निकाय चुनाव के परिणाम तय करेंगे कई मंत्रियों का भविष्य

राजेश श्रीवास्तव 

जब निकाय चुनाव के दो चरण समाप्त हो गये हैं और बाकी के चरण भी आगामी तीन दिनों मंे तय हो जायेंगे। निकाय चुनाव के परिणाम आगामी एक दिसंबर को आएंगे। इस चुनाव के परिणाम भारतीय जनता पार्टी के मंत्रियों का भविष्य तय करेंगे। इस चुनाव में जहां मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, दोनों डिप्टी सीएम केशव मौर्य और डा.

दिनेश शर्मा पूरी तरह खुद सक्रिय हैं वहीं सभी मंत्रियों को उनके क्ष्ोत्रों में पार्षदों, पंचायत प्रत्याशियों की जीत की जिम्मेदारी सौंपी गयी है। लिहाजा अगर इन क्ष्ोत्रों में भाजपा को मनमुताबिक परिणाम नहीं मिले तो संबंधित मंत्रियों पर गाज गिरनी तय है। दिलचस्प यह है कि मंत्रियों के अलावा निकाय चुनाव की जिम्मेदारी कुछ पदाधिकारियों व संगठन के लोगों को भी सौंपी गयी है।

अगर उनके प्रयासों से उनके प्रभार वाले क्ष्ोत्रों में पार्टी को सफलता मिली तो उनको मंत्री पद या अहम जिम्मेदारी से नवाजा भी जा सकता है। दरअसल निकाय चुनाव को भारतीय जनता पार्टी बेहद गंभीरता से ले रही हैं क्योंकि इन चुनाव के बेहद अहम मायने हैं। अगर पार्टी को उम्मीद से बेहतर सफलता नहीं मिली तो यह संदेश जायेगा कि छह-सात महीने के भीतर ही पार्टी का रुझान कम हो गया है और लोग मोदी-योगी सरकार को पसंद नहीं कर रहे हंै।

ऐसे में इसका असर गुजरात चुनाव या आगामी लोकसभा चुनाव पर भी पड़ सकता है। इन्हीं आरोपों से बचने के लिए भारतीय जनता पार्टी इन चुनावों को विधानसभा के तर्ज पर लड़ रही है। हालांकि ऐसा नहीं कि पार्टी को सफलता नहीं मिलती दिख रही है। सूत्रों की मानें तो महापौर की 16 सीटों पर होने वाली अधिकतम सीटों पर भाजपा की जीत तय मानी जा रही है। लेकिन फिर भी मुख्यमंत्री योगी व भाजपा आलाकमान कोई रिस्क लेने को तैयार नहीं है।

खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ एक-एक दिन में सात-आठ जनसभाएं कर रहे हैं। योगी सरकार के डिप्टी सीएम और मंत्री गली मोहल्लों की खाक छान रहे हैं। लेकिन चूंकि पार्षदों का चुनाव बेहद स्थानीय स्तर व समीकरणों पर निर्भर करता है। इस बार सपा व बसपा समेत कांग्रेस भी अपने सिंबल पर चुनाव लड़ रहे हैं। इसलिए ऐसा नहीं कि कुछ सीटें उनके हाथ न लगें। भाजपा का यही प्रयास है कि विरोधी दलों के खाते में कम से कम सीटें जा सकें। इस अंतर को बढ़ाना ही भाजपा का मकसद है। लेकिन सत्ता विरोधी रुझान और जीएसटी व नोटबंदी से लोग त्रस्त हैं।

इसका विधानसभा में जरूर असर नहीं पड़ा क्योंकि उस समय भाजपा लहर थी और विपक्ष कमजोर। लेकिन निकाय चुनाव का विधानसभा से अलग समीकरण होता है। इन चुनावों में कोई प्र्रत्याशी को सरकार की नजर से नहीं देखता बल्कि वह अपने मोहल्ले स्तर पर ही उसका चुनाव करता है। यही कारण है कि कई बार अधिक संख्या में निर्दलीय ही काबिज हो जाते हैं। खुद राजधानी के वीवीआईपी माने जाने वाले विक्रमादित्य वार्ड की बात करें तो सपा का गढ़ होने के बावजूद यहां आज तक समाजवादी पार्टी कभी विजयी नहीं हुई।

आंकड़ों के लिहाज से देख्ों तो राजधानी में कई दिलचस्प आंकड़े मिल जाएंगे। महापौर की नजर से देख्ों तो आज तक कभी ऐसा भी नहीं हुआ कि सरकार के रहते हुए कभी भाजपा का महापौर भी राजधानी से नहीं जीता। इसी लिहाज से कई मंत्रियों की कुर्सी दांव पर है। इतना तय है कि निकाय चुनाव के परिणाम भाजपा के कई कद्दावर मंत्रियों की कुर्सी जा सकती है तो कुछ को नया प्रभार भी मिल सकता है। हमारे सूत्रों के मुताबिक ऐसे मंत्रियों की संख्या 6 से 8 है जिनके क्ष्त्रों में भाजपा खासी पीछे जाती दिख रही है। राजधानी में ही दो मंत्री ऐसे हैं जिनके क्ष्ोत्र में पार्षद काफी पीछे चल रहे हैं।

 

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