पुलिस स्मारक में शहीद नहीं जिंदा शख्स की मूर्ति, CM ने दी श्रद्धांजलि

लखनऊ। पुलिस स्मृति दिवस पर बुधवार 21 अक्टूबर को सीएम अखिलेश यादव ने पुलिस लाइंस में जाकर शहीद पुलिसकर्मियों को श्रद्धांजलि दी। उन्होंने नम आंखों से जिस मूर्ति पर फूल चढ़ाए, वह किसी शहीद की नहीं, बल्कि एक जीवित पुलिसकर्मी की है। हालांकि, ऐसा पहली बार नहीं हुआ है, 86 वर्षीय रिटायर्ड हरिहर सिंह की मूर्ति को शहीद के रूप में 1987 से ही श्रद्धांजलि दी जा रही है। कुछ वर्ष पहले तक उन्हें इस दिन बुलाया भी जाता था, लेकिन अब उन्हें कोई याद नहीं करता।
किसने लगवाई मूर्ति
यूपी में कुछ साल पहले पूर्व सीएम मायावती ने जब अपनी मूर्तियां लगवाईं तो कहा गया कि पहली बार किसी जिंदा शख्स की मूर्तियां लगाई जा रही है, लेकिन यूपी में तो यह कारनामा 1987 में ही पुलिस विभाग कर चुका था। तत्कालीन आईजी एससी दीक्षित को शायद मूर्ति के लिए किसी शहीद की कद-काठी पसंद नहीं आई। इसलिए उन्होंने एक जीवित पुलिसकर्मी की ही प्रतिमा बनवा दी।
प्रदेशभर से मंगाई गई एंट्री
वर्ष 1982 में यूपी पुलिस प्रमुख आईजी एससी दीक्षित थे। आईजी ने पुलिस स्मृति दिवस के लिए एक स्मारक बनवाने का फैसला किया। उन्होंने ही यहां एक मूर्ति लगवाने की सोची, लेकिन इसके लिए उन्होंने किसी शहीद को नहीं चुना। आईजी ने प्रदेशभर के पुलिसकर्मियों से एंट्री मंगवाई। उन्होंने कहा कि जो पुलिसकर्मी खुद की मूर्ति बनवाना चाहते हैं वो हथियार के संग फोटो खिंचवाकर भेजें। बहुत से अन्य पुलिसकर्मियों की तरह हरिहर सिंह ने भी अपनी फोटो भेजी, जो सिलेक्ट कर ली गई।
वर्ष 1982 में यूपी पुलिस प्रमुख आईजी एससी दीक्षित थे। आईजी ने पुलिस स्मृति दिवस के लिए एक स्मारक बनवाने का फैसला किया। उन्होंने ही यहां एक मूर्ति लगवाने की सोची, लेकिन इसके लिए उन्होंने किसी शहीद को नहीं चुना। आईजी ने प्रदेशभर के पुलिसकर्मियों से एंट्री मंगवाई। उन्होंने कहा कि जो पुलिसकर्मी खुद की मूर्ति बनवाना चाहते हैं वो हथियार के संग फोटो खिंचवाकर भेजें। बहुत से अन्य पुलिसकर्मियों की तरह हरिहर सिंह ने भी अपनी फोटो भेजी, जो सिलेक्ट कर ली गई।
मूर्तिकार के पास भेजा गया बड़ौदा
इसके बाद हरिहर सिंह को मूर्तिकार के पास गुजरात के बड़ौदा शहर भेजा गया। वहां वह एक महीने तक रहे। हर दिन पांच घंटे तक राइफल पकड़कर बेंच पर खड़े रहते थे और मूर्तिकार उन्हें देखकर पत्थर को आकार देता था।
इसके बाद हरिहर सिंह को मूर्तिकार के पास गुजरात के बड़ौदा शहर भेजा गया। वहां वह एक महीने तक रहे। हर दिन पांच घंटे तक राइफल पकड़कर बेंच पर खड़े रहते थे और मूर्तिकार उन्हें देखकर पत्थर को आकार देता था।
समाजवादी सरकार को पता नहीं मैं जिंदा हूं
हरिहर सिंह ने बताया, ‘सीएम अखिलेश यादव को शायद मेरे जीवित होने की जानकारी नहीं है। मैं चाहता हूं कि उन तक मेरी यह आवाज पहुंचे कि हरिहर सिंह अभी जिंदा है। मेरी मूर्ति पर तो फूल चढ़ाए जाते हैं, लेकिन मुझे कोई पूछने वाला नहीं।’
हरिहर सिंह ने बताया, ‘सीएम अखिलेश यादव को शायद मेरे जीवित होने की जानकारी नहीं है। मैं चाहता हूं कि उन तक मेरी यह आवाज पहुंचे कि हरिहर सिंह अभी जिंदा है। मेरी मूर्ति पर तो फूल चढ़ाए जाते हैं, लेकिन मुझे कोई पूछने वाला नहीं।’
पहले बुलाकर किया जाता था सम्मान
हरिहर सिंह ने बताया,’कुछ साल पहले लखनऊ के एसएसपी रहे अखिल कुमार और डीआईजी प्रेम प्रकाश को मेरे जिंदा होने की जानकारी थी। इसलिए वह पुलिस स्मृति दिवस पर मुझे बुलाकर सम्मानित कराते थे, लेकिन जब से सपा सरकार बनी तब से मेरे बारे में सही जानकारी मुख्यमंत्री को नहीं दी गई।’
हरिहर सिंह ने बताया,’कुछ साल पहले लखनऊ के एसएसपी रहे अखिल कुमार और डीआईजी प्रेम प्रकाश को मेरे जिंदा होने की जानकारी थी। इसलिए वह पुलिस स्मृति दिवस पर मुझे बुलाकर सम्मानित कराते थे, लेकिन जब से सपा सरकार बनी तब से मेरे बारे में सही जानकारी मुख्यमंत्री को नहीं दी गई।’
पोते को वर्दी में देखना चाहते हैं हरिहर सिंह
बुजुर्ग हरिहर चाहते हैं कि पुलिस मेडल और प्रेसिडेंट मेडल विजेता के तौर पर मिलने वाली सुविधाएं उन्हें मुहैया कराई जाएं। इसके अलावा वह चाहते हैं कि उनके पोते गौरव सिंह को पुलिस विभाग में नौकरी दी जाए। वह पोते को वर्दी में देखना चाहते हैं।
बुजुर्ग हरिहर चाहते हैं कि पुलिस मेडल और प्रेसिडेंट मेडल विजेता के तौर पर मिलने वाली सुविधाएं उन्हें मुहैया कराई जाएं। इसके अलावा वह चाहते हैं कि उनके पोते गौरव सिंह को पुलिस विभाग में नौकरी दी जाए। वह पोते को वर्दी में देखना चाहते हैं।
हरिहर सिंह के अचीवमेंट्स
हरिहर सिंह ने बताया कि वह वर्ष 1948 में पुलिस में भर्ती हुए थे। 40 साल की सेवा के दौरान वह प्रमोट होकर 35वीं बटालियन पीएसी के आरएसआई यानि, दलनायक बने। इन्हें 1977 में यूपी स्टेट राइफल एसोसिएशन की ओर से आयोजित प्रतियोगिता में सेकंड प्राइज, 1987 में पुलिस मेडल और 1987 में ही प्रेसिडेंट मेडल के लिए उन्हें चुना गया। उन्होंने एक जूनियर लीडर कोर्स चलाया और कई ट्रेनी पुलिस अधिकारियों को ट्रेनिंग दी।
हरिहर सिंह ने बताया कि वह वर्ष 1948 में पुलिस में भर्ती हुए थे। 40 साल की सेवा के दौरान वह प्रमोट होकर 35वीं बटालियन पीएसी के आरएसआई यानि, दलनायक बने। इन्हें 1977 में यूपी स्टेट राइफल एसोसिएशन की ओर से आयोजित प्रतियोगिता में सेकंड प्राइज, 1987 में पुलिस मेडल और 1987 में ही प्रेसिडेंट मेडल के लिए उन्हें चुना गया। उन्होंने एक जूनियर लीडर कोर्स चलाया और कई ट्रेनी पुलिस अधिकारियों को ट्रेनिंग दी।
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