रावण से कम मायावी नहीं उसके पुतलों की मंडी

नई दिल्ली। इन दिनों वेस्ट दिल्ली के टैगोर गार्डन मेट्रो स्टेशन से जैसे ही आप नीचे उतरेंगे, खुद को रावण के पुतलों की रंग-बिरंगी दुनिया में खड़ा पाएंगे। यहां से शुरू होती है पुतलों की सबसे बड़ी मंडी तितारपुर। एक से डेढ़ महीने का यह सीजनल कारोबार भी रावण से कम मायावी नहीं है। कुछ दशक पहले तक राजस्थान के गड़िया लोहार और दूसरे बंजारा समुदायों तक सीमित रहने वाले पुतलों के काम में अब ऊंची जातियों और लोकल ‘कुबेरों’ ने भी हाथ आजमाना शुरू कर दिया है।
इन दिनों ज्यादातर स्थानीय ट्रेडर और प्रॉपर्टी डीलर भी देश भर से आए ऑर्डर की सप्लाई करने में जुट जाते हैं। इनमें से कई अपने पुतलों की नुमाइश तो शान से करते हैं, लेकिन सामने नहीं आना चाहते। बिल्डिंग मैटीरियल और कॉन्ट्रैक्टर का काम करने वाले सी. के. तंवर फिलहाल डेढ़ महीने से पुतले बनाने और ऑर्डर बुक करने में जुटे हैं। फोटो नहीं छापने की शर्त पर करीब 15 फुट ऊंचे रावण के सिर और लगभग इतने ही बड़े मुकुट को दिखाते हुए कहते हैं, ‘इस साल हमने रिस्क लिया है। आम तौर पर यहां पुतले 10 से 50 हजार के बीच बिकते हैं। लेकिन इसमें हमारा एक लाख से ज्यादा खर्च किया है। आखिरी क्षण तक इंतजार करेंगे, बिक गया तो 5 लाख तक मिल सकते हैं। वरना इसे हम अपनी सोसायटी में जलाएंगे। दशहरे के बाद रावण के लिए स्टोरेज जैसी कोई चीज नहीं होती। उसे हर हाल में डिस्पोज करना होता है।’
तितारपुर में 80 पर्सेंट से ज्यादा रावण 25 से 45 फुट की रेंज में बनते हैं, लेकिन कुछ ट्रेडर्स ने साइज से ज्यादा क्वॉलिटी और डिजाइन पर निवेश किया है। लेकिन हैरान करने वाली बात यह है कि वे मीडिया में अपना नाम या तस्वीर नहीं देखना चाहते। पेशे से इलेक्ट्रॉनिक डीलर और पोस्ट ग्रेजुएट एक ट्रेडर ने बताया, ‘ज्यादातर बड़े सप्लायर महीने भर में डेढ़ 2 लाख प्रॉफिट कमा लेते हैं, जो उनके मूल पेशे से ज्यादा है। चूंकि हाल तक यह काम छोटे तबके के लोग करते थे, ऐसे में वे यह सब पर्दे के पीछे से ही करते हैं। मैं खुद नहीं चाहता कि मेरे रिश्तेदार या दोस्त ये जानें की मैं यहां पुतले बेच रहा हूं।’

तितारपुर और टैगोर गार्डन की कॉलोनियों के बीच सड़कों पर हर तरफ रावण के पुतले नजर आते ही हैं। एमसीडी कम्युनिटी हॉल के भीतर भी 40-50 फुट लंबे रावण सोते नजर आए। कारीगरों को भी नहीं पता कि इन्हें कौन बनवा रहा है और आखिरकार कितनी रकम किसे मिलेगी। कुछ बड़े डीलर विदेशों से आने वाली डिमांड पर एक महीने के लिए कारीगरों को वहां भिजवाते हैं। ऐसे काम कम मिलते हैं, लेकिन कमाई अच्छी होती है। कारीगरों को 40-50 हजार ही मिलते हैं, लेकिन उन्हें विदेश घूमने की ललक खींच ले जाती है।
ट्रेडर से डील कर 20 हजार रुपये में आपने 40 फुट ऊंचा रावण खरीद तो लिया। लेकिन इसे असेंबल कौन करेगा? ट्रांसपोर्टेशन और फिटिंग के खर्चे लगभग पुतले की कीमत जितना बैठता है। उसका एक पैरलल बाजार भी यहां साथ चलता है। हर पुतला बनाने वाले के पास फिटिंग करने वाले भी हैं, जो साइज के हिसाब से 5 से 25 हजार तक चार्ज करते हैं।
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