महिलाओं से दुर्ब्यवहार मानसिक विकृति है या सामाजिक

shyamalअजीब विडंबना है हम ऐसे देश में जी रहे हैं जहां धार्मिक तौर पर महिलाओं को सबसे ऊंचा स्थान दिया गया है। इतना ही नहीं उन्हें एक ऐसी देवी की संज्ञा दी गई है जिसकी साधना और अराधना में लगभग आधा देश नौ-नौ दिनों की सघन तपस्या में लीन रहता है। जी हां मैं नवरात्र की बात कर रहा हूं। भारत पूरे ब्रह्मïांड में एक ऐसा इकलौता देश है जहां धार्मिक और सामाजिक स्तर पर महिला पूजनीय है बावजूद इसके देश की महिलाएं कहीं भी अपनी अस्मत को लेकर सुरक्षित नहीं हैं। कल्पना कीजिए एक तरफ तो देवी आधराना में लीन रहते हैं और दूसरी तरफ सारे रिश्ते मर्यादाओं को तोड़ते हुए एक निहायत ही विकृत बीमारी से ग्रसित होकर महिला के उपभोग में लीन हैं। बलात्कार एक ऐसा शब्द जो अपने आप में ही घिनौना है। जब शब्द इतना घिनौना है तो उस शब्द की कार्य प्रवृत्ति कितनी घिनौनी होगी इसकी कल्पना बेहद सहज है। हमारे देश की महिलाएं अब किसी उपलब्धियों को लेकर सुर्खियों में कम बल्कि पुरुष के पाशविक और विकृत कृत्य के लिए मीडिया में हर तरफ दिखाई दे रही हैं। इस विकृति ने पुरुषों को इस कदर अपने वश में कर लिया है जिसके चलते एक बेटी अपने पिता के पास भी सुरक्षित नहीं, एक बहन अपने भाई के पास सुरक्षित नहीं या एक स्त्री इस समाज में कहीं सुरक्षित नहीं। ऐसा नहीं है कि रेप की घटनाएं सिर्फ हिन्दुस्तान में हो रही हैं। इस विकृति ने पूरे विश्व के पुरुषों को अपने वश में कर रखा है, लेकिन हिन्दुस्तान को लेकर आश्चर्य सिर्फ इसलिए होता है कि यह एक इकलौता देश है जहां साल में दो बार नौ-नौ दिनों की उपासना के बाद शक्ति अर्जन की प्रक्रिया होती है। यह विश्व का पहला देश है जहां एक बहन अपने भाई की कलाई पर कुछ कच्चे धागे बांधकर यह सौगंध दिलाती है कि वह भाई जीवन पर्यंत उसकी और उसकी अस्मत की रक्षा करेगा। आश्चर्य इसलिए भी होता है कि हिन्दुस्तान ही एक ऐसा इकलौता देश जहां अभी भी उसकी सामाजिक और आर्थिक सोच सिर्फ और सिर्फ संबंधों के इर्द-गिर्द चलती है। जिन संबंधों की दुहाई देकर एक परिवार का निर्माण होता है, एक समाज का निर्माण होता है और पूरे देश का निर्माण होता है उन्हीं संबंधों की मर्यादाएं तार-तार होती दिख रही है। फिलवक्त सबसे ताजा मामला शीना मर्डर को ले लीजिए। इसमें भी कई बार यह बात उठी कि शीना की मां इंद्राणी के साथ उसके चाचा अथवा सौतेले पिता ने बलात्कार किया था। और तो और देश में रिश्तों की मर्यादाओं को तार-तार होते देखना है तो रोज सुबह अखबार उठाइए तो पहले पृष्ठï से आखिरी पृष्टï तक कम से कम दस बलात्कार की खबरें जरूर मिल जाएंगी और उससे भी बेहद शर्मनाक यह कि इन दस विकृत घटनाओं में पांच तो ऐसी होंगी जिन्हें अंजाम देने का काम या तो किसी पिता, किसी भाई, किसी चाचा या किसी मामा ने दिया होगा। हम किधर जा रहे हैं। क्या हमें अहसास नहीं है कि हम किधर जा रहे हैं या ऐसा है कि हम सब कुछ जानते, समझते इस राह पर बेधड़क चले जा रहे हैं। इसके लिए दोषी कौन है, सिर्फ इसके लिए कोई पुरुष दोषी है या सिर्फ कोई महिला दोषी है या फिर समाज दोषी है। शायद नहीं इसके लिए तो हम सब और हम सबकी सोच दोषी है। एक महिला के पहनावे को देखते हुए हमारे रूढि़वादी सोच के लोग तुरंत कहना शुरू कर देते हैं कि ये वेस्टर्न कल्चर है। अरे बेशर्मों, मान लिया तुम्हारी बात सही है लेकिन सिर्फ पहनावे को वेस्टर्न कल्चर कह देते हो। उस वेस्टर्न कल्चर में एक महिला इतनी बार पुरुष की हवस का शिकार नहीं होती जितना तुम्हारे खुद के कल्चर में होती है। सोच बदलो नहीं तो….!

 

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