नीरव मोदी को क्यों लगता है 2G-CWG जैसा होगा PNB घोटाले का हश्र?

नई दिल्ली। नीरव मोदी की बेबाकी पर मत चौंकिये कि उन्होंने दो टूक लहजे में पीएनबी को पैसा लौटाने से मना कर दिया. या उनके वकील ने 2जी और सीडब्लूजी का उदहारण देते हुए एक तरह से यह कह  दिया कि जांच एजेंसियां नीरव का कुछ नहीं कर पाएंगीं.

कहां से आई है इतनी हिम्मत

जाहिर है भारत की जांच एजें‍सियों का रिकार्ड बुरी तरह खराब है. इस हिम्मयत की एक वजह और भी है. नीरव मोदी ने से जिस तैयारी और दक्षता के साथ पीएनबी में 11000 करोड़ रुपये की लूट को अंजाम दिया, वह इस बात का प्रमाण है कि उसे यह सब (छापे-विवाद-इंटरपोल) होने का अनुमान था. अनिवासी भारतीय दर्जा ले चुका नीरव अपने मामा मेहुल चोकसी के साथ बेहद आसानी से देश से बाहर निकल गया. हैरत नहीं कि जल्दी  ही हमें यह पता चले कि उसके पास किसी दूसरे देश की नागरिकता थी.

क्यों है यह अब तक सबसे हैरतअंगेज बैंक घोटाला

पीएनबी घोटाले के दोनों प्रमुख आरोपी नीरव और मेहुल ने 2017 के दौरान जेम्स और ज्वेलरी कारोबार के लिए बैंक के पास उपलब्ध शार्ट टर्म इंटर बैंक क्रेडिट (बायर्स क्रेडिट-एलओयू) का भरपूर इस्तेकमाल किया. यह सुविधा आयातकों और खासतौर पर जेम्स और ज्वेलरी कंपनियों को अंतरराष्ट्रीय स्तडर पर सुगम संचालनों के लिए मिलती है.

सीबीआई की चार्जशीट के मुताबकि पीएनबी की मुंबई स्थित एक ही शाखा से 69 दिनों के अंदर (9 फरवरी से 2 मई 2017) के बीच 5,000 करोड़ रुपये का क्रेडिट नीरव और मेहुल की कंपनियों को जारी किया गया. बैंक नियमों के मुताबिक किसी कंपनी को इस अवधि में विदेशी मुद्रा में इतना बड़ा क्रेडिट देना पूरी तरह अस्वाभाविक है. एक दिन में एक ही देश की एक ही बैंक ब्रांच के लिए कई एलओयू जारी किये गए. यह कम समय से अधिक से अधिक निकासी की सोची समझी रणनीति थी नीरव और मेहुल ने इस काम में भारत के सरकारी बैंकों की विदेशी शाखाओं को ही चुना क्यों  कि निजी या विदेशी बैंक शायद ऐसा नहीं होने देते.

क्यों नहीं हो सकता 2017 से पहले का ये घोटाला?

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के नियम के मुताबिक यदि किसी बैंक को अंतिम तारीख से 60 से 90 दिनों तक कर्ज पर दिया पैसा वापस नहीं मिलता है तो उस कर्ज को बैंक के एनपीए यानी कि फंसे हुए कर्ज में शामिल करना अनिवार्य हो जाएगा. नीरव मेहुल ने बैंकों के बायर्स क्रेडिट को चुना जो एनपीए में नहीं गिने जाते. नीरव और मेहुल की कंपनियों ने पीएनबी क्रेडिट पर पैसा लिया जिसे 90 से 180 दिनों के अंदर लौटाना था. उन्हें मिले कुछ बायर्स क्रेडिट एक साल यानी 360 दिनों तक के भी थे. दोनों की कंपनियों को मार्च, अप्रैल और मई 2017 के दौरान कुल 293 लेटर ऑफ अंडरटेकिंग, लेटर ऑफ क्रेडिट जारी किए. यही कारण है कि इन कंपनियों के डिफॉल्ट पहली बार जनवरी 2018 में सामने आए.

यदि पीएनबी से नीरव और मेहुल को मिले बायर क्रेडिट को 2017 के पहले का मानें तो फिर इस उधार को पीएनबी के एनपीए अर्थात फंसे हुए कर्ज में शामिल करन होगा. यदि ऐसा है तो फिर यह घोटाला भारत के बैंकिग रेगुलेशन की साख पर बहुत भारी पड़ेगा.

PNB का पैसा टैक्स हेवन पहुंचने का खतरा?

सीबीआई को नीरव और मेहुल की कंपनियों पर छापेमारी के दौरान न तो कंपनियों के खाते में कोई बड़ी रकम मिली है और न ही कोई ऐसा दस्तावेज बरामद हुआ है जिससे इतनी बड़ी रकम के ठिकाने का पता लगाया जा सके. लेकिन सीबीआई की एफआईआर बताती है कि एलओयू के जरिये कई बड़ी निकासी उन देशों में हुई है जिनका हीरा कारोबार से कोई सीधा संबंध नहीं है. मुमकिन है नीरव और मेहुल ने यह पैसा टैक्स हैवन देशों में पहुंचाया हो जिसकी वापसी नामुमकिन है.

क्यों नहीं हुआ शक?

नीरव और मेहुल की कंपनियों (फायस्टार और गीतांजलि) पर 8000 करोड़ रुपये का कर्ज है. गीतांजलि का पुराना रिकार्ड भी दागी है लेकिन इसके बाद एलओयू के बदले पैसा देने वाले किसी बैंक को यह अचरज नहीं हुआ कि इन दो कंपनियों को इतने कम समय में इतना अधिक बायर्स क्रेडिट क्यों मिल रहा है.

इस घोटाले में दो एफआईआर हुई हैं और अभी तक केवल 5000 करोड़ रुपये के एलओयू सामने आए हैं. पीएनबी इसे 11000 करोड रुपये और आयकर विभाग इसे 20000 करोड़ रुपये (इस से वित्तै मंत्रालय सहमत नहीं है) का घोटाला बता चुका है. यदि यह घोटाला बायर्स क्रेडिट या छोटी अवधि के विदेशी मु्द्रा कर्ज से हुआ है तो यह एलओयू भी 2017 के ही होने चाहिए. यानी कि नीरव और मेहुल ने भारत के बैंकों को बेहद सफाई के साथ हीरे की तरह काट डाला.

 

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