किसान आंदोलन: ‘कृषि काला कानून वापस लें, नहीं तो हम 26 जनवरी भी यहीं मनाएंगे’
केंद्र सरकार के खिलाफ किसानों का प्रदर्शन बढ़ता जा रहा है। तीन बार किसानों(Farmers) के साथ सरकार की हुई बैठक भी बेनतीजा साबि
केंद्र सरकार के खिलाफ किसानों का प्रदर्शन बढ़ता जा रहा है। तीन बार किसानों (Farmers) के साथ सरकार की हुई बैठक भी बेनतीजा साबित हुई। वहीं अब किसानों ने सरकार की सद्बुद्धि के लिए हवन-पूजा शुरू कर दिया है। इसके साथ ही चिल्ला बॉर्डर पर किसानों (Farmers) की संख्या भी बढ़ने लगी है। किसान अपनी मांगों को लेकर पिछले 9 दिनों से दिल्ली के बॉर्डरों पर जमा हैं और सरकार के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं। प्रदर्शन के दौरान किसानों ने यह भी कहा कि सरकार, नए कृषि काला कानून वापस लें, नहीं तो हम 26 जनवरी भी यहीं मनाएंगे।
किसानों (Farmers) को रास नहीं आ रहे हैं नए कृषि विधेयक
बता दें कि, केन्द्र की मोदी सरकार सितंबर महीने में 3 नए कृषि विधेयक लाई थी, जिन पर राष्ट्रपति की मुहर लगने के बाद वे कानून बन चुके हैं। लेकिन किसानों (Farmers) को ये कानून रास नहीं आ रहे हैं। उनका कहना है कि इन कानूनों से किसानों को नुकसान और निजी खरीदारों व बड़े कॉरपोरेट घरानों को फायदा होगा। किसानों को फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य(MSP) खत्म हो जाने का भी डर है।
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क्या कहते हैं नए कृषि कानून?
किसान(Farmers) उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक 2020: इसका उद्देश्य विभिन्न राज्य विधानसभाओं द्वारा गठित कृषि उपज विपणन समितियों (एपीएमसी) द्वारा विनियमित मंडियों के बाहर कृषि उपज की बिक्री की अनुमति देना है। सरकार का कहना है कि किसान इस कानून के जरिये अब एपीएमसी मंडियों के बाहर भी अपनी उपज को ऊंचे दामों पर बेच पाएंगे। निजी खरीदारों से बेहतर दाम प्राप्त कर पाएंगे।
लेकिन, सरकार ने इस कानून के जरिये एपीएमसी मंडियों को एक सीमा में बांध दिया है। एग्रीकल्चरल प्रोड्यूस मार्केट कमेटी (APMC) के स्वामित्व वाले अनाज बाजार (मंडियों) को उन बिलों में शामिल नहीं किया गया है। इसके जरिये बड़े कॉरपोरेट खरीदारों को खुली छूट दी गई है। बिना किसी पंजीकरण और बिना किसी कानून के दायरे में आए हुए वे किसानों की उपज खरीद-बेच सकते हैं।
किसानों (Farmers) को सता रहा ये डर
किसानों (Farmers) को यह भी डर है कि सरकार धीरे-धीरे न्यूनतम समर्थन मूल्य खत्म कर सकती है, जिस पर सरकार किसानों से अनाज खरीदती है। लेकिन केंद्र सरकार साफ कर चुकी है कि एमएसपी खत्म नहीं किया जाएगा।
किसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) मूल्य आश्वासन अनुबंध एवं कृषि सेवाएं विधेयक: इस कानून का उद्देश्य अनुबंध खेती यानी कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की इजाजत देना है। आप की जमीन को एक निश्चित राशि पर एक पूंजीपति या ठेकेदार किराये पर लेगा और अपने हिसाब से फसल का उत्पादन कर बाजार में बेचेगा।
इस कानून का पुरजोर विरोध कर रहे हैं किसान (Farmers)
किसान इस कानून का पुरजोर विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि फसल की कीमत तय करने व विवाद की स्थिति का बड़ी कंपनियां लाभ उठाने का प्रयास करेंगी और छोटे किसानों के साथ समझौता नहीं करेंगी।
आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक: यह कानून अनाज, दालों, आलू, प्याज और खाद्य तिलहन जैसे खाद्य पदार्थों के उत्पादन, आपूर्ति, वितरण को विनियमित करता है। यानी इस तरह के खाद्य पदार्थ आवश्यक वस्तु की सूची से बाहर करने का प्रावधान है. इसके बाद युद्ध व प्राकृतिक आपदा जैसी आपात स्थितियों को छोड़कर भंडारण की कोई सीमा नहीं रह जाएगी।
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