सुप्रीम कोर्ट को मंजूर नहीं जजों के अप्वॉइंटमेंट में सरकार का रोल, NJAC खारिज
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल ज्यूडिशियल अप्वाइंटमेंट कमीशन (NJAC) को असंवैधानिक बताया है। हायर जुडिशरी में जजों के अप्वाइंटमेंट के बीस साल से ज्यादा पुराने कॉलेजियम सिस्टम को खत्म करके उसकी जगह संविधान में 99वां संशोधन करके NJAC को लाया गया था। इसकी वैलिडिटी को चुनौती देती पिटीशन पर सुप्रीम कोर्ट की कॉन्स्टीट्यूशनल बेंच ने शुक्रवार को यह फैसला सुनाया।
बता दें कि एनजेएसी अगर लागू होता तो इसमें जजों के अप्वाइंटमेंट में सरकार की भी भूमिका होती। एनजेएसी में चीफ जस्टिस, सुप्रीम कोर्ट के दो सीनियर मोस्ट जज, केन्द्रीय कानून मंत्री के अलावा दो जानकार लोगों को भी शामिल करने का प्रॉविजन है। वहीं, पुराने कॉलेजियम सिस्टम में पांच जजों का पैनल यह अप्वाइंटमेंट करता था। कोर्ट के ताजा फैसले के बाद कॉलेजियम सिस्टम फिर से लागू हो गया है।
क्यों है विवाद?
– जिन दो जानकार लोगों को भी इस कमीशन में शामिल किए जाने की बात कही गई थी, उनका सिलेक्शन चीफ जस्टिस, प्रधानमंत्री और लोकसभा में विपक्ष के नेता या विपक्ष का नेता नहीं होने की स्थिति में लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता वाली कमेटी करती। इसी पर सुप्रीम कोर्ट को सबसे ज्यादा ऐतराज था।
– सुनवाई के आखिरी दिन बेंच ने कहा था कि जुडिशियल अप्वाइंटमेंट के नए सिस्टम में आम लोगाें को शामिल करने से काम नहीं बनेगा।
– अटाॅर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने सरकार का बचाव करते हुए कहा था कि यदि हम बाकी कमीशन में आम लोगों को शामिल कर सकते हैं तो फिर यहां ऐसा क्यों नहीं हो सकता?
क्या था कॉलेजियम सिस्टम?
इसमें सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के अलावा चार सीनियर मोस्ट जजों का पैनल होता था। यह कॉलेजियम ही सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों के अप्वाइंटमेंट और ट्रांसफर की सिफारिशें करता था। ये सिफारिश मंजूरी के लिए पीएम और राष्ट्रपति को भेजी जाती थी। इसके बाद अप्वाइंटमेंट कर दिया जाता था।
15 जुलाई को हुई थी सुनवाई पूरी
जस्टिस जे एस खेहड़ की अध्यक्षता वाली पांच मेंबर्स वाली कॉन्स्टीट्यूशनल बेंच ने 99वें संविधान संशोधन और NJAC की कॉन्स्टीट्यूशनल वैलिडिटी को चुनौती देने वाली याचिका पर 31 दिन तक बहस सुनने के बाद 15 जुलाई को सुनवाई पूरी की थी। इस बेंच में जस्टिस जे चेलामेश्वर, जस्टिस मदन बी लोकूर, जस्टिस कुरियन जोसेफ और जस्टिस आदर्श कुमार गोयल शामिल थे।
विरोध करने वालों का क्या कहना है?
नए कानून को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन और दूसरे लोगों ने दलील दी थी कि जजों के सिलेक्शन और अप्वाइंटमेंट का नया कानून गैरसंवैधानिक है। इससे ज्यूडिशरी के फ्रीडम पर असर पड़ेगा।जानेमाने वकील फली नरीमन, अनिल दीवान और राम जेठमलानी ने NJAC बनाए जाने के खिलाफ तर्क दिए।
कानून के पक्ष में केंद्र का क्या है तर्क?
केन्द्र ने इस नए कानून का बचाव करते हुए कहा था कि बीस साल से ज्यादा पुराने जजों के अप्वाइंटमेंट के सिस्टम में कई खामियां थीं।
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