फोर्ड अस्पताल के डॉक्टरों की करतूत, 10 हजार आैर नहीं दिए तो वेंटिलेटर हटाया

fordतहलका एक्सप्रेस प्रतिनिधि, लखनऊ। लोहिया अस्पताल के लालची सर्जन के हाथों एक युवक की मौत का मामला अभी ठंडा भी नहीं पड़ा था कि गोमती नगर के पत्रकारपुरम चौराहे के पास स्थित फोर्ड अस्पताल में इलाज में लापरवाही से एक मरीज की जान चली गई। इलाज के लिए 4.60 लाख रुपये देने के बावजूद डॉक्टरों ने मरीज का वेंटिलेटर हटा दिया। वेंटिलेटर हटते ही मरीज की हालत बिगड़ गई। परिवारीजन डॉक्टरों के सामने गिड़गिड़ाते रहे पर कोई भी डॉक्टर मरीज को देखने नहीं पहुंचा। आखिरकार उसका दम टूट गया। इससे भड़के परिवारीजनों और ग्रामीणों ने अस्पताल में जमकर तोड़फोड़ की। मेन गेट, रिसेप्शन व फॉर्मेसी का शीशा, एलईडी टीवी और गमले तोड़ डाले। हंगामा होते देख डॉक्टर हॉस्पिटल से फरार हो गए। करीब साढ़े तीन घंटे तक अस्पताल से लेकर गोमतीनगर थाने तक हंगामा चलता रहा। मौके पर पहुंची गोमतीनगर पुलिस ने समझा बुझाकर किसी तरह मामला शांत कराया। देर रात थाने में दोनों पक्ष बिना मामला दर्ज कराए वापस लौट गए।

चिनहट क्षेत्र के अहिमा गांव निवासी हनुमान यादव के 22 वर्षीय पुत्र गिरधारी लाल यादव 21 जुलाई को सड़क दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल हो गए थे। घायल अवस्था में परिजनों ने मरीज को गोमतीनगर के फोर्ड अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती कराया। डॉक्टरों ने बताया कि घबराने की बात नहीं है थोड़ा समय लगेगा मरीज ठीक हो जाएगा। लेकिन मरीज के सेहत में कोई सुधार नहीं हुआ। मृतक गिरधारी के भाई अमर सिंह ने आरोप लगाया कि अस्पताल में डॉक्टरों का ध्यान इलाज से ज्यादा पैसा वसूलने में था। इसी की वजह से भाई की मौत हो गई। अमर ने बताया कि सिर में चोट बताकर गिरधारी को आईसीयू, वेंटिलेटर यूनिट में शिफ्ट कर दिया गया। 29 जुलाई को गिरधारी की हालत सुधरी तो वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया। तब तक इलाज के नाम पर 4 लाख रुपये वसूल चुके थे।

अमर के अनुसार गिरधारी ठीक हो रहा था। तीन अगस्त को न्यूरो के डॉक्टर सुनील अग्रवाल राउंड पर आए और कहा, इसे फिर से वेंटिलेटर पर भेजना पड़ेगा। इसके बाद अचानक ही शनिवार रात गिरधारी की तबीयत खराब होने लगी। डॉक्टरों ने उसे फिर से वेंटिलेटर पर शिफ्ट कर दिया। वेंटिलेटर पर शिफ्ट करने के कुछ घंटे के भीतर ही अस्पताल ने 50 हजार रुपये जमा करा लिए। रविवार को कुछ दवा, इंजेक्शन और वेंटिलेटर फीस के तौर पर 20 हजार रुपये फिर जमा करने को कहा।

अमर ने कहा कि 10 हजार जमा कर दिया। बैंक बंद था इसलिए बाकी का पैसा सोमवार को जमा करने को कहा। तब वेंटिलेटर यूनिट में तैनात डॉक्टर और जूनियर डॉक्टरों ने कहा कि बिना पैसा जमा किए इलाज नहीं होगा। इसके बाद शाम साढ़े छह बजे वेंटिलेटर से हटा दिया और गिरधारी ने दम तोड़ दिया। शाम करीब साढ़े छह बजे गिरधारी की मौत के बाद शोकाकुल परिवारीजनों ने घर पर जानकारी दी तो भारी संख्या में स्थानीय लोग अस्पताल पहुंच गए। मामला पता चला तो उग्र हो गए।

अस्पताल के शीशे का गेट, एलईडी टीवी, रिसेप्शन का शीशा, टेबल, गमले और अस्पताल परिसर में स्थित फॉर्मेसी का शीशा तोड़ दिया। अस्पताल में तोड़फोड़ और भीड़ का गुस्सा देख डॉक्टर से लेकर कर्मचारी अस्पताल छोड़ भागे जबकि वेंटिलेटर और आईसीयू यूनिट में तैनात डॉक्टर और पैरामेडिकल स्टाफ ने खुद को कमरे में बंद कर जान बचाई। इसके बाद मौके पर पहुंची गोमतीनगर पुलिस ने मरीज के मामा, भाई और अन्य रिश्तेदारों के साथ अस्पताल के प्रशासनिक अधिकारी डॉ. पंचम सिंह को समझा-बुझाकर थाने ले आई। देर रात थाने में दोनों पक्ष बिना मामला दर्ज कराए वापस लौट गए।

मरीज की मौत पर अस्पताल में घंटों हंगामा और तोड़फोड़ चलता रहा। जिसके कारण अस्पताल में भर्ती मरीज और उनके तीमारदार इस हंगामे के चलते सहम गए थे। दूसरे मरीज के परिजनों ने भी मरीज की मौत में अस्पताल प्रशासन की लापरवाही बताई है। अन्य तीमारदारों ने भी बताया कि पैसे न जमा करने पर अस्पताल प्रशासन ऐसा ही करता है। 21 जनवरी को भी अस्पताल में अलीगंज निवासी एडवोकेट रितेश तिवारी की मां मंजुला तिवारी की मौत होने के बाद परिजनों ने जमकर हंगामा मचाया था। मरीज के दाएं पैर का नी-रिप्लेसमेंट कराने के लिए अस्पताल में भर्ती कराया था। अस्पताल के आर्थोपेडिक सर्जन डॉ. संदीप गर्ग ने 15 नवबंर को मरीज का नी-रिप्लेसमेंट किया।

ऑपरेशन में दाए पैर की ऑटरी थ्रम ब्रोसेस डैमेज हो गया। डॉ. गर्ग ने प्लास्टिक सर्जन डॉ. वैभव खन्ना से प्लास्टिक सर्जरी कराकर 16 नवबंर को बाईपास कराकर दूसरी आटरी बनवाई गई। बाईपास सही से न हो पाने के कारण मरीज का 17 नवबंर को दोबारा बाईपास किया गया। जिसके बाद से मरीज का स्वास्थ्य खराब रहने लगा। डॉक्टरों ने मरीज को 27 दिसबंर को अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया और मरीज को हार्ट की समस्या शुरू हो गई और मौत हो गई थी।

 

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