सांप्रदायिक हिंसा की आग में जलता बंगाल! मीडिया की खामोशी से उठते सवाल!

tahalka3_1_2नई दिल्ली। वर्ष 2002 गुजरात दंगा, वर्ष 2014 मुजफ्फरनगर दंगा और वर्ष 2015 में दादरी हत्याकांड। ये वो दंगे थे जिसके विरोध में पूरा देश एक जुट दिखाई दिया। सबको इन दंगों में पीडित लोगों का दर्द दिखा। अवॉर्ड वापसी की मुहिम हो या फिर असहनशीलता पर विवाद देश के हर कोने में इसकी गूंज सुनाई दी। जबकि, वर्ष 2016 का आगाज भी हिंसक हुआ लेकिन सब खामोश रहे। पश्चिम बंगाल के मालदा जिले में गत रविवार को हुई हिंसक झड़प पर सारा देश चुप है और बुद्धिजीवी मीडिया को तो सांप सुंघ गया है। ताजा खबर है कि मिलाद-उन-नबी के अगले दिन कुछ मुस्लिम युवकों ने हिन्दुओं के घरों और दुकानों में आग लगा दी। लेकिन आश्चर्यजनक बात यह है कि देश कि बुद्धिजीवी मीडिया को सिर्फ गुजरात और दादरी के दंगे ही दिखाई देते हैं। हमारे देश के सेक्यूलर मीडिया को बस दंगों में मुस्लिमों के दर्द ही दिखाई देते हैं। न तो वे मुज़फरनगर पर खुलकर कुछ बोलते हैं न तो पश्चिम बंगाल पर। उन्हें तो बस गुजरात और दादरी में हुए दंगों में विशेष समुदाय का दर्द ही दिखाई देता है।

12 अक्टूबर को हिंसा की शुरुआत पश्चिम बंगाल के उत्तरी 24 परगना ज़िले से हुई, जहां कथित तौर पर मुहर्रम के जुलूस में बम फेंका गया। जिसके बाद हिंसक भीड़ ने हिंदुओं के घरों को जला दिया और इस हिंसे की आग 5 ज़िलों में फैल गई। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि, “पुलिस ने वहां पहुंचकर हालात को सामान्य किया और भीड़ को तितर-बितर किया। लेकिन उसके दो घंटे बाद वहां हालात बिगड़ गए। दोनों पक्षों के दंगाई आमने-सामने हो गए और पुलिस से भी उलझ गए। वे लोग बम लेकर आए थे। हमलोगों ने आंसू गैस के गोले छोड़े। अंत में हमें हालात पर काबू पाने के लिए बल का प्रयोग करना पड़ा।”  

पश्चिम बंगाल के उत्तरी 24 परगना, हावड़ा, पश्चिमी मिदनापुर, हुगली और मालदा जिले अभी भी हिंसाग्रस्त हैं। अब आपको इस पूरी घटना के पीछे हो रही राजनीति के बारे में भी बता देते हैं। क्योंकि अब इस देश में किसी भी घटना पर राजनीति न हो ऐसा रहा नहीं। दरअसल, पिछले हफ्ते ही पश्चिम बंगाल सरकार तुष्टिकरण की राजनीति का आरोप लगाते हुए कलकत्ता हाईकोर्ट से फटकार लगी थी।

ममता बनर्जी का कानून कुछ समझ नहीं आता। अगर बिहार में लालू यादव के राज में हो रही हिंसा और अपराध को देखते हुए बिहार को जंगलराज घोषित किया जाता है तो बंगाल के हाल को देखते हुए दीदी का राज दंगा राज बनता जा रहा है। इस बात से कोई अंजान नहीं है कि ममता का रिश्ता इस्लामिक संगठनों से रहा है। इस बात के भी कई सबूत मिले हैं जिससे साफ पता चलता है कि टीएमसी बांग्लादेशी आतंकी संगठनों को फंड देती है। सवाल यह उठ रहा है कि क्या पश्चिम बंगाल की सरकार जानबूझकर, एक विशेष समुदाय को खुश करने के लिए या मुस्लिम तुष्टीकरण के लिए कानून-व्यवस्था की अनदेखी कर रही है? या फिर यह मान लिया जाए कि पश्चिम बंगाल सरकार सब कुछ जानते और समझते हुए भी कानून व्यवस्था बनाए रखने में फेल हो गई?

देश के तमाम मीडिया हाउस ख़बरों को धार्मिक चश्मे से देखते हैं, इसीलिए ये चैनल या अख़बार ऐसी ख़बरों के मामले में अपने फायदे देखते हैं। सवाल यह है कि क्या किसी हिंसक घटना को धार्मिक नज़रिए से देखना जायज़ है। हमारे देश के बुद्धिजीवी पत्रकार उत्तर प्रदेश के दादरी में हुई अखलाक की हत्या पर देश का माहौल खराब बताने में लगे हुए थे। लगता है धार्मिक चश्मा पहनकर संपादकीय फैसले लेना अब हमारे देश के तमाम बुद्धिजीवी पत्रकारों का ट्रेंड बन गया है।

 

देश-विदेश की ताजा ख़बरों के लिए बस करें एक क्लिक और रहें अपडेट 

हमारे यू-टयूब चैनल को सब्सक्राइब करें :

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें :

कृपया हमें ट्विटर पर फॉलो करें:

हमारा ऐप डाउनलोड करें :

हमें ईमेल करें : [email protected]

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button