IAS टॉपर इरा की फील्ड पोस्टिंग पर अब भी संदेह

तहलका एक्सप्रेस ब्यूरो, नई दिल्ली। सिविल सर्विसेज एग्जाम में देशभर में जनरल कैटिगरी में टॉप करके इरा सिंघल ने बड़ी जीत हासिल की है। हालांकि उनका और उनकी फैमिली का मानना है कि चुनौती अभी बाकी है। इरा को स्कोलियोसिस बीमारी है। ऐसे में टॉप करने के बाद इरा सिंघल को आईएएस मिलना तो तय है, लेकिन उन्हें फील्ड पोस्टिंग दी जाएगी या नहीं, इस पर संदेह बना हुआ है।
(सफदरजंग इनक्लेव के अपने घर में इरा के पिता राजेंद्र और मां अनिता सिंघल)
पोस्टिंग बनी सवाल
खुशी के पल के बीच इरा और उनके परिवार वालों को चिंता भी है। जिस लंबे कानूनी संघर्ष के रास्ते इरा यहां तक पहुंची हैं, उससे शंका के बादल नहीं छंट रहे। पिता राजेंद्र सिंघल उम्मीद जता रहे हैं कि इरा की काबलियत को देखते हुए पोस्टिंग में उनके साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा। हालांकि, डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनेल ऐंड ट्रेनिंग के अनुसार नियम के हिसाब से एक बार सिलेक्शन होने के बाद पोस्टिंग में कोई भेदभाव नहीं किया जाता है लेकिन अब तक जो भी ऐसे कैंडिडेट्स सिलेक्ट हुए हैं, उन्हें फील्ड पोस्टिंग नहीं दी गई है। हालांकि डीओपीटी के सूत्रों के अनुसार हाल के दिनों में ऐसी कई शिकायतें भी मिली हैं, जिनमें ऐसे अधिकारियों ने अपने साथ भेदभाव की शिकायत की है।
‘मानसिक मजबूती क्यों नहीं दिखती!’
2010 में इरा ने सिविल सर्विसेज परीक्षा में 815वां रैंक पाया था, मगर इसके बावजूद सरकार ने उन्हें नौकरी के लायक नहीं माना था। चार साल की लंबी कानूनी जंग में इरा को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा। उसी कानूनी प्रक्रिया के तहत इरा से हाथ से 10 किलो का भार उठवाया गया था, जबकि उनके हाथ के मूवमेंट में प्रॉब्लम है। दरअसल, ऐसा सर्विस मैनुअल में है। इसी कानूनी जंग को लेकर कैट ने कहा था, ‘सरकार को ऐसे लोगों की मानसिक मजबूती क्यों नहीं नजर आती है? ऐसे मजबूत लोगों को उनकी योग्यता के हिसाब से जगह देनी ही होगी।’ इसी लैंडमार्क फैसले की बदौलत इरा को और मजबूती मिली, जिसका परिणाम इस बार रिजल्ट में दिखा।

खुशी के पल के बीच इरा और उनके परिवार वालों को चिंता भी है। जिस लंबे कानूनी संघर्ष के रास्ते इरा यहां तक पहुंची हैं, उससे शंका के बादल नहीं छंट रहे। पिता राजेंद्र सिंघल उम्मीद जता रहे हैं कि इरा की काबलियत को देखते हुए पोस्टिंग में उनके साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा। हालांकि, डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनेल ऐंड ट्रेनिंग के अनुसार नियम के हिसाब से एक बार सिलेक्शन होने के बाद पोस्टिंग में कोई भेदभाव नहीं किया जाता है लेकिन अब तक जो भी ऐसे कैंडिडेट्स सिलेक्ट हुए हैं, उन्हें फील्ड पोस्टिंग नहीं दी गई है। हालांकि डीओपीटी के सूत्रों के अनुसार हाल के दिनों में ऐसी कई शिकायतें भी मिली हैं, जिनमें ऐसे अधिकारियों ने अपने साथ भेदभाव की शिकायत की है।
‘मानसिक मजबूती क्यों नहीं दिखती!’
2010 में इरा ने सिविल सर्विसेज परीक्षा में 815वां रैंक पाया था, मगर इसके बावजूद सरकार ने उन्हें नौकरी के लायक नहीं माना था। चार साल की लंबी कानूनी जंग में इरा को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा। उसी कानूनी प्रक्रिया के तहत इरा से हाथ से 10 किलो का भार उठवाया गया था, जबकि उनके हाथ के मूवमेंट में प्रॉब्लम है। दरअसल, ऐसा सर्विस मैनुअल में है। इसी कानूनी जंग को लेकर कैट ने कहा था, ‘सरकार को ऐसे लोगों की मानसिक मजबूती क्यों नहीं नजर आती है? ऐसे मजबूत लोगों को उनकी योग्यता के हिसाब से जगह देनी ही होगी।’ इसी लैंडमार्क फैसले की बदौलत इरा को और मजबूती मिली, जिसका परिणाम इस बार रिजल्ट में दिखा।
(अभी अपने दोस्तों के साथ हैदराबाद में हैं इरा)
फील्ड पोस्टिंग का मसला
क्या टॉप करने के बाद इरा सिंघल डीएम बन सकती हैं? पूर्व कैबिनेट सेक्रेटरी टी. एस. आर. सुब्रमण्यन कहते हैं कि दरअसल इस बारे में अभी साफ गाइडलाइंस नहीं हैं। यह सही है कि आईएएस बनने के बाद एसडीएम और डीएम जैसी पोस्टिंग में रहते हुए दंगा, भाग-दौड़, आपात स्थिति आती है, ऐसे में फील्ड पोस्टिंग मुश्किल है। हालांकि अब जब इरा जैसे खास टैलंट वाले लोग इस सर्विस में आ रहे हैं, तो सरकार को इनकी पोस्टिंग के लिए अलग गाइडलाइंस भी बनानी चाहिए। इरा जैसी लड़की सामान्य लोगों के मुकाबले आईक्यू और मेंटल स्ट्रेंथ में कहीं आगे होती हैं, ऐसे में सरकार को गंभीरता से सोच-विचार की जरूरत है। उन्होंने कहा कि यह क्रांतिकारी पॉजिटिव ट्रेंड है, जब ऐसे लोग सर्विस में आ रहे हैं।
अजीत ने जीती थी जंग
पिछले साल ही दिल्ली के अजीत कुमार यादव ने भी शारीरिक कमजोरी को अपनी मानसिक मजबूती से शिकस्त दी थी। अजीत की दोनों आंख बचपन में किसी बीमारी की वजह से खराब हो गई थीं। वह 80 फीसदी नेत्रहीन कैटिगरी में आ गए थे मगर उन्होंने हार नहीं मानी। स्प्रिंगडेल्स स्कूल से पढ़ाई करने वाले अजीत ने 2011 में सिविल सर्विसेज एग्जाम पास किया मगर शारीरिक खामी का हवाला देकर उनका सिलेक्शन आईएएस में नहीं किया गया। फिर अजीत ने तीन साल की कानूनी जंग लड़ी और पिछले साल आईएएस कैडर में जगह पा ली। अभी वह ट्रेनिंग पूरी कर पोस्टिंग का इंतजार कर रहे हैं।
क्या टॉप करने के बाद इरा सिंघल डीएम बन सकती हैं? पूर्व कैबिनेट सेक्रेटरी टी. एस. आर. सुब्रमण्यन कहते हैं कि दरअसल इस बारे में अभी साफ गाइडलाइंस नहीं हैं। यह सही है कि आईएएस बनने के बाद एसडीएम और डीएम जैसी पोस्टिंग में रहते हुए दंगा, भाग-दौड़, आपात स्थिति आती है, ऐसे में फील्ड पोस्टिंग मुश्किल है। हालांकि अब जब इरा जैसे खास टैलंट वाले लोग इस सर्विस में आ रहे हैं, तो सरकार को इनकी पोस्टिंग के लिए अलग गाइडलाइंस भी बनानी चाहिए। इरा जैसी लड़की सामान्य लोगों के मुकाबले आईक्यू और मेंटल स्ट्रेंथ में कहीं आगे होती हैं, ऐसे में सरकार को गंभीरता से सोच-विचार की जरूरत है। उन्होंने कहा कि यह क्रांतिकारी पॉजिटिव ट्रेंड है, जब ऐसे लोग सर्विस में आ रहे हैं।
अजीत ने जीती थी जंग
पिछले साल ही दिल्ली के अजीत कुमार यादव ने भी शारीरिक कमजोरी को अपनी मानसिक मजबूती से शिकस्त दी थी। अजीत की दोनों आंख बचपन में किसी बीमारी की वजह से खराब हो गई थीं। वह 80 फीसदी नेत्रहीन कैटिगरी में आ गए थे मगर उन्होंने हार नहीं मानी। स्प्रिंगडेल्स स्कूल से पढ़ाई करने वाले अजीत ने 2011 में सिविल सर्विसेज एग्जाम पास किया मगर शारीरिक खामी का हवाला देकर उनका सिलेक्शन आईएएस में नहीं किया गया। फिर अजीत ने तीन साल की कानूनी जंग लड़ी और पिछले साल आईएएस कैडर में जगह पा ली। अभी वह ट्रेनिंग पूरी कर पोस्टिंग का इंतजार कर रहे हैं।
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