राहुल गाँधी को देश ने तो नकार दिया है क्या अमेठी 2019 में राहुल को चुनेगा ?

पिछले क़रीब तीन दशक से गांधी परिवार और अमेठी एक-दूसरे के पूरक रहे है|1980 में पहली बार इस संसदीय सीट से संजय गांधी ने जीत हासिल की तो संजय गांधी के बाद राजीव गांधी, फिर सोनिया गांधी और फिर राहुल गांधी इस सीट के ज़रिये लोकसभा में प्रवेश किये पर अब न सिर्फ़ राजनीतिक गलियारों में बल्कि अमेठी की आम जनता में भी  गांधी परिवार की चमक कुछ धूमिल हो रही है|

इसकी शुरुआत 2012 के विधान सभा चुनावों से ही हो चुकी थी जब तमाम कोशिशों के बावजूद कांग्रेस पार्टी सिर्फ़ दो विधान सभा सीटें जीत सकी थी और उसके बाद तो एक जीते हुए विधायक ने पार्टी छोड़ दी थी| फिर 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को बीजेपी उम्मीदवार स्मृति ईरानी से कड़ी चुनौती मिली|हालांकि वो चुनाव हार गई थी, लेकिन उन्होंने कांग्रेस की नींद एक बार के लिए उड़ा दी थी और सच तो ये है की राहुल हार ही चुके होते अगर आखरी वक़्त पे अखिलेश सरकार में अखिलेश के दायें हाथ माने जाने वाले गायत्री प्रजापति राहुल की मदद नही करते| गायत्री प्रजापति की ही बदोलत राहुल गाँधी तब जीत पाएं|

अमेठी में 2014 में भारतीय जनता पार्टी द्वारा बनाया गया दबदबा आगे भी कायम रहा जिसका प्रभाव हमें 2017 के विधानसभा चुनाव में देखने को मिला| कांग्रेस एक भी सीट जीत नही पायी और अमेठी की पाँचों की पाँचों विधानसभा सीटें हार गई,जहाँ चार बीजेपी को हारी(भारत के विधानसभा चुनाव इतिहास में पहली बार) तो वहीं पांच्मी अन्य पार्टी को हार गयी |विधानसभा चुनाव में तो कांग्रेस मुक्त अमेठी हो ही चुका है और आने वाले लोकसभा चुनाव में  भी राहुल को मुंह की खानी पड़ेगी ,उनके लिए कुछ अच्छा होने के आसार तो नज़र नही आ रहे है|

अमेठी में ऐसे कई नेता हैं और कई परिवार हैं जो कि सालों से कांग्रेस के प्रति निष्ठा जताते रहे हैं, लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान ऐसे तमाम लोगों का कांग्रेस से मोहभंग हुआ और वो लोग भारतीय जनता पार्टी में या तो शामिल हो गए या फिर उसके समर्थक हो गए|

यहाँ तक की अक्टूबर 2017 में कांग्रेस के एक दिग्गज नेता जंग बहादुर जी ने भी जो अमेठी में कांग्रेस के दुसरे नंबर पे माने जाते है  उन्होंने भी कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी का हाथ थाम लिया है| उनके  साथ ही 70-80 और कांग्रेस नेता भी और साथ में ही 24 गाँव के प्रधान भी  बीजेपी में चले गये है|

अमेठी की आम जनता भी कांग्रेस पार्टी, ख़ासकर राहुल गांधी से बिलकुल खुश नही है|अमेठी में कभी राहुल गांधी के सहायक के तौर पर काम देखने वाले और अभी भी कांग्रेस पार्टी में ही एक पदाधिकारी कहते हैं कि इसमें कोई दो राय नहीं कि राहुल गांधी की वजह से अमेठी में गांधी परिवार की चमक फीकी पड़ रही है|

राहुल गांधी से जनता इतनी खिन है की उनका अब राहुल गाँधी से विशवास उठ चूका है||यहाँ तक की लोगों का राहुल गाँधी को लेकर ये कहना की वो जब अमेठी दौरे पे आते है तो मुंशीगंज गेस्ट हाउस से बाहर ही नहीं निकलते, जनता से घुलते मिलते नहीं है| यहाँ तक की उनकी पार्टी के जंग बहादुर जी ने कहा था की “राहुल गाँधी से तो मैं ही नही मिल पाता जनता क्या मिल पायेगी|वहीं दूसरी और हार के बाद भी ईरानी लगातार अमेठी का दौरा करती रही, वो अमेठी के लोगों से मिलती रहीं, खास तौर पर महिलाओं का उनको जोरदार समर्थन मिल रहा है।वीआईपी सीट होने के बाद भी अमेठी विकास के मामले में बहुत पिछड़ा हुआ है और विकास के लिए तरसता रहा है।

आज भी राहुल गाँधी की अमेठी रैली बिलकुल “FLOP” हुई है|लोगों में राहुल गाँधी को लेकर काफी रोष है और वो पुरे गुस्से में उनका विरोध कर रहे है| लोग  “राहुल गाँधी मुर्दाबाद”, राहुल गाँधी मुर्दाबाद” के नारे लगा रहे है और कांग्रेस को मोदी जी पर सवाल उठाने के विरुद्ध उनसे  जवाब मांग रहे है की दिखायें क्या विकास इन्होने 15 सालों में अमेठी के लिए किया है|

लोगों को कहना है की इन्होने केवल जनता को लूटा है|किसानों की जमीन हड़प ली है और जिन फेक्टरियों को लगाने के वादे किये थे वो भी नही लगाई और लोगों का रोजगार भी छीन लिया है|

राहुल की रैली के दौरान लोग इस बात से भी गुसाए हुए है की जब उन्होंने राहुल गाँधी से हिसाब माँगा उनके सत्ता में रहकर विकास करने का,आम जनता और किसान जिन्होंने अपने हक़ की मांग की तब उन पर कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने लाठी चार्ज किया है| यहाँ तक की अमेठी की जनता ने तो राहुल के ऐसे पोस्टर भी लगायें है जिनमे उन्होंने ये खा है की राहुल गाँधी लापता है  और अमेठी में इनके द्वारा किये गये विकास कार्य ठप है और इनको धुंडने वालों को इनाम भी दिया जाएगा|

राहुल गाँधी और उनकी पार्टी को अमेठी की जनता से अपने इस व्यवहार के लिए माफ़ी मांगनी चाहिए| वैसे तो राहुल इस बार अमेठी से चुनाव लड़ेंगे नही लेकिन अगर लड़ते भी है तो भी वै जीत नही पायेंगे|अब हालात बदल चुके है। उम्मीद है की इस बार वे कर्नाटक से  लड़ेंगे  पर फिलहाल कांग्रेस को उसी के किले में मात मिल चुकी है। दरवाजा तो पिछली बार ही खुल गया था, इस बार किले के ढहने की देर है।

 

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