UPPSC चेयरमैन अनिल यादव के अपॉइंटमेंट को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बताया अवैध

अनिल यादव के खिलाफ कई पीआईएल दायर किए गए थे। इन्हें मंजूर करते हुए कोर्ट ने कहा, “सरकार ने एक ही दिन में अनिल यादव को अपॉइंट करने की सारी कागजी कार्रवाई पूरी कर ली। रविवार को छुट्टी होने के बावजूद लेखपाल से डीएम मैनपुरी ने यादव के पक्ष में उनके कैरेक्टर और बिहेवियर को लेकर रिपोर्ट हासिल की। उसे तुरंत सरकार को भेज दिया गया, ताकि उनकी नियुक्ति की जा सके।” कोर्ट ने कहा, “अनिल यादव आगरा के रहने वाले हैं और वहां उनके खिलाफ कई संगीन मामले दर्ज थे। सरकार ने इसकी कोई रिपोर्ट नहीं मांगी और नियुक्ति के लिए गवर्नर को फाइल भेज दी। यूपीपीएससी चेयरमैन जैसे अहम पोस्ट पर ऐसे आपराधिक छवि वाले शख्स को नियुक्त करना गलत था।” कोर्ट का कहना है कि ऐसे पदों पर योग्य और अच्छे आचरण वाले व्यक्ति की नियुक्ति होनी चाहिए।
यूपीपीएससी चेयरमैन को हटाने को लेकर प्रतियोगी छात्र संघ ने पीआईएल दायर की थी। अनिल यादव के इलीगल अपॉइंटमेंट पर मंगलवार को दिनभर सुनवाई चली थी। बुधवार को हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस डॉ. डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस यशवंत वर्मा की बेंच ये फैसला दिया। प्रतियोगी छात्र की ओर से सतीश कुमार सिंह ने कहा कि न्याय की जीत हुई है। करप्शन फैलाया जा रहा था, जिससे छात्रों में मायूसी थी। हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद अब उनमें खुशी का माहौल है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार से यूपीपीएससी के अध्यक्ष अनिल यादव का आपराधिक ब्योरा भी मांगा था। कोर्ट में इससे पहले अनिल यादव की ओर से हलफनामा दाखिल कर बताया गया था कि वह जानलेवा हमला करने के आरोपी रह चुके हैं। इसके साथ ही तीन अन्य मामलों में भी वह आरोपी रहे हैं। उनका कहना था कि एक मामले में फाइनल रिपोर्ट लग चुकी है, जबकि तीन मामलों में वह बरी हो चुके हैं।
आयोग के अध्यक्ष पद पर नियुक्ति के बाद से ही अनिल यादव विवादों में घिरे रहे हैं। उन पर कैंडिडेट्स से पक्षपात और कुछ खास क्षेत्र के लोगों को तरजीह दिए जाने के आरोप लगते रहे हैं। पीसीएस-प्री 2015 का पर्चा लीक होने के बाद उन्हें आयोग की कार्यशैली को लेकर कड़ी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था। इस मामले की सीबीआई जांच कराने को लेकर भी याचिका दाखिल हुई थी, लेकिन कोर्ट ने इसे नामंजूर कर दिया था।
यूपी-पीसीएस-2011 के मेन एग्जाम के नतीजे पिछले साल जुलाई में आए थे। ज्यादातर यादव कास्ट को ही नियुक्ति मिली थी। 2011 में कुल चयनित 389 में से 72 लोकसेवा अधिकारी इसी जाति से थे। ओबीसी के 111 सफल कैंडिडेट्स में से भी 45 इसी जाति के थे। ऐसे में यूपी-पीसीएस की भर्तियों में धांधली का आरोप लगाते आ रहे छात्र रिजल्ट देखने के बाद सड़कों पर उतर आए थे। प्रदर्शन के दौरान तोड़फोड़ औऱ मारपीट हुई। पत्थरबाजी के बीच गोलियां भी चलीं। कई लोगों की गिरफ्तारियां भी हुईं।
प्रतियोगी छात्रों ने इस तरह के नतीजों के लिए चेयरमैन अनिल कुमार यादव पर पक्षपात के आरोप लगाए, क्योंकि बतौर चेयरमैन किसी भी एग्जाम में रिजल्ट की आखिरी जिम्मेदारी उनकी ही थी। मामले ने तूल पकड़ा, तो सीएम अखिलेश यादव ने नीतियों में बदलाव किया। दिसंबर 2013 में पीसीएस-2011 का फाइनल रिजल्ट सामने आया और छात्रों को एक बार मायूसी हाथ लगी। कमीशन को मालूम था कि ये नतीजे नया बवाल खड़ा करेगा। ऐसे में कमीशन ने पहले तो नंबर ही एक महीने बाद जारी किए। इन्हें देखने के लिए पासवर्ड की जरूरत थी।
इलाहाबाद हाईकोर्ट में दायर एक पब्लिक पिटीशन में दावा किया गया था कि पिछली तीन बार से एसडीएम की कुल 86 नियुक्तियों में से 56 यादव कास्ट के हैं। पिटीशन दायर करने वालों ने ये भी दावा किया था कि उस दौरान यूपी-पीएससी की दूसरी नियुक्तियों में भी इस कास्ट की संख्या आधी है। पिटीशन दायर करने वालों ने अनिल यादव पर अपने कास्ट के कैंडिडेट की मदद करने का आरोप भी लगाया है।
यूं लगे सरकार को झटके
इससे पहले भी हाईकोर्ट ने नियमों का उल्लंघन कर की गई अफसरों की नियुक्ति पर सवाल उठाए। सरकार ने सख्त कदम नहीं उठाए तो कोर्ट ने खुद पहल की। जानिए आप भी कि कैसे हाईकोर्ट ने यूपी सरकार को दिए झटके।
पहला झटका
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बीते शुक्रवार को उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के सचिव रिजवान उल रहमान को हटाने का आदेश दिया, कोर्ट ने सरकार से एक हफ्ते में आईएएस अफसर को तैनात करने के लिए कहा।
दूसरा झटका
इससे पहले भी हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को उच्चतर शिक्षा सेवा चयन आयोग के अध्यक्ष लाल बिहारी पांडेय की नियुक्ति को अवैध घोषित करते हुए पद से हटाने का आदेश दिया था
तीसरा झटका
इसके बाद हाईकोर्ट ने माध्यामिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड के अध्यक्ष सनिल कुमार को पद के लिए योग्यता नहीं रखने के कारण बर्खास्त करने के आदेश दिया था। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि सनिल कुमार की नियुक्ति नियम विरुद्ध हुई है।
चौथा झटका
इतना ही नहीं यूपी के कद्दावर अधिकारियों में गिने जाने वाले प्रोन्नत आईएएस अधिकारी एसपी सिंह को भी हाईकोर्ट ने तत्काल पद से हटाने के आदेश दे दिए। कुछ समय पूर्व ही रिटायर हुए एसपी सिंह को राज्य सरकार ने फिर से प्रमुख सचिव का चार्ज दे कर नगर विकास विभाग में तैनात कर दिया था।
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