पाकिस्तान ने उठाया आत्मघाती कदम, चीन का गुलाम बनने के और चला एक और कदम

पाकिस्तान ने अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली है..पाकिस्तान की स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान ने हाल ही में पाकिस्तान के भीतर और बाहर के व्यापार के लिए मुख्य मुद्रा के रूप में चीनी युआन के इस्तेमाल की आधिकारिक घोषणा कर दी है..उसने एक रूपरेखा गठित की है जिसमे सभी प्रकार के निवेश लेनदेन,क्रेडिट पत्र व अन्य वित्तीय संसाधनों को सम्प्रेषण में चीनी मुद्रा युआन का प्रयोग होगा .. वैसे पाकिस्तान का ये कदम अप्रत्याशित नही था।

अमेरिका के साथ तनावपूर्ण सम्बन्धो के वर्तमान परिदृश्य और अत्यंत कम विदेशी मुद्रा रिजर्व जैसी परिस्थितियों में पाकिस्तान को तत्काल विकल्प तलाशना था,हो सकता है कि ये पाकिस्तान के लिए इस आर्थिक संकट के समय एक अस्थायी राहत भरा उपाय हो पर चीनी युआन का चयन पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था  के लिए आने वाले समय मे एक आत्मघाती कदम साबित होगा ..

“हम किसी भी प्रकार के पूर्वानुमान और मान्यताओ के आधार पर नही बल्कि इसके पीछे ठोस आंकड़े और मजबूत तथ्यों पर यहां एक विश्लेषण कर रहे है। वर्तमान में पाकिस्तान प्रतिवर्ष 48-58 अरब अमेरिकी डॉलर का अच्छा आयात कर रहा है जिसमे करीब 30% हिस्सा CPEC (चीन पाकिस्तान इकनोमिक कॉरिडोर से आता है,जबकि लगभग 5% इंडोनेशिया,अमेरिका और जापान से आता है.लगभग 15% तेल आधारित उत्पादो के रूप में संयुक्त अरब अमीरात से आता है”

जब अमेरिकी डॉलर परवाह की बात करते है तो पाकिस्तान को अमेरिकी मुद्रा के रूप में अपने 20 अरब डॉलर के निर्यात प्रतिपूर्ति का 45% प्राप्त किया। अभी फिलहाल तक पाकिस्तानी उत्पादों का सबसे बड़ा उपभोक्ता अमेरिका ही रहा है जो चीन की तुलना दोगुने से भी ज्यादा आयात करता है..इसलिए यदि हम गणितीय रूप से अमेरिकी डॉलर का प्रवाह और बहिर्वाह का आकलन करते है तो पाकिस्तान को 5-7 अरब अमेरिकी डॉलर का वार्षिक घाटा होने की संभावना है और यही तथ्य है तो पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को प्रभावितकर रहा है।

दूसरा पहलू चीनी युआन की स्थिरता ,पिछले 20 वर्षों में युआन अमेरिकी डॉलर के मुकाबले कमजोर था। 1994 में 8.74 के आंकड़े को छूने वाली चीनी अर्थव्यवस्था अभी 6.5 अमेरिकी डॉलर के आसपास घूम रही है जो 25% कि गिरावट दर्ज करती है जिसके आगे और गिरने की संभावना है क्योंकि चीन के निर्यात में गिरावट मौजूद परिदृश्य में सुधरने वाली नही है बल्कि आउट गिरावट देखने को मिलेगी।

तीसरा पहलू चीनी युआन का वैश्विक मुद्रा के रूप में स्वीकार किया जाना है। यधपि IMF ने पहले ही 2015 में वैश्विक मुद्रा के रूप में युआन को स्वीकार कर लिया है,चीनी युआन डॉलर,जापानी येन और यूरो के बाद चौथी सबसे अधिक प्रचलित मुद्रा के रूप में उभर कर आई है।

पीपल्स बैंक ऑफ चाइना अपनी मुद्रा को स्थिर करने के प्रयास कर रहा है लेकिन फिर भीएक प्रमुख निर्यातक के रूप में चीन के प्रतिस्पर्धात्मक लाभ के कम।होने की संभावना है।

चूंकि ज्यादातर अमेरिकी और यूरोपीय कम्पनियां अपने उत्पाद निर्माण के लिए फैक्टरियों के लिए भारत और दक्षिण पूर्व एशिया जैसे वैकल्पिक स्थानों की तलाश कर रही है जिसका प्रतिकूल प्रभाव चीन के निर्यात पर पड़ना है

चौथा व प्रमुख पहलू ये की अमेरिकी डॉलर एक स्थिर और लगातार विकसित हो रही मुद्रा है इस तथ्य में लोगो का बढ़ता विश्वास है.. अमेरिकी अर्थव्यवस्था का स्थायित्व उसमे निहित निवेशकों और व्यापारिक देशो का विश्वास ही है।

भविष्य में पाकिस्तान के विदेशी मुद्रा भंडार में मुख्य रूपन से चीनी युआन को रखा जाएगा जिससे और अमेरिकी डॉलर,जापानी येन व यूरोपियन यूरो की कमी हो जाएगी,पाकिस्तान पर प्रचुर मात्रा में विदेशी कर्ज है जिसे वो अभी भी चुकाने की कोशिश कर रहा है जिससे पाकिस्तान के जल्दी दिवालिया होने की स्थिति बनने लगी है फलस्वरूप उसके सामने पाकिस्तानी मुद्रा के अवमूल्यन ( devalue) के अलावा कोई विकल्प न होगा। पाकिस्तानी रुपये जो कि वर्तमान में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 112 रुपये है जो अगले 2 सालो में 150 रुपये तक होने का अनुमान है… जिससे अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा और इसके निर्यात प्रतिपूर्ति अवमूल्यन होगा।

CPEC के पूरा होने के बाद पाकिस्तान पर चीन के कर्ज चुकाने का दबाव बढ़ेगा.. पाकिस्तान अभी अमेरिकी कर्जे के बोझ में दबा हुआ है,तो पाकिस्तानी सरकार के साथ साथ वहां की जनता भी इस कर्जे में पिसेगी… वर्तमान समझौते के अनुसार पाकिस्तान को सारा कर्ज चीनी युआन में ही चुकाना होगा..पाकिस्तान को इस भुगतान के लिए चीनी निर्माताओ,व्यापारियों की शर्तों के अनुसार पाकिस्तान में चीनी निर्यात को बढ़ाना होगा,जबकि चीन पाकिस्तानी जमीन का उपयोग अपनी फैक्टरियां लगाने और ग्वादर बंदरगाह के माध्यम से माल का निर्यात करने के लिए करेगा|..

पाकिस्तान के लोग इन चीनी कारखानों,फैक्टरियों में सिर्फ मजदूर बन कर रह जाएंगे,उन्हें सिर्फ पेट भरने लायक ही लाभ मिलेगा.. तो कहने में अतिशयोक्ति नही है भारत अगर थोड़ा समझदारी से काम ले तो बिना एक गोली चलाये अपने दुश्मन को पल पल मरते देखेगा… पाकिस्तान जो कभी भारत का हिस्सा था उसने अपने भाग्य में फिर से गुलामी लिख डाली है।

 

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