तो हिन्दू विरोधी सोच तो कारण नहीं कांग्रेस के पतन का

Page-1_1_11-274x300श्यामल कुमार त्रिपाठी

गत्ï छह महीने पहले जिस तरह से लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की हार हुई और उसके बाद लगातार अन्य राज्यों में हो रहे चुनावों में कांग्रेस का एक तरह से खात्मा हो रहा है वह सिर्फ भ्रष्टïाचार और महंगाई की देन नहीं हो सकता। कहीं न कहीं देश के अंदर कांग्रेस का एक ही मुद्दे पर हिन्दुओं का विरोध करना और अल्पसंख्यक के नाम पर मुसलमानों का समर्थन करना एक बड़ा कारण हो सकता है। इतना तो तय है कि गत्ï छह महीने से हो रहे चुनावों में उनके परिणाम एक अलग सोच का परिचायक साबित हो रहे हैं। वह सारे दल सिमटते हुए दिखाई दे रहे हैं जिन्होंने खुले मच से हिन्दू विरोधी सोच को कायम रखा। ऐसा नहीं है कि पतन सिर्फ कांग्रेस का हो रहा है। लेफ्ट पार्टी भी हिन्दू विरोधी सोच के चलते ही अपने गढ़ में कहीं गायब से हो गए हैं। वर्तमान में उत्तर प्रदेश का भी यही हाल दिख रहा है। जिस तरह से मुलायम सिंह यादव, मुख्यंत्री अखिलेश यादव और काबीना मंत्री आजम खां अपनी हिन्दू विरोधी सोच को आगे रखकर प्रदेश चलाने का कार्य कर रहे हैं उसके चलते आम जन में जबरदस्त तरीके से सरकार विरोधी लहर चल रही है। अभी हाल ही में एक मुस्लिम संगठन ने एक कार्यक्रम के दौरान माननीय सपा सुप्रीमो नेता जी को ‘फादर आफ मुस्लिमÓ के तमगे से नवाजने की बात कर रही थी।
इतना ही नहीं लोकसभा चुनाव के दौरान सपा की एक रैली में मुलायम सिंह यादव ने जिस बेबाकी से इस बात को स्वीकारा कि उन्होंने सिर्फ मुसलमानों को अपने पक्ष में करने के लिए अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चलवाई थी। उनका यह बयान आने वाले दिनों में उन्हीं के लिए बहुत घातक साबित होने वाला है। भारतीय राजनीति का इतिहास रहा है कि कोई भी पार्टी जितनी तेजी से एक जाति, एक वर्ग विशेष की राजनीति करके आगे बढ़ती है उससे ज्यादा तेजी से ही उसका पतन भी हो जाता है। उदाहरण के तौर पर कांग्रेस का केंद्र और कई राज्यों से साफ हो जाना और उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी का राज्य की राजनीति से बेदखल हो जाना है। गत्ï दिनों केंद्र और कई राज्यों के चुनाव ने जो परिणाम दिए हैं उसका मकसद साफ दिखा। हम किसी वर्ग विशेष की राजनीति करके ज्यादा दिनों तक आगे नहीं बढ़ सकते। कांग्रेस को भी शायद अब यह अहसास हो गया है कि जनता के बीच उनकी स्थिति हिन्दू विरोधी की बन गई थी। जिसके चलते उन्हें हर जगह से सिर्फ और सिर्फ हार का मुंह देखना पड़ रहा है। पार्टी आलाकमान को इस बात का अहसास होते ही वह तुरंत अपने आपको चेतने में लग गई और इसी का नतीजा है कि खुद राहुल गांधी और सोनिया गांधी ने पार्टी में इस बात को उठाया कि कहीं हमारी छवि हिन्दू विरोधी तो नहीं बन गई। इस बात का पता लगाने के लिए सोनिया और राहुल ने अपने निचले दर्जे के कार्यकर्ताओं को टारगेट में लेते हुए इस बात की खोजबीन में जुट गई कि आखिर कब और कैसे कांग्रेस पार्टी हिन्दू विरोधी हो गई। कांग्रेस अगर चेत गई तो इतना तो तय है कि अगले पांच साल फिर वह मजबूती से देश की राजनीति में पदार्पण करेगी। कहने का अभिप्राय यह कत्तई नहीं है कि भारतीय राजनीति को हिन्दू समर्थक होना चाहिए। बल्कि राजनीति को देश समर्थक और देश के विकास का समर्थक होना चाहिए। जो भी पार्र्टी इस बात को समझेगी वह ही इस देश पर लंबे समय तक राज करेगी।
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