लोक सेवा आयोग की सिर्फ पीसीएस ही नहीं, सपा शासन में सभी भर्तियों की होगी सीबीआई जांच

लखनऊ। उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग की सिर्फ पीसीएस ही नहीं, सपा शासन में सभी भर्तियों की सीबीआई जांच होगी। राज्य मंत्रिमंडल ने इस पर मुहर लगा दी। कैबिनेट ने एक अप्रैल 2012 से 31 मार्च, 2017 तक घोषित सभी परीक्षाओं के परिणाम की जांच कराने का फैसला किया है। इसमें वह परीक्षाएं भी आएंगी जिनके विज्ञापन एक अप्रैल 2012 से पहले घोषित हुए लेकिन, परीक्षा व परिणाम बाद में घोषित किया। सरकार के इस फैसले से आयोग में भर्तियों का भ्रष्टाचार उजागर होने की उम्मीदें बढ़ गई हैं।

राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में सपा शासन में आयोग की सभी भर्तियों की सीबीआई जांच का एजेंडा कार्मिक विभाग की ओर से रखा गया। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कुछ दिन पहले सदन में इसकी घोषणा की थी। गौरतलब है कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने 15 मार्च 2012 को प्रदेश के मुख्यमंत्री का पद संभाला था और उनका कार्यकाल मार्च 2017 तक रहा। उनके कार्यकाल में आयोग पर भ्रष्टाचार के कई आरोप लगे और हाईकोर्ट ने भी कई भर्तियों के परिणाम पर अंगुलियां उठाईं।

मंत्रिमंडल के फैसले से आयोग की सबसे अहम परीक्षा पीसीएस समेत नौ हजार से अधिक पद सीबीआई जांच के दायरे में आएंगे। पीसीएस की छह परीक्षाओं के 3127 पदों पर हुई नियुक्तियों की जांच होगी। इनमें स्केलिंग व ओवरलैपिंग के जरिये एक विशेष जाति को वरीयता देने के आरोप रहे हैं। पीसीएस परीक्षाओं में 178 अभ्यर्थियों का चयन एसडीएम और 184 का डिप्टी एसपी पद पर चयन हुआ है। इसी तरह सम्मिलित अवर अधीनस्थ यानी लोअर सबार्डिनेट के 4190 पद, समीक्षा अधिकारी/सहायक समीक्षा अधिकारी के 2057 की भी जांच होगी।

नियुक्तियों में पक्षपात के अलावा आयोग के फैसलों को लेकर भी विवाद खड़े हुए। पीसीएस 2011 में त्रिस्तरीय आरक्षण तथा जाति विशेष को स्केलिंग में अधिक अंक देना, पीसीएस 2012 व 2013 के अंतिम परिणाम में सफल अभ्यर्थियों के नाम के आगे जाति/वर्ग का उल्लेख न करना तथा ओटीपी (वन टाइम पासवर्ड) व्यवस्था लागू करना इसमें मुख्य हैं। प्रतियोगियों का आरोप था कि अपने खास लोगों को नियुक्ति देने के लिए ही यह फैसले हुए।

सीबीआई पीसीएस 2015 की प्रारंभिक परीक्षा का प्रश्नपत्र लीक होने की भी जांच करेगी। आयोग के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ था। उस समय भी प्रतियोगी छात्रों ने सीबीआई जांच की मांग उठाई थी और सुप्रीम कोर्ट तक गए थे लेकिन सफलता न मिली थी। अब उनकी यह मांग पूरी हुई है।

लोअर सबार्डिनेट 2004-06 के विशेष चयन में एक जाति विशेष के अभ्यर्थियों का चयन करने का आरोप है तो लोअर सबार्डिनेट 2008 व 2009 की मुख्य परीक्षा में ही इलाहाबाद के लगभग सभी अभ्यर्थी अप्रत्याशित रूप से असफल घोषित कर दिए गए। इसका परिणाम आने पर इलाहाबाद में जमकर बवाल भी हुआ था। वहीं, लोअर सबार्डिनेट 2013 में प्रश्नों के गलत उत्तर का मामला है।

 

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