अधीर चौधरी तो दहाड़े, पर कांग्रेस मिमिया गयी !

के विक्रम राव

अधीर बाबू भी अक्सर बोलते ही रहते हैं| भाजपायी मंत्रियों के भाषण में व्यवधान डालना उनकी फितरत है| सोनिया गाँधी, राहुल गाँधी और सभी 49 सदस्य उन्हें तल्लीनता से सुनते हैं| बजट अधिवेशन में (4 फरवरी 2020) के दिन अधीर बाबू ने भाजपा को “रावण की औलाद” करार दिया था, क्योंकि “आपलोग बापू का अपमान करते हैं|”

किन्तु इस बार (सोमवार, 11 मई 2020) खुद कांग्रेसी जन अधीर बाबू का अजूबा सुनकर विस्मित हो गए| खलबली मची, हड़बड़ा गये| राज्यसभा में पार्टी के खुर्राट उपनेता आनदं शर्मा ने तत्काल लोकसभा के नेता को मौकूफ किया| उनके एक सार्वजनिक बयान को कांग्रेस नीति से बरतरफ कर डाला| अधीर बाबू ने यही कहा था कि नरेंद्र मोदी सरकार को ताइवान द्वीप को मान्यता दे देनी चाहिए| उन्होंने चीन को चेतावनी दे डाली थी कि “अगले सप्ताह की (WHO) बैठक में ताईवान मान्य सदस्य बना रहे|” वे चीन से बोले: “पीलेवर्ण वालों सम्भल कर रहो|” उन्होंने मोदी सरकार को सचेत भी किया कि विश्व स्वास्थ्य परिषद् में ताईवान की सदस्यता निरस्त नहीं होनी चाहिए| हाल ही में ताईवान ने डेढ़ लाख मास्क भारत को भेंट किया| कोरोना कीटाणु को ताइवान में प्रवेश पर पूर्णतया रोका, एकदम खात्मा कर दिया| मगर पार्टी के दबाव में कुछ घंटों बाद ही अधीरभाई ने अपना ट्वीट सन्देश मिटा दिया| क्योंकि उनकी पार्टी ताईवान द्वीप को कम्युनिस्ट चीन का भूभाग मानती है| सिवाय अमरीका के सभी देश चीन को नाराज करने से सहमते हैं|

सप्ताह भर में भारत के समक्ष विश्व स्वास्थ्य परिषद (WHO) के नए सदस्यों के चुनाव पर विकट समस्या आने वाली है| भारत आगामी तीन वर्षों के कार्यकाल में परिषद् की अध्यक्षता संभालेगा| अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने माँग की है कि ताईवान की (WHO) सदस्यता बरक़रार रहे| चीन को वुहान प्रान्त में कोरोना कीटाणु पैदा करने का दोषी मानते हुए दण्डित किया जाय| इनका विरोध करते हुए चीन की माँग है कि वह एक सार्वभौम राष्ट्र है, जिसका छोटा सा भूभाग विद्रोही ताईवान द्वीप है, हांगकांग की भांति, जिसे ब्रिटेन ने डेढ़ सौ साल पुरानी संधि के तहत चीन को लौटा दिया था| हालाँकि अब भारत द्वारा कम्युनिस्ट चीन को माकूल जवाब देने का वक्त आ गया है| अरुणांचल, सिक्किम, लद्दाख, भूटान तथा बाल्टिस्तान पर दावा ठोकने वाले चीन की ताईवान गणराज्य पर जमींदारी को स्वीकारने के मायने हैं कि भारत का अपना सीमावर्ती दावा कमजोर हो जायेगा| शिवलोक कैलाश और मानसरोवर तथा तिब्बत पर तो नेहरू युग में ही लाल चीन ने कब्ज़ा कर लिया था| भारत मौन रहा| इसलिए तेज तर्रार विपक्ष कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने ताईवान को मान्यता देने की माँग रखी थी| मगर भारत भूमि के लगातार टुकड़े कर डालने वाली उनकी पार्टी ने खुद मैदान छोड़ दिया|

अधीरबाबू ने जो कुछ कहा था उसकी एक कहावत से समता करें| (Bull in the china shop) अर्थात चीनी मिटटी से निर्मित बर्तनों की दुकान में सांड़ (अधीर जी) घुस आया हो| जवाहरलाल नेहरू (1948) से लेकर नरेंदे मोदी (2020) तक सभी प्रधान मंत्री ताईवान को कम्युनिस्ट चीन का भूभाग अस्वीकार करने से हिचकते रहे| हालाँकि ताईवान एक गणराज्य है| वहां बहुदलीय लोकतान्त्रिक संसदीय चुनाव होता है| जब कि चीन में केवल एक पार्टी की सात दशकों से तानाशाही रही है| ताईवान के संस्थापक राष्ट्रपति जनरल च्यांग काई शेक ने भारतीय स्वाधीनता संघर्ष का भरपूर समर्थन किया था| नेहरू ने 1948 तक उन्हें अपना परम स्नेही माना था| विशेषकर लावण्यमयी मदाम च्यांग सूंग मायीलींग को| मगर कम्युनिस्ट कमान्डर माओ ज़ेडोंग की सेना द्वारा राष्ट्रवादी कोमिनतांग को युद्ध में हराने के बाद च्यांग काई शेक भाग कर ताईवान द्वीप में बस गए| उन्होंने इस द्वीप (केरल से भी छोटा) को प्रजातांत्रिक चीनी गणराज्य बनाया|

आखिर कैसे नेता हैं अधीर रंजन चौधरी जी ? सत्रहवीं लोकसभा के लिए (1999 से) पांच बार निर्वाचित हुए अधीर बाबू एक बार जेल के सींखचों के पीछे रहकर बहरामपुर (बंगाल) से प्रत्याशी रहे थे| तीन मार्क्सवादी कम्युनिस्टों की हत्या के जुर्म में कैद थे| तब ममता बनर्जी स्वयं उनके विरुद्ध अभियान करने बहरामपुर आयी थीं| नाटकीय ढंग से तृणमूल पार्टी की अध्यक्षा काले शाल से अपनी गटई बाँधी थीं| वोटरों को संदेशा देना था कि प्रत्याशी को फांसी का फंदा लगने वाला है| गत वर्ष अधीर बाबू विधुर हो गए| पत्नी अर्पिता चली गयी| उन्होंने एक विधवा अताशी चटर्जी से विवाह कर लिया| उसकी पुत्री को भी अपनाया| अधीर बाबू, जिनकी सदन में हाजिरी बयासी प्रतिशत है, केवल इंटरमीडियट पास हैं| पर हिंदी मीठी बोलते हैं| व्याकरण, लिंग भेद मिटाकर, तोड़ मोड़ कर| पिछली लोकसभा में कांग्रेस विपक्ष के नेता, दलित सांसद मापन्ना मल्लिकार्जुन खड्गे उनसे तुलना में बड़े नरम और ढीले थे| इसके भौगोलिक कारण हैं| कन्नड़ कोमलभाषी होता है| एकदम विपरीत बांग्ला भाषी है| बागी तेवर लिए| खड्गे और चौधरी दोनों रेल मंत्री रह चुके हैं| लेकिन अधीर बाबू का सियासी कैरियर बहुरंगी रहा| वे माओवादी रहे| मार्क्सवादियों को मारते थे| पर माकपा के सेंटर ऑफ़ इंडियन ट्रेड यूनियंस के 1970 में पुरोधा भी रहे| बंगाल में तेंतालीस वर्षों से लगातार पराजित होती रही, धूल फांकती सोनिया-कांग्रेस इस बार बंगाल की 42 लोकसभा सीटों में से केवल दो ही जीत पायी| इसमें एक अधीर बाबू जीते थे|
(वरिष्ठ पत्रकार के विक्रम राव के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)

 

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