वेश्याओं ने सैनिकों को मारे थे ताने, तभी भरा था क्रांति का जोश…

kranti-diwaswww.tahalkaexpress.com मेरठ। 10 मई 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति की शुरुआत हुई थी। उस क्रांति की नींव मेरठ से रखी गई। यहां अंग्रेजों ने भारतीय सैनिकों को सरेआम वर्दी उतरवाकर नंगे बदन पर लोहे की तपती बेड़ियां पहनाईं थीं। वहीं वेश्याओं ने जेल के बाहर बैठे सैनिकों को ताने मारकर विद्रोह करने के लिए इंस्पायर किया था।हम उसी घटना को आपके सामने पेश कर रहे हैं।
डॉ मनोज गौतम ने बताया कि इस घटना की पुष्टि गजेटियर में दर्ज है। डॉ गौतम का कहना है कि वेश्याओं ने लोगों को विद्रोह के लिए उकसाया था। इतिहासकार विघ्नेश कुमार की पुस्तक ‘मेरठ के पांच हजार वर्ष’ में भी इस बात का जिक्र किया गया है। किताब के मुताबिक वेश्याओं ने कछ देशी सैनिकों को ताने मारकर उकसाया था। अंग्रेज फौज में शामिल 85 सैनिकों को गिरफ्तार करने के बाद वेश्याओं ने अन्य हिंदू सैनिकों से ताना मारकर कहा था, “धर्म की रक्षा के लिए उनके भाई बेडियों में कैद हैं और वे कायरों की तरह घूम रहे हैं।” इस तरह अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का कारवां बढ़ता चला गया, जिससे संभालना अंग्रेज अफसरों के लिए मुश्किल हो गया।
राजकीय स्वत्रंता संग्राम संग्राहलय के अध्यक्ष डॉ मनोज गौतम बताते हैं, “अंग्रेज अफसरों ने क्रांति का आगाज करने वाले 85 सैनिकों पर खूब अमानवीय व्यवहार किए थे। उनके साथ जानवरों से भी बुरा सलूक किया गया।” सैनिकों पर किए गए जुल्मों की जानकारी जनता तक पहुंच रही थी। जिसके बाद धीरे-धीरे लोगों में अंग्रेज फौज के अफसरों के खिलाफ गुस्सा फूटने लगा था। इतिहासकारों के मुताबिक 10 मई 1857 को ही भारतीय जनता ने अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन की शुरुआत की थी।
अप्रैल 1857 में अंग्रेजों ने सुअर और गाय की चर्बी लगे कारतूस अपनी सेना में शुरू किए थे। उस कारतूस को बंदूक में लोड करने से पहले मुंह से छीलना जरूरी था। हिंदुओं में गाय तो मुसलमानों में सुअर का मांस वर्जित है। ऐसे में चर्बी लगे कारतूस चलाने को लेकर सैनिकों का गुस्सा फूट पड़ा। कारतूस चलाने से इंकार करने वाले 85 हिंदुस्तानी सैनिकों पर अंग्रेज अफसरों ने खूब जुल्म किए। डॉ मनोज गौतम ने बताया, “विद्रोह करने वाले सैनिकों के खिलाफ कई दिन तक कोर्ट मार्शल की सुनवाई चली। सैनिकों ने 25 अप्रैल 1857 में पहली बार अंग्रेजों का विद्रोह किया था।
6, 7 व 8 मई को उनके खिलाफ कोर्ट मार्शल की सुनवाई हुई।”9 मई को विद्रोह करने वाले सभी 85 सैनिकों को सेंट जोंस चर्च के पीछे मैदान में इकट्ठा किया गया। यहां इन सबकी वर्दी उतारकर लोहे की भारी भरकम बेड़ियों में जकड़ दिया गया। मई की तपती दुपहरी में इन सभी सिपाहियों को अंग्रेज अफसर लोहे की बेड़ियां पहनाकर जेल ले गए। गरम तपती सड़कों पर इन सिपाहियों को नंगे पैर विक्टोरिया पार्क स्थित जेल ले जाया गया था। गरम सड़क पर नंगे पैर चलने से इन सिपाहियों के पैरों में छाले तक पड़ गए थे, लेकिन अंग्रेज अफसरों ने कोई रहमदिली नहीं दिखाई।
अफवाहों ने भड़काई थी क्रांति की चिंगारी
9 मई को यह बात पूरे शहर में फैल गई थी कि अंग्रेजों ने भारतीयों को बंदी बनाने के लिए 2000 लोहे की बेड़ियां बनवाई हैं।अंग्रेज अफसर सभी भारतीय सैनिकों की वर्दी उतारकर उन्हें बेड़ियों में बांधकर बंदी बनाएंगे। इतिहासकारों के मुताबिक बेड़ियों के अलावा बाजार में हड्डी के चूर्ण वाला आटा भी बेचे जाने की अफवाह फैली थी, जिस पर जनता का गुस्सा फूट पड़ा।
गुमनामी में खो गए विद्रोह करने वाले सैनिक
क्रांतिकारियों ने सबसे पहले सदर कोतवाली पर हमला किया। उसके बाद लोग इकट्ठा होकर विक्टोरिया पार्क जेल पहुंचे। जोरआजमाइश कर सभी बंदियों को जेल से छुड़ाया गया। जेल से छुड़ाए गए बंदियों में ये 85 सैनिक भी थे। जेल से रिहा होने के बाद ये सैनिक कहां गए? इनका क्या हुआ? इसका कोई इतिहास नहीं मिलता है। सोशल वर्कर शीलेंद्र चौहान का कहना है कि देश आजाद होने के बाद से लेकर आजतक किसी भी सरकार ने उन सैनिकों के बारे में जानने की कोशिश नहीं की।
100 साल बाद हुआ अशोक स्तंभ का शिलान्यास
क्रांति शुरू होने के 100 साल बाद 1957 में शहीदों के नाम पर मेरठ में अशोक स्तंभ की स्थापना करवाई गई। आज यह अशोक स्तंभ शहीद स्मारक के नाम पर जाना जाता है। इस स्मारक की नींव 1957 में प्रधानमंत्री पंड़ित जवाहरलाल नेहरू ने रखी थी। अब हर साल 10 मई को इस शहीद स्मारक पर शहीद क्रांतिकारियों को श्रद्धांजलि दी जाती है।
 

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