नेहरू के अहसानमंद थे कास्त्रो, इंदिरा को मानते थे अपनी बहन

fedel-indira-fidel-indiraनई दिल्ली। कद्दावर कम्यूनिस्ट नेता और करीब 50 साल तक क्यूबा की सत्ता संभालने वाले फिदेल कास्त्रो के रिश्ते अमेरिका के साथ भले ही ज्यादा अच्छे न रहे हों, लेकिन भारत के साथ क्यूबा के इस नेता के रिश्ते हमेशा से ही मजबूत रहे.

कास्त्रो जब न्यूयॉर्क के एक होटल में रुके थे, उस दौरान उनकी मुलाकात देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से हुर्इ. तब उनकी उम्र 34 साल थी. उन्हें अंतरराष्ट्रीय राजनीति का कोई खास तजुर्बा नहीं था.

तब नेहरू ने उनका हौसला बढ़ाया जिसकी वजह से उनमें ग़ज़ब का आत्मविश्वास जगा. इस बात को कास्त्रो ने खुद माना था आैर उन्होंने कहा था कि मैं ताउम्र नेहरू के उस एहसान को नहीं भूल सकता.

भारत के पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह का कहना है कि कास्त्रो इंदिरा गांधी को हमेशा से अपनी बहन मानते थे. जब इंदिरा गांधी 1974 में गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों के सम्मेलन की अध्यक्षता कर रही थीं. इसी सम्मेलन के उस दृश्य को कौन भूल सकता है, जब फिदेल कास्त्रो ने विज्ञान भवन के मंच पर ही सरेआम इंदिरा गांधी को गले लगा लिया था.

इससे पहले कास्त्रो 1973 में भारत आए थे, तब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी खुद उनके स्वागत के लिए दिल्ली में एयरपोर्ट पर पहुंची थी. कास्त्रो उस वक्त अपनी वियतनाम यात्रा पर थे.

पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री और सीपीएम नेता ज्योति बसु की क्यूबा के राष्ट्रपति फिदेल से काफी अलग तरह की मुलाकात रही. एक बार जब बसु क्यूबा के दौरे पर थे उन्हें रात को 11:30 बजे बुलाया गया, जहां कास्त्रो ने उनसे पश्चिम बंगाल और भारत के विकास पर बातें की.

इसके अलावा कास्त्रो ने भारत के सामाजिक सेक्टर के विकास पर भी ज्योति बसु से बातें की. उनकी इस कोशिश ने यह साबित किया कि वह भारत के विकास और मुद्दों पर काफी रुचि रखते थे.

इसके अलावा कास्त्रो ने भारत के सामाजिक सेक्टर के विकास पर भी ज्योति बसु से बातें की. उनकी इस कोशिश ने यह साबित किया कि वह भारत के विकास और मुद्दों पर काफी रुचि रखते थे.

साल 1985 में जब राजीव गांधी भारत के प्रधानमंत्री थे, तब वे एक बार क्यूबा के दौरे पर गए थे, जहां उन्होंने भारत के विकास और भारत-क्यूबा संबंधों पर बातें की. राजीव गांधी के साथ हुई चर्चा से कास्त्रो खासा प्रभावित हुए थे.

1993 में ज्योति बसु के दौरे के वक्त एक घटना का जिक्र करते हुए सीताराम सीताराम येचुरी बताते हैं, “अचानक हमने देखा कि फ़िदेल हमें विदा करने के लिए आ रहे हैं. मेरे कंधे पर एक बैग लटका हुआ था. कास्त्रो हमेशा की तरह अपनी वर्दी में थे. उनके पास एक पिस्तौल थी.”

येचुरी आगे बताते हैं, “कास्त्रो ने मुझसे पूछा कि मेरे बैग में क्या है? मैंने कहा कि बैग में कुछ किताबें हैं. फ़िदेल ने कहा तुम तो आ गए हो, वैसे मेरे सामने कोई बैग लेकर नहीं आता. पता नहीं इसमें क्या रखा हो? अमेरिका की सीआईए ने मुझे बहुत बार मारने की कोशिश की है.”

सीपीएम महासचिव ने आगे इस घटना को याद करते हुए बताया, “मैंने कहा आपके पास तो पिस्तौल है. अगर कोई आप पर हमला करे तो उस पर इसे चला सकते हैं. फिदेल ने मुस्कराते हुए कहा था ये एक राज़ है. ये पिस्तौल मैंने दुश्मनों को डराने के लिए रखी है. लेकिन इसमें कभी गोली नहीं होती.”

 

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