तीन तलाक विधेयक के विरुद्द एक “अपवित्र” मैत्री बना रहें है मोदी विरॊधी

मोदी विरॊध में कांग्रेस और वामपंथी इतने पागल हो चुके हैं कि मुस्लिम महिलाओं का दुख दर्द भी राजनीती के सामने फीका पड़ गया है। कांग्रेस और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के नेतृत्व में प्रमुख विपक्षी दलों सहित, देश की महिला संगठन, कानूनी गिद्ध, बिकाऊ मीडिया और शिक्षा के ठेकेदारों ने ‘मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) विधेयक, 2017’ को सदन में नाकाम करने के लिए एक ‘अपवित्र’ गठबंधन बनाया है। इन सभी लोगों का एक मात्र उद्देश्य है तीन तलाक बिल को सदन में पारित न होने देना। यही है इन लोगों की असलीयत। इनको मुस्लिम महिलाओं से प्यार नहीं है, इनको सिर्फ़ मोदी जी का विरॊध करना है और देश के विकास में बाधा डालना है।

लोकसभा में बिल के प्रस्तुत होने के दस दिन पहले ही ‘द हिंदू’ ने एक संपादकीय लिखा था, जिसमें उसने केंद्र सरकार की कार्रवाई को ‘अनावश्यक और संभवतः प्रति-उत्पादक’ कहा था। वामपंथी दल के नेता मेडम जी के चट्टे बट्टे सीताराम यचूरी ने इस बिल को ‘सांप्रदयिक’ बताते हुए मोदी जी पर आरॊप लगाया था। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंग ने शीर्ष अदालत के तीन तलाक के फैसले की आलोचना करते हुए कहा कि यह बिल मुस्लिम महिलाओं के वास्तविक कष्टॊं को दूर करने में विफल हो जायेगा। दगाबाज़ कांग्रेस, जिसने पहले वाह वाही करते हुए लॊकसभा में इस विधेयक को पारित किया था अब राज्य सभा में उसे पारित नहीं होने दे रही है।

विरॊधियों का कहना है कि यह विधेयक पूर्ण रूप से मुस्लिम मर्दों को अपराधी करार देने के मनशा से बनाया गया है। अब इस विधेयक से इतना भी क्या डर है मुसल्मान मर्दों कों? जब ये लोग तीन तलाक देकर अपनी पत्नी से पल्ला झाड़ते हैं, तब उन्हें अपनी पत्नी के जीवन यापन के कष्ट के बारे में खयाल नहीं आता? यह कानून इसलिए बनाया जा रहा है कि मुस्लिम मर्द आये दिन एक महिला से शादी करते हैं, जब जी भरता है तो तीन बार तलाक कहकर उससे पल्ला झाड़ते हैं। मुस्लिम मर्द जब जी चाहे जितनी औरतों से चाहे शादी कर सकते हैं और जब जी चाहे तलाक दे सकते हैं। इन के इसी रवैये से मुस्लिम महिलाएं परेशान हो चुकी है और न्याय मांग रही है। क्या कांग्रेस को उनकी परेशानी नहीं दिखती। कांग्रेस की आला कामान खुद एक महिला है, उन्हें मुस्लिम महिलाओं से प्रेम नहीं है?

तीन तलाक के विरॊध में कानून बनने से छॊटे छॊटे मुद्दों के लिए तलाक देना कम हो जायेगा। तलाक देने से पहले इन्सान सौ बार सॊचेगा। तलाक की प्रक्रिया कठिन हो जायेगी और महिलाओं को इस कानून से शक्ति प्रदान होगी। इतनी बात विरॊधियों के समझ में नहीं आती है यह तो नहीं हो सकता। दरअसल मुस्लिम मर्दों को अय्याशी करने की आदत हो चुकी है। मुस्लिम महिलाएं तीन तलाक और तलाक के बिद्दत के वजह से नरक में जी रही है। यह न मुस्लिम मर्दों को दिखता है और ना ही मोदी विरॊध में तीन तलाक की पैरवी करनेवालों को दिखता है।

महिलाओं पर हिंसा करनेवालों के ऊपर सख्त से सख्त कार्रवाही हॊनी चाहिए। कांग्रेस कैसे भूल गयी कि 1833 में चार्टर एक्ट बना था। खुद थॊमस बेबिंग्टन मेकाले के अध्यक्षता में द्विविवाह की प्रथा को भारतीय दंड संहिता 1861 तहत अपराध घॊषित किया था जिसके लिए कठॊर दंड का प्रावधान भी दिया गया है।आज भी आईपीसी की धारा 49ब4 के अनुसार द्विविवाह करना दंडनीय अपराध है जिसे सात साल तक सज़ा सुनाई जा सकती है। भारत में बाल विवाह, द्विविवाह, सती जिसे हिन्दू कुप्रथाओं पर प्रतिबंध है तो मुस्लिम महिलाओं का अनादर करनेवाली तीन तलाक पर प्रतिबंध क्यॊं नहीं है? उत्तर है: वॊट बैंक। विरॊधियों को बस वॊट बैंक प्यारी है। जनता के दुख दर्द से उन्हें क्या? उन्हे तो अपनी तिजोरियां भरनी है बस।

लगभग सभी सभ्य राष्ट्रों ने द्विविवाह के लिए गंभीर दंड निर्धारित किया है। तत्काल तीन तलाक के लिए सजा की सिफारिश सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया भर में, विशेष रूप से मुस्लिम बहुमत राष्ट्रों के कानून में भी की गयी है। मुस्लिमों के धर्म गुरू उमर खलीफ़ ने तो तीन तलाक देनेवाले मर्दों को कोड़े मारने की सज़ा तक सुनाई है जिसका उल्लेख शाह बानो के केस में किया गया है। देश में एक रूप कानून होना ही चाहिए। बस बहुत हो चुकी मुस्लिमों की मन मानी, अगर भारत में रहना है तो भारत के कानून का पालन करना होगा।

 

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