कर्नाटक में कांग्रेस का लिंगायत दांव चलेगा या मोदी मैजिक काम करेगा?

अजित कुमार झा

नई दिल्ली,कर्नाटक। दक्षिणी राज्यों में कर्नाटक राजनैतिक रूप से बिल्कुल अलग तरह का है. आमतौर पर यह राष्ट्रीय रुझान के उलट मतदान करता है, 1985 के बाद से उसने प्रत्येक चुनाव में सरकार के खिलाफ वोट किया है और यही एकमात्र ऐसा दक्षिणी राज्य है, जहां से भाजपा ने विधानसभा चुनाव जीता हैः 2004 में वह सबसे बड़ा दल थी और आखिरकार 2008 में उसने अपनी सरकार बनाई थी. 2004, 2008 और 2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को कर्नाटक की कुल 28 सीटों में से क्रमशः 18,19 और 17 सीटें मिली थीं.

भाजपा कर्नाटक को दक्षिण का अपने प्रवेशद्वार की तरह प्रस्तुत करती है. यहां मिलने वाली जीत पार्टी के लिए दक्षिण की ओर विस्तार का मार्ग प्रशस्त कर सकती है. कांग्रेस, अब सिर्फ दो बड़े राज्यों कर्नाटक और पंजाब में ही सत्ता में रह गई है, अगर वह खुद को प्रासंगिक बनाए रखना चाहती है, तो उसके लिए यहां जीतना जरूरी है. कर्नाटक के भीतर समृद्ध दक्षिण तथा अपेक्षाकृत गरीब उत्तर के बीच व्याप्त गहरे क्षेत्रीय आर्थिक विभाजन की जड़ें राज्य के इतिहास से जुड़ी हुई हैं.

पुराने मैसूर राज्य जोकि दक्षिणी कर्नाटक के बड़े हिस्से से मिलकर बना था, वहां वाड्यार परिवार, हैदर अली और टीपू सुल्तान जैसे सक्रिय शासक हुए. नतीजतन 1956 में भाषायी आधार पर राज्यों के पुनर्गठन से पहले दक्षिणी जिलों ने विकास से उल्लेखनीय लाभ उठाया.

पुनर्गठन में पड़ोसी राज्यों (हैदराबाद और बॉक्वबे प्रेसिडेंसी) के अनेक कन्नड़भाषी क्षेत्रों को मैसूर राज्य में मिलाकर कर्नाटक राज्य की रचना की गई. लिहाजा जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्य में 1 मई को अपने प्रचार अभियान की शुरुआत की तो अनेक लोगों को हैरत हुई कि उन्होंने अपनी पहली रैली मैसूरू से 60 किलोमीटर दूर दक्षिण की तरफ एकदम दक्षिणी छोर पर स्थित चामराजनगर में क्यों की. यह विधानसभा क्षेत्र कांग्रेस का गढ़ है और मैसूरू कांग्रेस के वर्तमान मुख्यमंत्री सिद्धरामैया का गृह नगर है.

हालांकि, इससे भी अहम यह है कि दक्षिणी कर्नाटक, जो कि पुराने मैसूर क्षेत्र का हृदयस्थल था, जनता दल (एस) और कांग्रेस के बीच दिलचस्प मुकाबले का गवाह बन रहा है. भाजपा यहां बेहद कमजोर है. राज्य के पुनर्गठन के इतिहास पर गौर करें, तो पता चलेगा कि कर्नाटक के सभी छह क्षेत्र वोट के मामले में एक-दूसरे से एकदम भिन्न तरह का प्रदर्शन करते हैं.

दक्षिण कर्नाटक में वोक्कालिगा समुदाय, जो कि एक सामाजिक समूह है और जिसकी राज्य की आबादी में 15 फीसदी की हिस्सेदारी है और सिद्धरामैया द्वारा तैयार किए गए दलितों, मुस्लिमों और ओबीसी के अहिंदा गठबंधन का प्रभुत्व है.

वोक्कालिगा मांड्या, हासन, मैसुरू, तुमकुर, कोलार और चिक्कबल्लापुर जिलों में केंद्रित हैं. मांड्या में पचास से अधिक वोक्कालिगा हैं. जनता दल (एस) का भी गढ़ है. पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी.

देवेगौड़ा, जो कि हासन जिले के निवासी हैं, वह इस क्षेत्र में राजनैतिक रूप से काफी प्रभावशाली हैं. वैसे ही सिद्धरामैया भी हैं. 2003 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने इस क्षेत्र से 27 सीटें जीती थीं और जनता दल (एस) ने 25 सीटें और भाजपा ने सिर्फ चार सीटें.

बेंगलूरू को भारत की सिलिकॉन वैली कहा जाता है, जहां देशभर से आई महानगरीय विस्थापित आबादी रहती है, जिनमें खासतौर से मध्यम वर्ग के शिक्षित युवा पेशेवर हैं.

बेंगलूरू अर्बन में प्रति व्यक्ति जीडीपी 14,100 रु. है, जो राज्य के औसत का 3.2 गुना है. ऐसी उच्च स्तर की समृद्धि अधिकांश मतदाताओं को भाजपा या कांग्रेस के लिए वोट करने को प्रेरित करती है. 2013 में कांग्रेस ने यहां से 13 सीटें जीती थीं, जबकि भाजपा ने 12 सीटें.

अरब सागर से सटे तटीय क्षेत्र के पश्चिम एशिया के साथ गहरे व्यापारिक संबंध हैं, खासतौर से फारस की खाड़ी के देशों के प्रवासी भारतीयों के साथ. सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआइ), जो सलफिस्ट पैट्रियॉटिक फ्रंट की राजनैतिक समकक्ष है, उसका इस क्षेत्र में कहीं-कहीं प्रभाव है.

यह क्षेत्र विदेश से आने वाले धन के कारण अपेक्षाकृत समृद्ध है. यह सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील है और हिंदुत्व की राजनीति का केंद्र भी है. अनंत हेगड़े, शोभा करंदलाजे और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यहां अनथक प्रचार अभियान चलाया है. 2013 में कांग्रेस ने इस क्षेत्र की 19 सीटों में से 14 जीती थीं (जिसमें विभाजित भाजपा ने मदद की), आज श्री राम सेने जैसे संगठनों के साथ भाजपा यहां बढ़त में दिखती है.

मध्य कर्नाटक दावनगेरे में लिंगायत समुदाय निर्णायक भूमिका अदा करेगा जबकि चित्रदुर्ग में धार्मिक मठ ऐसी स्थिति में होंगे. भाजपा शिवमोगा (भाजपा नेता येदियुरप्पा का गृहनगर) और चिकमगलूर में मजबूत स्थिति में है. 2008 में इस क्षेत्र ने कांग्रेस और भाजपा के बीच भीषण संघर्ष दिखा था, लेकिन 2013 में विभाजन हो जाने के बाद कांग्रेस ने खासतौर से इस महत्वपूर्ण क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन किया था.

हैदराबाद-कर्नाटक यह अपेक्षाकृत सर्वाधिक पिछड़ा क्षेत्र है, जनसांख्यिकी आधार पर यहां दलितों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों तथा लिंगायतों का प्रभुत्व है. कर्नाटक की खनन पट्टी में होने के कारण रेड्डी बंधुओं ने 2008 में यहां महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और इस क्षेत्र में भाजपा को जीतने में मदद की थी.

हालांकि कांग्रेस ने अनुच्छेद 371 (जे) के तहत मेडिकल, इंजीनियरिंग और डेंटल कॉलेजों में 70 फीसदी सीटें और 75 फीसदी रोजगार स्थानीय छात्रों के लिए आरक्षित कर दिया. यही नहीं, इस क्षेत्र के विकास के लिए 2,500 करोड़ रु. के पैकेज की घोषणा कर यहां काफी लोकप्रिय है. कांग्रेस को यहां के कुछ प्रमुख स्थानीय नेताओं, मसलन, मल्लिकार्जुन खडग़े को चुनाव लड़वाने का फायदा मिलेगा.

बॉम्बे-कर्नाटक महाराष्ट्र से लगा यह क्षेत्र लिंगायत की हृदयस्थली है. पानी की कमी के कारण हाल के वर्षों में इस क्षेत्र ने किसानों के संकट का सामना किया है और यह अपेक्षाकृत कहीं अधिक गरीब इलाका है.

येदियुरप्पा ने दिसंबर, 2017 में आदित्यनाथ के साथ यहां यात्रा निकाली थी और पहले से नाराज मतदाताओं के सत्ता विरोध को धार दी.

2004 और 2008 में येदियुरप्पा का इस क्षेत्र में प्रभुत्व था, लेकिन 2013 में कांग्रेस ने अधिकांश सीटों पर बड़ी जीत हासिल की.

अधिकांश चुनावी सर्वेक्षणों ने 15 मई को त्रिशंकु नतीजे आने का अनुमान जताया है, जिसमें जनता दल (एस) किंगमेकर की भूमिका अदा करेगी.

अतीत में कर्नाटक में सिर्फ दो बार ही त्रिशंकु विधानसभा बनी थी, 1983 में और 2004 में. चुनाव विश्लेषक संदीप शास्त्री तर्क देते हैं कि इन दोनों ही मौकों पर कर्नाटक एक राजनैतिक संक्रमण से गुजर रहा था. 1983 में कांग्रेस के वर्चस्व को जनता पार्टी ने चुनौती दी.

1985 में जनता पार्टी को बहुमत मिला. 1983 से 2004 के दौरान मुख्य प्रतिस्पर्धा इन्हीं के बीच थी. 2004 में भाजपा के सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभार ने एक बार फिर राजनैतिक प्रतिस्पर्धा की प्रकृति को बदल दिया, और कांग्रेस-जनता दल (एस) की गठबंधन सरकार का मार्ग प्रशस्त हुआ.

आंबेडकर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर वालेरिएन रॉड्रिग्ज भी सहमत हैं कि मुख्य लड़ाई कांग्रेस और भाजपा में है, लेकिन कांग्रेस का पलड़ा भारी है.

वे कहते हैं, “यहां तक कि एसडीपीआइ ने कांग्रेस के पक्ष में अपने उम्मीदवारों को हटा दिया, जिससे 13 फीसदी अल्पसंख्यक वोट उस के पक्ष में एकजुट हो गए.”

आखिर भाजपा ने इस एक मात्र दक्षिणी राज्य में अपना आधार कैसे तैयार किया? राम मंदिर आंदोलन और अक्तूबर 1994 के हुबली-धारवाड़ क्षेत्र तथा बेंगलूरू के कुछ हिस्सों में हुए सांप्रदायिक दंगों ने संघ परिवार को अपना विस्तार करने में मदद की.

इसके अलावा पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के तत्कालीन मुख्यमंत्री और महत्वपूर्ण लिंगायत नेता वीरेंद्र पाटील को बेइज्जती करके निकालने के फैसले ने हवा का रुख भाजपा के पक्ष में कर दिया.

एक समय एस. निजलिंगप्पा और बी.डी. जत्ती महत्वपूर्ण लिंगायत नेता थे और कांग्रेसी थे. 2004 में इस समुदाय ने (17 फीसदी) लाभबंद होकर भाजपा का रुख कर लिया.

मध्य और उत्तरी क्षेत्र तय करेंगे कि क्या सिद्धरामैया का लिंगायत को नए अल्पसंख्यक का दर्जा देने के दांव ने काम किया या नहीं या फिर क्या येदियुरप्पा उनके सबसे बड़े नेता बने रहेंगे.

2009 और 2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को क्रमशः 41.63 फीसदी तथा 43.37 फीसदी वोट मिले थे, जिसके फलस्वरूप वह 28 में से 19 और 17 सीटें जीत गई. यहां तक कि 2004 के लोकसभा चुनावों के दौरान भाजपा  को 18 सीटें मिली थीं, मगर उसका वोट प्रतिशत था 34.77. 2004 और 2009, दोनों ही चुनावों में भाजपा मोदी फैक्टर के बिना ही लोकसभा की अधिकांश सीटें जीतने में सफल हुई थी.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का करिश्मा और उनके तूफानी अभियान में यह क्षमता है कि वह 2018 में राजनैतिक संतुलन को भाजपा के पक्ष में झुका लें.

साभार: आजतक

 

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