरा विवाह करने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट से विचार करने को कहा है।

शायरा की ओर से दाखिल अर्जी में कहा गया कि इस तरह का तीन तलाक उनके संवैधानिक मूल अधिकार का उल्लंघन करता है और आर्टिकल 14 व 15 का उल्लंघन करता है। इसके बाद कई अन्य याचिका दायर की गईं। एक अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट की डबल बेंच ने खुद संज्ञान लिया था और चीफ जस्टिस से आग्रह किया था कि वह स्पेशल बेंच का गठन करें ताकि भेदभाव की शिकार मुस्लिम महिलाओं के मामले को देखा जा सके। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के अटॉर्नी जनरल और नैशनल लीगल सर्विस अथॉरिटी को जवाब दाखिल करने को कहा था और पूछा था कि क्या जो मुस्लिम महिलाएं भेदभाव की शिकार हो रही हैं उसे उनके मूल अधिकार का उल्लंघन नहीं माना जाना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट का सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे ही मामले में सुनवाई के दौरान यह भी कहा था कि इन मसलों को देखने की जरूरत है क्योंकि इसमें मूल अधिकार में दखल की बात है। अदालत ने सवाल किया कि क्या यह अनुच्छेद-14 (समानता) और 21 (जीवन के अधिकार) में दखल नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए दर्जनों जजमेंट को साइट किया था और बताया था कि जेंडर भेदभाव महिलाओं के संवैधानिक अधिकार में दखल है। कोर्ट ने यह जानना चाहा है कि मुस्लिम महिलाएं जो जेंडर भेदभाव का शिकार होती हैं उसे उनके मूल अधिकार में दखल क्यों न माना जाए।

सोशल रिफॉर्म के नाम पर पर्सनल लॉ दोबारा नहीं लिखा जा सकताः पर्सनल ल़ॉ बोर्ड
ट्रिपल तलाक के प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिका पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा है कि इस मामले में दाखिल याचिका को खारिज किया जाना चाहिेए। याचिका में जो सवाल उठाए गए हैं वे जूडिशल रिव्यू के दायरे में नहीं आते। साथ ही कहा है कि पर्सनल लॉ को चुनौती नहीं दी जा सकती। हलफनामे में कहा गया है कि पर्सनल लॉ को सोशल रिफॉर्म के नाम पर दोबारा नहीं लिखा जा सकता। बोर्ड का कहना है कि तलाक के मामले में पहले ही सुप्रीम कोर्ट के कई फैसले आ चुके हैं। पर्सनल लॉ को संविधान के अनुच्छेद-25, 26 और 29 के तहत संरक्षण मिला हुआ है। एफिडेविट में यह भी कहा गया है कि जूडिशरी धर्म के मामले में व्याख्या नहीं करेगा। जब भी धार्मिक मुद्दों पर विवाद होगा तो धार्मिक किताबों का सहारा लिया जाएगा।

ट्रिपल तलाक को संविधान के प्रावधान के तहत देखा जाए: केंद्र
केंद्र सरकार ने हलफनामा दायर कर कहा है कि ट्रिपल तलाक के प्रावधान को संविधान के तहत दिए गए समानता के अधिकार और भेदभाव के खिलाफ अधिकार के संदर्भ में देखा जाना चाहिए। केंद्र ने कहा कि लैंगिक समानता और महिलाओं के मान सम्मान के साथ समझौता नहीं हो सकता। भारत जैसे सेक्युलर देश में महिला को जो संविधान में अधिकार दिया गया है उससे वंचित नहीं किया जा सकता। केंद्र ने कहा कि मूल अधिकार के तहत संविधान के अनुच्छेद-14 के तहत जेंडर समानता की बात है। महिला को सामाजिक, आर्थिक और भावनात्मक तरीके से हशिये पर रखना संविधान के अनुच्छेद-15 के तहत असंगत होगा। महिला को आत्मसम्मान और मान-सम्मान का जो अधिकार है वह राइट टु लाइफ के तहत दिए गए अधिकार का महत्वपूर्ण पहलू है। लैंगिक समानता और महिलाओं के मान-सम्मान के साथ समझौता नहीं हो सकता। ट्रिपल तलाक व बहुविवाह धार्मिक स्वतंत्रा के तहत प्रॉटेक्टेड नहीं हैं।

छुट्टियों में तीन मामलों को सुनेगी संवैधानिक बेंच
गर्मियों की छुट्टियों में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच तीन मामलों की सुनवाई करेगी। इनमें ट्रिपल तलाक के अलावा वाट्सऐप प्रिवेसी का मामला और असम में माइग्रेंट्स का मामला शामिल है।

 

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