शहरी बूथों पर सबसे कम मतदान ने बढ़ायी भाजपा की चिंता

राजेश श्रीवास्तव

वर्ष                   गोरखपुर                             फूलपुर

2०14                  5०.16                              54.65

2००9                   38.17                             44.27

2००4                   53.58                           48.13

1999                  58.38                            52.21

1998                  57.61                           51.21

1996               47.9०                               46.47

1991                47.8०                                53.०7

1989                54.39                                54.77

सूबे की दो लोकसभा सीटों गोरखपुर और फूलपुर में हुए उपचुनाव के 1989 के बाद से अब तक के सबसे कम मतदान ने राजनीतिक दलों की पेशानी पर बल डाल दिया है। दरअसल इस बार विपक्षी ख्ोमे से सपा-बसपा और रालोद ने मिला-जुला प्रत्याशी खड़ा किया था, यानि सपा के प्रत्याशी को कांग्रेस छोड़ सभी विपक्षी दलों ने अपना समर्थन दिया था।

वहां पर सबसे कम 43 फीसद मतदान के चलते सियासी दलों की आशंकाएं बलवती हो गयी हैं। स्थानीय लोगों की मानें तो इस सीट पर सबसे ज्यादा निषाद मतदाता, फिर यादव हैं। मुस्लिम और दलित मतदाता भी खासी संख्या में हैं। ऐसे में यदि अधिक मतदान होता तो सियासी दलों की डगर आसान होती लेकिन कम मतदान प्रतिशत के चलते दोनों ही सीटों पर जीत के अंतर को बढ़ा पाना टेढ़ी खीर होगी और नेक-टू-नेक फाइट होगी।

दोनों ही लोकसभा सीटों पर शहरी इलाकों की कम वोटिग बीजेपी के लिए चिता वाली बात हो सकती है। उत्तर प्रदेश की फूलपुर लोकसभा सीट जिसका क्षेत्र इलाहाबाद के प्रमुख शहरी क्षेत्रों से लेकर यमुनापार के ग्रामीण इलाकों तक फैला हुआ है, बीजेपी की इस चिता की सबसे प्रमुख वजह है। इलाहाबाद उत्तर विधानसभा में सबसे कम 21.65 फीसदी मतदान हुआ है।

यह शहर का सबसे प्रबुद्ध इलाका माना जाता है। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी भी इसी क्षेत्र में आती है। इसके अलावा मुरली मनोहर जोशी और प्रमोद तिवारी जैसे बड़े नेता भी इसी विधानसभा के निवासी हैं। कचहरी भी इसी इलाके में है। डेप्युटी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के इस्तीफ़े से खाली हुई इस सीट पर कम मतदान से बीजेपी के अंदरूनी संगठन में हलचल मची हुई है।

जानकारों का मानना है कि शहर के प्रबुद्ध इलाकों के वोटरों के क्षेत्र में मतदान का आंकड़ा गिरने का नुकसान बीजेपी को हो सकता है। जानकारों का मानना है कि अगर इलाहाबाद के शहरी इलाकों में बीजेपी की वोटिग कम होती है तो इसका सीधा लाभ एसपी को मिलेगा। दूसरी स्थिति यह भी है कि एसपी-बीएसपी के गठबंधन में इस सीट के पटेल, यादव, मुस्लिम और दलित वोटरों का गठजोड़ भी बीजेपी को झटका दे सकता है।

इन सब के अलावा मीरजापुर के रहने वाले एक प्रत्याशी को फूलपुर की प्रतिष्ठित सीट पर स्थानीय नेताओं की अनदेखी करते हुए टिकट दे देना भी बीजेपी के लिए मुसीबत का सबब बन सकता है। जानकारों की माने तो मीरजापुर के निवासी और वाराणसी के मेयर रह चुके कौशलेन्द्र सिह पटेल की उम्मीदवारी को लेकर स्थानीय नेताओं में असंतोष की स्थिति बनी हुई है, पार्टी को जिसका खामियाजा उठाना पड़ सकता है।

कहा जा रहा है कि डेप्युटी सीएम बनने के बाद उनके इस्तीफ़े से खाली हुई सीट पर केशव प्रसद मौर्य अपनी पत्नी को चुनाव लड़ाना चाहते थे लेकिन जब पार्टी ने इसकी अनुमति नहीं दी तो उन्होंने नेतृत्व के फैसले पर कौशलेन्द्र सिह पटेल को अपना समर्थन दे दिया। वहीं, फूलपुर के कुछ स्थानीय नेता जिन्हें 2०17 के विधानसभा चुनाव में ‘ध्यान रखने’ का आश्वासन दिया गया था वह भी इस सीट पर अपनी उम्मीदवारी चाहते थे लेकिन प्रादेशिक नेतृत्व ने अचानक से कौशलेन्द्र सिह पटेल को पैराशूट प्रत्याशी बना दिया जिससे इन नेताओं के बीच असंतुष्टि की स्थिति देखने को मिली।

ऐसे में आंतरिक असंतोष और कार्यकर्ताओं की नाराजगी से वोटिग के आंकड़े पर यदि कोई असर पड़ा है, तो बीजेपी के लिए 2०19 से पहले चिता की बात होगी। फूलपुर से करीब 25० किमी दूर गोरखपुर में भी 29 साल बाद संसदीय क्षेत्र की कमान गोरक्ष पीठ के बाहर होने जा रही है। सांसद का ताज किसे मिलेगा, यह तो 14 मार्च को तय होगा लेकिन योगी आदित्यनाथ का इन चुनावों में उम्मीदवार न होना और शाम चार बजे तक हुई कुल 43 फीसदी वोटिग इस बार बीजेपी के विजय रथ पर अंकुश लगा सकती है।

गोरखपुर की स्थितियां इलाहाबाद से अलग तो हैं लेकिन सियासत का गणित विपक्ष के लिए भी उम्मीदें बढ़ाने वाला है। जिले में अंदरूनी ब्राह्मण बनाम ठाकुर की लड़ाई के बीच एसपी के प्रवीण निषाद अगर अपने कोर वोटर मुस्लिम, यादव और निषाद समाज के मतदाताओं को अपने पक्ष में करते हैं, तो इसका असर सीधे बीजेपी पर पड़ सकता है।

वहीं इस सीट पर बीएसपी के गठबंधन का फायदा भी एसपी को मिलने की पूरी संभावना है। दूसरा पक्ष यह कि सीट पर बीजेपी ने वर्तमान अध्यक्ष उपेंद्र शुक्ला को उम्मीदवार बनाया है। शुक्ला से पूर्व योगी आदित्यनाथ इस सीट पर 5 बार सांसद रह चुके हैं। कहा जाता है कि योगी के सांसद रहते गोरखपुर की सत्ता का निर्धारण गोरक्षपीठ से ही होता था।

इसके अलावा आसपास के इलाकों में भी योगी के प्रभाव का असर चुनावी विजय से मिलता था। ऐसे में चूंकि बीजेपी ने अपनी प्रत्याशिता मठ गोरक्षपीठ के बाहर के एक कार्यकताã को सौंपी है, इसलिए यह कहा जा सकता है कि बीजेपी की यह विजय पूर्व के मुकाबले इस बार एक तरफा होती नहीं दिख रही है। मतदाताओं की उदासी ने चुनाव परिणाम को लेकर भाजपा, सपा, कांग्रेस के नेताओं की चिता बढ़ा दी है। मतदान प्रतिशत के रुझान से दोनों सीटों पर भाजपा और सपा प्रत्याशियों के बीच कांटे का मुकाबला माना जा रहा है।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के इस्तीफ़े से खाली हुई गोरखपुर लोकसभा सीट पर रविवार को तमाम कोशिशों के बावजूद मतदान प्रतिशत 43 प्रतिशत तक सिमट कर रह गया। वहीं उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के इस्तीफ़े से खाली हुई फूलपुर सीट पर हुए उपचुनाव में भाजपा, सपा, कांग्रेस और निर्दलीय प्रत्याशियों, कार्यकर्ताओं और सरकार के हर संभव जतन के बाद भी मतदाताओं ने मतदान में रुचि नहीं दिखाई।

फूलपुर में भी तीन दशक में अब तक का सबसे कम 37.39 प्रतिशत मतदान हुआ। इससे पहले 2००9 के लोकसभा चुनाव में फूलपुर में सबसे कम 38.17 और गोरखपुर में 44.27 प्रतिशत मतदान हुआ था। निर्वाचन आयोग की ओर से फूलपुर और गोरखपुर में मतदाताओं को मतदान के प्रति जागरुक करने के लिए स्विप के तहत कई कार्यक्रम आयोजित किए गए।

प्रदेश के मुख्य निर्वाचन अधिकारी एल. वेंकटेश्वर लू सहित अन्य अधिकारियों ने भी दोनों जिलों का दौरा कर मतदान प्रतिशत बढ़ाने की बात की। लेकिन दोनों सीटों पर बीते तीन दशक का सबसे कम मतदान हुआ। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गोरखपुर से पांच बार सांसद चुने जा चुके हैं।

 

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