नेशनल हेरल्ड के पास कितनी संपत्ति है?

नई दिल्ली। एबीपी न्यूज ने ऑपरेशन यंग इंडियन के तहत राहुल और सोनिया गांधी की कंपनी पर लगातार दो खुलासे किए थे. दूसरे खुलासे पर बीजेपी ने कांग्रेस से सवाल पूछने शुरू कर दिए हैं. एबीपी न्यूज ने सोनिया गांधी और राहुल गांधी की कंपनी यंग इंडियन, नेहरू का अखबार नेशनल हेरल्ड चलाने वाली कंपनी एजीएल और कांग्रेस पार्टी के बीच 90 करोड़ के लेन देन पर खुलासा किया था. इस खुलासे के बाद बीजेपी कांग्रेस से जादुई फॉर्मूला पूछ रही है..
बीजेपी कांग्रेस से जो सवाल पूछ रही है वो सवाल क्यों पूछा जा रहा है ये समझने के लिए आपको पहले ये जानना होगा कि एबीपी न्यूज ने क्या खुलासा किया था?
ऑपरेशन यंग इंडियन पार्ट-2
आपके चैनल एबीपी न्यूज ने कल जो बड़ा खुलासा किया था वो उस 90 करोड़ के कर्ज से जुड़ा था जो कांग्रेस ने पंडित जवाहर लाल नेहरू के अखबार नेशनल हेरल्ड को चलाने वाली कंपनी एजेएल को दिया था. 90 करोड़ के कर्ज को सोनिया और राहुल ने अपनी कंपनी यंग इंडियन के जरिए चुकाने का करार किया और बदले में नेशनल हेरल्ड चलाने वाली कंपनी एजेएल के 90 फीसदी शेयर ले लिए. हमने खुलासा किया कि इस लेन-देन पर आयकर विभाग को शक है.
दरअसल एजेएल ने 90 करोड़ का लोन चुकाने के लिए ना तो कांग्रेस पार्टी के नाम कोई चेक जारी किया औऱ ना ही कांग्रेस पार्टी के नाम कोई डिमांड ड्राफ्ट दिया गया. आसान भाषा में कहा जाए शब्दों में कहा जाए तो आयकर विभाग ने शक जाहिर किया कि कहीं एजेएल ने ये लोन कैश में तो कांग्रेस को वापस नही कर दिया. इस शक को आय़कर अधिकारी ने इस तरह से जाहिर करते हुए कहा कि एजेएल कंपनी ने आय़कर कानून की धारा 269 टी का उल्लघन किया है. इस धारा का मतलब होता है कि बीस हजार रूपये से ज्यादा का भुगतान चैक या ड्राफ्ट के जरिए ही किया जा सकता है.
बीजेपी सवाल पूछ रही है कि हजारों करोड़ों की कंपनी सिर्फ 90 करोड़ रुपए में सोनिया राहुल की कंपनी यंग इंडियन के हिस्से कैसे आ गई?
दरअसल नेशनल हेरल्ड को चलाने वाली कंपनी एसोसिएटेड जर्नल्स को कांग्रेस ने 90 करोड़ का लोन इस नाम पर दिया था कि अखबार को फिर से चलाया जा सके. लेकिन नेशनल हेरल्ड जिंदा नहीं हुआ.
लखनऊ में नेशनल हेरल्ड के पहले संपादक रहे रामाराव के बेटे के विक्रम राव आरोप लगा रहे हैं कि कंपनी फोर्थ एस्टेट से रियल एस्टेट बन गई है, यानी पत्रकारिता से प्रॉपर्टी में बदल चुकी है.
दिल्ली के बाद बात लखनऊ की. लखनऊ में नेशनल हेरल्ड की दो संपत्तिया हैं. इंदिरा गांधी आई हॉस्पिटल की इमारत कभी नेशनल हेरल्ड अखबार का दफ्तर हुआ करती थी. 1938 में लखनऊ के कैसरबाग इलाके में अखबार निकालना शुरू हुआ था. 70 साल बाद अखबार बंद हुआ और यहां इंदिरा गांधी के नाम पर आंख का अस्पताल खोला गया जिसका मालिकाना हक राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट का है. लेकिन वरिष्ठ पत्रकार और नैशनल हरल्ड के विक्रम राव आरोप लगा रहे हैं कि इस संस्था में कई घोटाले हुए जिसकी जांच होनी चाहिए.
अब जरा दिल्ली से 250 किमी दूर हरियाणा के पंचकुला में चलिए. पंचकुला के सेक्टर 6 में बनी इमारत नेशनल हेरल्ड चलाने वाली एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड की है. इमारत नई बनकर तैयार हुई है लेकिन खाली पड़ी है इमारत के चौकीदार दिनेश का कहना है कि कांग्रेस के नेताओं का यहां आना जाना लगा रहता है.
इसके बाद आपका चैनल एबीपी न्यूज पहुंचा मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल. भोपाल में भी लखनऊ और दिल्ली की तरह ही नेशनल हेरल्ड अखबार के लिए सरकार से लीज पर जमीन ली गई थी.
1980 में बीडीए यानि भोपाल विकास प्राधिकरण ने 1 लाख 14 हजार रूपए में ये जमीन दी थी जिसे 1990 में अखबार बंद होने के बाद विकास के नाम पर बिल्डरों को दे दी गई. अब इसका व्यवसायिक उपयोग हो रहा है. नेशनल हेरल्ड अखबार के पूर्व कर्मचारी मोहम्मद सईद का कहना है कि अखबार के ट्रस्टियों ने इसे बिल्डरों और दुकानदारों को बेच दिया.
नेशनल हेरल्ड की मध्य प्रदेश के इंदौर में क्या कहानी है वो भी जान लेते हैं. जब अर्जुन सिंह एमपी के सीएम हुआ करते थे उस दौर में इंदौर में नेशनल हेरोल्ड को 22 हजार वर्ग फीट जमीन ओनेपोने दाम पर दी गई थी. उसके बाद 30 साल तक जमीन का कोई उपयोग नहीं हुआ.
इंदौर के प्रेस कॉम्पलेक्स में ए 1 नंबर का प्लॉट नेशनल हेरल्ड को दिया गया था. 2008 में जब नेशनल हेरल्ड अखबार निकलना बंद हो गया तो उसके एक साल बाद 2009 में इंदौर से नेशनल हेरल्ड अखबार चालू हुआ. लेकिन ये भी विवादों में घिर गया.
सभार : एबीपी न्यूज़ चैनेल
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