साहित्य अकादमी : लेखकों के खिलाफ लेखक सड़कों पर उतरे

नई दिल्ली। साहित्य अकादमी आज 2 परस्पर विरोधी साहित्यकार गुटों के विरोध प्रदर्शन का केंद्र बन गया है। एक गुट जहां खुद को ‘प्रगतिशील’ कहते हुए मौन मार्च निकाल रहा है, वहीं दूसरे गुट ने खुद को ‘राष्ट्रवादी’ कहते हुए विरोधी गुट पर ‘मोदी सरकार को हाशिए पर धकेलने’ और ‘बौद्धिक आतंकवाद’ का आरोप लगाया है।
साहित्यकारों का एक गुट प्रफेसर कलबुर्गी की तस्वीर के साथ मौन प्रदर्शन निकालता हुआ…
इस विरोधी राष्ट्रवादी खेमे में जो मुख्य साहित्यकार शामिल हैं उनमें नरेंद्र कोहली, नैशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के कोष प्रमुख सुरेश शर्मा और एनडीए सरकार द्वारा हाल ही में नैशनल रिसर्च प्रफेसर के तौर पर नियुक्त किए गए सुर्यकांत बाली का नाम प्रमुख है।
एक ओर जहां सम्मान लौटाने व इस कदम का समर्थन करने वाले साहित्यकार प्रफेसर कलबुर्गी की हत्या, देश में बढ़ती असहिष्णुता समेत कई मुद्दों के खिलाफ मौन प्रदर्शन कर रहे हैं, वहीं विरोधी ‘राष्ट्रवादी’ खेमा इन साहित्यकारों पर राजनीति करने का आरोप लगाते हुए इनके खिलाफ प्रदर्शन कर रहा है। दोनों गुटों द्वारा अपना-अपना विरोध प्रदर्शन जारी है।
लेखकों के प्रदर्शन व साहित्य अकादमी की आपातकालीन बैठक के मद्देनजर सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं…
राष्ट्रवादी लेखकों, कलाकारों और विचारकों का यह संयुक्त दल काफी पुरजोर तरीके से उन साहित्यकारों को एक साथ लाकर विरोध जताने की कोशिश कर रहा है जो कि हाल ही में लेखकों द्वारा साहित्य अकादमी सम्मान लौटाए जाने के पक्ष में नहीं हैं। साहित्यकारों का यह विरोधी खेमा आज ही साहित्य अकादमी को एक साझा ज्ञापन भी सौंपेगा। इस ज्ञापन में अकादमी से दबाव में न आने की विनती की जाएगी। इस ज्ञापन में यह भी कहा जाएगा कि इससे पहले जब देश में हादसे और घटनाएं हुईं तब कभी सम्मान नहीं लौटाया गया।
हमने जब इस बारे में बात की तो नरेंद्र कोहली ने कहा, ‘जब सभी कश्मीरी हिंदुओं को राज्य से बाहर फेंका जा रहा था, या फिर पंजाब में आतंकवाद के दौर के चरम पर जब उन्हें वहां से निकाला जा रहा था या फिर आपातकाल के दौरान जब लेखकों का मुंह बंद करवाया जा रहा था तब सम्मान-पुरस्कार क्यों नहीं लौटाया गया? क्या यह राजनीति नहीं है? जब कन्नड़ बुद्धिजीवी की हत्या हुई तब वहां कांग्रेस सरकार थी। दादरी में समाजवादी पार्टी की सरकार है। लेखकों का यह विरोध और सम्मान लौटाना नरेंद्र मोदी और बीजेपी को हाशिये पर धकेलने की कोशिश है। यह सांप्रदायिकता की एक अलग किस्म है जिसमें साहित्य को गाली की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है।’
रंगमंच के कलाकार सुरेश शर्मा भी इस विरोधी खेमे में शामिल होंगे। उन्होंने कहा, ‘सम्मान लौटाकर विरोध जताना सही तरीका नहीं है। इससे पहले भी कितनी ही घटनाएं हो चुकी हैं। एक लेखक को बौद्धिक तरीके से ही विरोध करना चाहिए।’
सूर्यकांत बाली ने कहा, ‘हम यह बताएंगे कि किस तरह से सम्मान लौटाकर विरोध करने की यह कोशिश असल में बौद्धिक आतंकवाद है। इन लोगों ने कांग्रेस और वामपंथी सरकार के दौरान इतने सम्मान पाए। अभिव्यक्ति की आजादी पर देश में किसी तरह की कोई पाबंदी नहीं है।’ बाली की किताब को संयोगवश राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के जनरल सेक्रटरी कृष्णा गोपाल ने साल 2014 में मानव संसाधन मंत्री की मौजूदगी में लोकार्पित किया था।
पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित कवियित्री सुनीता जैन ने कहा, ‘मेरी तबीयत ठीक नहीं है इसलिए मैं नहीं जा सकूंगी, लेकिन मैं पुख्ता तौर पर मानती हूं कि सम्मान लौटाना विरोध करने का काफी गलत तरीका है। अगर एक लेखक होने के नाते हम किसी चीज का विरोध करते हैं तो हम लिखते हैं। इस तरह गुटबंदी करना सही तरीका नहीं है। यह तो लेखकों में खाई पैदा करना है, वह भी ऐसे समय में जब कि हमें एक-दूसरे का हाथ थामना चाहिए। मुझे पद्म श्री सम्मान मोदी सरकार ने नहीं दिया, बल्कि यह मुझे मेरे काम के कारण मिला है।’
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