बीजेपी में एक नहीं ये 8 नेता हैं बिहार सीएम पद के दावेदार!

bjp_FLAGतहलका एक्सप्रेस

नई दिल्ली। बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन की ओर से नीतीश कुमार मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार हैं लेकिन एनडीए ने कोई उम्मीदवार नहीं बनाया। इसे लेकर लालू और नीतीश ने एनडीए पर लगातार हमले भी किए। कभी पार्टी में दूल्हे न होने की बात तो कभी बिहारी बनाम बाहरी का मुद्दा, लेकिन जातीय समीकरणों के खतरे को बखूबी समझते हुए एनडीए ने महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड की तरह बिहार में भी सीएम कैंडिडेट से दूरी बनाना ही बेहतर समझा। बिहार में एनडीए की तरफ से कई नेता खुद में मुख्यमंत्री का भविष्य तलाश रहे हैं। लेकिन इनमें से कुछ ऐसे चेहरे हैं जिन्हें सही मायने में मुख्यमंत्री पद का दावेदार माना जा सकता है। इनके नामों को लेकर चर्चाओं का बाजार गरम है। आइए जानते हैं इनमें कौन-कौन से नाम शामिल हैं।

राजेंद्र सिंह

बिहार में सीएम पद के लिए दावेदारी में सबसे पहले राजेंद्र सिंह का नाम है और इसके कारण भी हैं। 49 साल के राजेंद्र सिंह बिहार के रोहतास जिले के रहने वाले हैं और बीजेपी की पहली 43 लोगों की लिस्ट में उन्हें उनके गृह जिले के दिनारा विधानसभा सीट से मैदान में उतारा गया है। राजेंद्र सिंह का नाम सूची में देखकर न सिर्फ बीजेपी कार्यकर्ता बल्कि बड़े-बड़े राजनीतिक विश्लेषक भी हैरान रह गए। राजेंद्र सिंह न सिर्फ साफ सुथरे छवि वाले नेता हैं, बल्कि उस 4 सदस्यीय कोर कमिटी के मेंबर भी हैं जो बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने बिहार को 4 भागों में बांटकर सबको एक जिम्मेदारी दी थी।

गौरतलब है कि हमेशा पर्दे के पीछे से काम करने वाले राजेंद्र सिंह की भूमिका झारखंड में हुए विधान सभा चुनाव में बीजेपी को भारी जीत दिलाने में काफी अहम माना जाता है। झारखंड चुनाव के बाद सिंह का कद बीजेपी में काफी बढ़ गया था। यही नहीं संघ के बेहद कर्मठ नामों में से एक राजेंद्र सिंह के प्रबंधन कौशल और कामों की तारीफ संगठन में भी किया जाता रहा है। वर्तमान समय में राजेंद्र सिंह झारखंड में बिहार इकाई के संगठन मंत्री के पद पर हैं।

इसे एक महज संयोग माने या बीजेपी का इतिहास कि इससे पहले मनोहर लाल खट्टर भी इसी पद पर अपनी सेवा प्रदान कर चुके हैं। यहां तक कि पीएम मोदी भी अतीत में मुख्यमंत्री बनने से पहले इसी पद पर थे। संगठन मत्री का पद आरएसएस और बीजेपी के बीच का कड़ी माना जाता है और यही कारण है कि इस पद को काफी अहम माना जाता है। यही नहीं राजेंद्र सिंह पहले आरएसएस के पूर्णकालिक सदस्य थे और डेपूटेशन पर बीजेपी में शामिल हुए थे।

यहां यह समझ लेना बेहद जरूरी है कि आरएसएस ने अब तक सिर्फ तीन बार प्रचारकों को चुनाव लड़ने की इजाजत देने के लिए अपने संविधान में परिवर्तन किया है। इन तीन नामों (पहले हैं, 2001 में नरेंद्र मोदी जिन्हें गुजरात का सीएम बनाया गया, दूसरे हैं मनोहर लाल खट्टर, जिन्हें हरियाणा का सीएम बनाया गया और तीसरे हैं राजेंद्र सिंह) को गौर से देखने पर इतना साफ पता चलता है कि पार्टी के अंदर राजेंद्र सिंह को बड़ी भूमिका देने को लेकर गहन-विचार विमर्श चल रहा है। राजेंद्र सिंह की साफ सुथरी छवि और अचानक चुनावी मैदान में कूदना इन संभावनाओं को और अधिक बल प्रदान करता है।

डॉ. प्रेम कुमार

बिहार में सीएम उम्मीदवारों की सूची में एक नाम डॉ. प्रेम कुमार का भी है। गया से 6 बार विधायक रह चुके डॉ. प्रेम कुमार को पिछड़े वर्ग का नेता माना जाता है। गया के चुनावी रैली में पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता शाहनवाज़ हुसैन ने कहा, अगर ये जीत कर गए तो गया का नाम रौशन करेंगे। शाहनवाज के फेसबुक पेज पर प्रेम कुमार को सीएम दावेदार तक बता दिया गया। हालांकि बाद में इसे पेज से हटा लिया गया। शाहनवाज हुसैन ने खुद सफाई दी कि उनके कहने का ये मतलब नहीं था। अत्यंत पिछड़े वर्ग से आने के कारण और बिहार की राजनीति में काफी पकड़ और प्रसिद्ध होने के कारण सरकार बनने की स्थिति में प्रेम कुमार के नाम को स्वीकार किया जा सकता है। प्रेम कुमार को लेकर उनके समर्थक सोशल मीडिया पर Dr.prem kumar for CM of BIHAR नाम का फेसबुक पेज बनाकर अभियान चला रहे हैं। इस पेज में भी प्रोफाइल फोटो में भी पीएम मोदी के बगल में खड़े दिखाया गया है। प्रेम कुमार अपनी वरीयता के आधार पर खुद को भी कई बार मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बता चुके हैं।

सुशील मोदी

बिहार बीजेपी के सबसे कद्दावर नेताओं में से एक और नीतीश सरकार में उपमुख्यमंत्री पद पर रहे सुशील मोदी की संगठन पर ज़बरदस्त पकड़ है। सुशील मोदी न सिर्फ लालू यादव और उनकी पार्टी के खिलाफ संघर्ष में बीजेपी की तरफ से एकमात्र चेहरा रहे हैं, बल्कि अभी भी बिहार में बीजेपी की तरफ से सबसे बड़ा चेहरा और मुख्यमंत्री पद के सबसे प्रबल दावेदार माने जाते रहे हैं। खासियत ये है कि विरोधी भी इनको पसंद करते हैं। इस समय सुशील मोदी (2012 से) विधान परिषद के सदस्य हैं। 1962 में वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ने और 1983–86 के बीच अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के राष्ट्रीय महासचिव पद पर रहने के बाद 1990 में वह सक्रिय राजनीति में पटना सेंट्रल विधानसभा सीट से चुने गए।

1995 और 2000 में भी वे विधायक बने और 1996 से 2004 के बीच वे बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे। 2004 में सुशील मोदी ने भागलपुर लोकसभा सीट से जीत दर्ज की। 2005 और 2010 में बिहार चुनावों में एनडीए की जीत के बाद जब नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने तो सुशील मोदी उपमुख्यमंत्री बने। अगर चुनाव जीतकर सरकार बनाने की बात आएगी तो इनके नाम पर भी आम सहमति बन सकती है। हालांकि इस चुनाव में कई और चेहरे खड़े होने से इनका पलड़ा थोड़ा हल्का हुआ है। फिर भी बिहार के ये चमकते सितारे हैं। सोशल मीडिया पर सबसे अधिक एक्टिव रहने वाले बिहार बीजेपी के इस नेता के समर्थक Sushil Kumar Modi For Bihar CM नाम का फेसबुक पेज बनाकर साथ दे रहे हैं।

जातीय समीकरण के हिसाब से भी अन्य पिछड़ा वर्ग से होने के कारण सुशील मोदी की संभावना अभी भी बरकरार है। हालांकि नीतीश के ज्यादा करीबी होने का खामियाजा उन्हे भुगतना पड़ सकता है।

रामेश्वर प्रसाद चौरसिया

रोहतास जिले के नोखा विधानसभा से विधायक चौरसिया पीएम नरेंद्र मोदी के साथ साथ पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के भी काफी करीबी माने जाते रहे हैं। पार्टी में उनकी छवि भी काफी अच्छी है। चौरसिया ने गुजरात में नरेंद्र मोदी के लिए काफी काम किया था। चौरसिया ने उस समय नरेंद्र मोदी को पीएम बनाने की वकालत की थी जब बिहार में सुशील मोदी का झुकाव नीतीश कुमार को पीएम उम्मीदवार घोषित करने की तरफ था। नोखा विधानसभा क्षेत्र में चौरसिया समुदाय की जनसंख्यां काफी कम होने के बावजूद चौरसिया वहां से लगातार जीतते रहे हैं। रामेश्वर पिछले चार बार से विधायक हैं। अति पिछड़े वर्ग से आने के कारण जातीय समीकरण को साधने के लिहाज से भी इनके नाम पर आम सहमति बन सकती है। सोशल मीडिया पर इनके समर्थक I support Rameshwar Prasad Chaurasia नाम का फेसबुक पेज बनाकर उनका समर्थन कर रहे हैं। इस चुनाव में प्रेम कुमार के चुनावी रैलियों में भी कई दिलचस्प नारे देखने को मिले जैसे- खाली कर दो रास्ते, प्रेम कुमार के वास्ते। हालांकि प्रेम कुमार के उपर क्षेत्र में कम सक्रिय रहने का आरोप लगता रहा है जो उनके लिए चिंता का विषय हो सकता है।

रविशंकर प्रसाद

नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल में वरिष्ठ मंत्री रविशंकर प्रसाद बिहार बीजेपी के उन नेताओं में शामिल हैं जो राष्ट्रीय राजनीति में अहम स्थान रखते हैं। हालांकि बिहार में रविशंकर प्रसाद जनाधार वाले नेता तो नहीं हैं लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के काफी चहेते रहे हैं। अगर बीजेपी के प्रदेश स्तरीय नेताओं में किसी एक पर बात नहीं बनी तो लंबे समय से मीडिया में बीजेपी का चेहरा रहे रविशंकर बिहार चुनाव में एनडीए का चेहरा बन सकते हैं। बिहार में विकासवादी सोच के लिहाज से अगर देखा जाए तो यहां भी रविशंकर प्रसाद बीजेपी की तरफ से सीएम पद के लिए आगे आ सकते हैं।

नंदकिशोर यादव

बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता नंदकिशोर यादव बीजेपी में एकलौते यादव जाति के बड़े नेता हैं जिनकी छवि सुशील मोदी की तरह नीतीश के वफादर की नहीं है। यादवों का बिहार की राजनीति में अच्छा-खासा प्रभाव है। नीतीश सरकार में नंदकिशोर यादव को बढ़िया काम करने वाले मंत्री का खिताब भी मिल चुका है। बिहार में यादवों का करीब 20 फीसदी वोट है।

शाहनवाज हुसैन

बिहार की राजनीति में शाहनवाज हुसैन का भी महत्व अचानक बढ़ गया है। भागलपुर से लोकसभा चुनाव हारने के बाद भी पार्टी में उनकी अहमियत कम नहीं हुई है। शाहनवाज बीजेपी के सबसे अहम मुस्लिम चेहरा हैं और अल्पसंख्यकों को साथ रखने के लिए यह एक अहम कदम हो सकता है। नीतीश कुमार ने अल्पसंख्यक वोट छिटकने के डर से ही नरेंद्र मोदी के कारण बीजेपी का साथ छोड़ने का फैसला लिया था। मोदी सरकार में शाहनवाज को मंत्री नहीं बनाने के फैसले को भी इससे कहीं न कहीं जोड़कर देखा जा रहा है।

गिरिराज सिंह

नरेंद्र मोदी का कट्टर समर्थक होना गिरिराज सिंह की सबसे बड़ी राजनीतिक पूंजी है वे उस दौर में भी नरेंद्र मोदी के पक्ष में आवाज़ बुलंद करते थे जब जेडीयू से गठबंधन के कारण बिहार के ज्यादातर बीजेपी नेता मोदी के सवाल पर चुप रहना पसंद करते थे। बीजेपी को अगर हिन्दू वोटों के साम्प्रदायिक गोलबंदी की ज़रूरत पड़ी तो वह गिरिराज को आगे कर सकती है।

 

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